इन दिनों हरियाणा के यमुना नगर जिले में यमुना नदी में बड़े पैमाने पर जमकर अवैज्ञानिक और अवैध तरीके से पत्थर, रेत खनन हो रहा है। जिसके कारण यमुना नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। नदी से पत्थर-रेत निकालने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए सभी कानूनों को ताक पर रखा जा रहा है। परन्तु जिला प्रशासन और सम्बंधित विभाग मामले पर मौन साधे बैठे हैं।
हाल ही में खनन प्रभावित क्षेत्र के भ्रमण के दौरान, हमने देखा की कई बड़े वाहन नदी से भारी मात्रा में कीमती रेत ढुलान में लगे हैं। नदी की प्राकृतिक धारा को किसी जगह रोका गया है और किसी जगह पर मोड़ा गया है। बड़ी बड़ी जेसीबी और भीमकाय मशीनें बेतरतीबी से नदी तल से रेत खोदने में व्यस्त हैं। जगह जगह रेत के टीलें बने हुए हैं। कई स्थानों पर नदी में विशालकाय गढ्डे बन गए हैं। तो अन्य जगह नदी को बड़े तालाब में बदल दिया गया है। एक तरह से नदी नाम की कोई चीज देखने को नहीं मिली। नदी के स्थान पर रेत के ढ़ेर, जलकुंड और मशीनों और ट्रकों का शोर-शराबा ही देखने और सुनने को मिला।
नियमों के अनुसार, खनन के दौरान नदी के सक्रिय प्रवाह क्षेत्र में किसी भी प्रकार बदलाव या हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। साथ में नदी की बहती धारा को किसी भी तरह से परिवर्तित नहीं करना होता है। तीन मीटर से ज्यादा गहराई से या नदी भूजल स्तर से अधिक गहराई से रेत निकालने पर पाबन्दी है। रात के समय खनन प्रतिबंधित है। आश्चर्य है, इन नियमों से खनन विभाग, प्रदूषण नियंत्रण समिति, जिला प्रशासन यमुनानगर सब अनभिज्ञ बने हुए हैं; खनन में संलिप्त कंपनियों के कर्मचारियों और लोगों को इन नियमों की कोई जानकारी नहीं है।
कमजोर मानसून, अक्टूबर में ही सिकुड़ने लगी नदी की धार
इस वर्ष यमुना नदी घाटी में मानसूनी वर्षा में अभूतपूर्व कमी दर्ज की गयी है। यमुना नदी क्षेत्र के से लगे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्यों के सभी जिलों में औसत से बेहद कम वर्षा हुई है। भारतीय मौसम विभाग द्वारा इस वर्ष हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल एवं दिल्ली में सामान्य से 42%, 18%, 10% एवं 35% कम बारिश दर्ज की गयी है।[i] आमतौर पर मानसून मौसम में यमुना नदी में तीन-चार बार बाढ़ आती है। जिससे तटवर्तीय इलाकों में भूजल संग्रहण के साथ साथ खेतों को उपजाऊ माटी और नदी में रेत भी आता है। परन्तु इस वर्ष नदी में केवल एक बार बाढ़ आई है और नदी अक्टूबर माह में ही सिकुड़ने लगी है।
यमुना बेसिन राज्यों में जून-सितम्बर माह 2019 के दौरान मानसूनी वर्षा को दर्शाते भारतीय मौसम विभाग के मानचित्र। विभाग के अनुसार पुरे भारत में केवल गंगा और खास तौर पर ऊपरी यमुना उप बेसिन में वर्षा की भारी कमी दर्ज की गई है।
स्थानीय लोगों के अनुसार सामान्यतः नवंबर-दिसंबर माह तक नदी को पार करने के लिए नावों का प्रयोग होता रहा है, परन्तु नदी के प्रवाह और जल मात्रा में इस वर्ष अप्रत्याशित कमी आई है और नाव का उपयोग अक्टूबर माह में ही बंद हो गया है।
खनन में नदी हितों, पर्यावरण की हो रही अनदेखी, वन्य-जलीय जीव हो रहे लुप्त
बड़े पैमाने पर जारी रेत, पत्थर खनन से यमुना नदी के परिस्थितीय तंत्र के साथ खिलवाड़ हो रहा है। खनन कार्य में लगी कंपनियां मनमाफिक ढंग से यमुना की प्राकृतिक धारा को मोड़ और रोक रहे हैं। खनन क्षेत्र में नदी तल में बड़े-बड़े गहरे कुंड बन गए हैं। दिन रात नदी क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में, ट्रकों, जेसीबी मशीनों, पोकलैंड मशीनों और ट्रैक्टरों की आवाजाही लगी रहती हैं, जिससे नदी के शांत किनारे औद्योगिक क्षेत्र में तब्दील हो गए हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि दिन रात खनन के चलते नदी क्षेत्र में सामान्यतः दिखने वाले जलीय-वन्य जीवों और पक्षियों की संख्या बहुत कम हो गई है।
खनन प्रभावित नदी तल की वीडियो नदी नाम की कोई चीज ही नहीं बची है।
खनन की भयावह स्थिति पर चिंतित एक अध्यापक आगे बताते हैं कि रेत नदी के पानी को स्वच्छ रखने में सहायक होता है। आस पास के इलाकों मे भूजल स्तर को बनाये रखता है। परन्तु अत्यधिक रेत खनन करने से आस पास के इलाके का भूजल स्तर गिर रहा है। नदी का पारिस्थितिक तन्त्र भी असंतुलित हो रहा है। उथले पानी में रहने वाले जलीय जीवों और वनस्पति समाप्त हो गई है। खनन कार्य व दिन रात मशीनों के चलने के कारण प्रवासी पक्षियों का आना जाना भी प्रभावित हुआ है और नदी के किनारे की वनस्पति व वन्य जीवों के आवास को नुकसान हो रहा है।
थोक के भाव में बेच रहे दुर्लभ नदी को
विभागीय जानकारी के मुताबिक यमुनानगर जिले में पड़ने वाले नदी के 70 किलोमीटर के बहाव क्षेत्र में 23 स्थानों पर खनन ठेके दिए गए हैं। इनमें से 12 स्थानों पर बोल्डर्स, ग्रेवल्स और रेत के ठेके हैं जहाँ नदी तल से पत्थर निकालकर विभिन्न स्तर का रेत बनाने के लिए स्टोन क्रैशर्स और स्क्रीनिंग प्लांट्स लगे हैं। वहीँ 11 अन्य स्थानों पर रेत खदान चल रही है। एक स्थान में खनन का दायरा अमूमन 20 से 100 हेक्टेयर तक फैला है। इसी तरह, एक स्थान 1 दिन में औसतन 150-200 ट्रकों केवल रेत के निकाले जा रहे हैं। एक ट्रक की क्षमता लगभग 600 से 700 घन फ़ीट है और गुणवत्ता के अनुसार रेत की कीमत 9 से 11 रूपये प्रति घन फ़ीट है।

इस तरह, रेत खान से एक ट्रक रेत लगभग 5 हज़ार रूपये के थोक भाव में निकाला जाता है। जिसे खुदरा व्यापारी आगे दुगनी कीमत पर बेचते हैं। यही रेत अंत में उपभोक्ताओं को 20 से 25 हज़ार रूपये प्रति ट्रक बेचा जाता है। खनन कंपनियों द्वारा प्रति ट्रक रेत पर चालकों को 1 रुपया प्रति घन फ़ीट की दर से कमीशन भी दिया जा रहा है।
अनुमानतः यमुना नदी से रोजाना 2000 से अधिक ट्रक रेत खनिज का खनन हो रहा है जोकि पूरी तरह असंवहनीय (Unsustainable) है। ऐसा बताया जा रहा है कि यह रेत पुरे हरियाणा और आस पास के राज्यों राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तक भेजा जा रहा है। गौरतलब है कि इन सभी राज्यों में रेत खनन प्रतिबंधित है। जिससे यमुना नदी से रेत आपूर्ति की मांग और दवाब बहुत अधिक बढ़ गया है। चिंता की बात यह है कि नदी में पिछले दो सालों से बड़े पैमाने पर रेत खनन हो रहा है। पिछले वर्ष तो नदी से लगने वाले हरियाणा राज्य के सभी जिलों करनाल, पानीपत, सोनीपत रेत खनन की चपेट में थे।
पेशे से जुड़े लोग बताते हैं कि एक खान जिसे स्थानीय लोग घाट कहते हैं; का ठेका सरकार चार से पांच करोड़ में देती है। अंदाजा लगा सकते हैं कि यमुना नगर के 11 घाटों से सरकार को कम से कम 55 करोड़ का राजस्व मिलेगा। परन्तु वहीँ रेत खनन कंपनी एक खान से सालाना लगभग 15 करोड़ के रेत का व्यापार करेगी और जिले की 11 खानों से लगभग 2 अरब का रेत बेचा जाएगा। ऐसा लगता है सरकार कौड़ियों के भाव में नदी की नीलामी कर रही है और इसका नदी तथा लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसकी किसी को कोई चिंता नहीं है।
बेरोजगारी और खेती में बढ़ता नुकसान, किसानों को कर रहा खनन की ओर आकर्षित
हरियाणा राज्य में बेरोजगारी दर शीर्ष पर है। साथ में किसानों को खेती में बहुत अधिक समस्याओं और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में गांव के समीप, नदी प्रवाह एवं बाढ़ क्षेत्र के अलावा खादर में स्थित खेतों से भी बड़ी मात्रा में रेत निकाला जा रहा है। रेत खनन कार्य, स्टोन क्रेशर उद्योग को उनके लिए आमदनी का जरिया बनाया जा रहा है। नदी से रेत निकालकर पास के खेतों में भंडारण के लिए खनन कम्पनिया करीबन रुपये 40 हज़ार प्रति एकड़ सालाना की दर से भुगतान करते हैं। साथ में किसानों को नदी के पास और अंदर के खेतों से रेत निकालने के लिए 1 से 1.5 लाख रुपये प्रति एकड़ सालाना पैसा दिया जाता है।
“मैं शिक्षित, बेरोजगार हूँ। मैंने अपने यमुना नदी किनारे के अपने खेत रेत भण्डारण के लिए दिए हैं। साथ में कंपनी के लिए काम भी कर रहा हूँ। इन खेतों में, बीस हज़ार रुपये भी सालाना कमाई नहीं है। कम से कम अब रेत तो बिक रही है।” खनन कार्यों से जुड़े यमुनानगर के एक ग्रामीण युवा ने बताया।
बाढ़ सुरक्षा की आड़ में दे रहे खनन को बढ़ावा
यमुना नदी हर वर्ष बाढ़ के समय किनारों का कटान करती है। जिसकी चपेट में खेत भी आ जाते हैं। वास्तविकता यह है कि नदी का क्षेत्र पूरा रेतीला है। नदी के ठीक बिल्कुल किनारों; यहाँ तक की नदी के अंदर भी खेती होती है। बाढ़ के समय खेती की जमीन का प्रभावित होना स्वाभाविक है। परन्तु अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे खनन से नदी के किनारों का कटान बढ़ता है। तटबंध और बाढ़ सुरक्षा संरचना कमजोर होती है। जिससे ग्रामीण इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ता है।
पूर्व में भी रेत खनन की वजह से यमुना नदी के किनारों का कटान होता रहा है और तटबंध भी टूटे हैं। वर्ष 2010 की बाढ़ में ऐतिहासिक ताजेवाला बैराज बह गया। जानकारों के अनुसार इसके पीछे बैराज के नजदीक किया गया पत्थर, रेत खनन मुख्य वजह थी। बेतहाशा खनन से वर्ष 2016 में हथिनी कुंड बैराज को नुकसान होने की सम्भावना जताई गयी थी।[ii] वहीँ मई 2019 में खनन से एक तटबंध को काफी नुकसान हुआ है। जिससे हरियाणा के दर्ज़नों गांव में बाढ़ का खतरा बढ़ गया था। इसके पीछे भी उस इलाके में तटबंध के पास में पिछले दो सालों से जारी खनन कार्यों को मुख्य कारण बताया गया है।
फिर भी खनिज विभाग के अधिकारी, खनन कम्पनी से जुड़े कर्मचारी और खनन से आर्थिक लाभ कमा रहे किसान एवं ग्रामीण सब एक सुर खनन कार्यों का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना ही कि जितना ज्यादा खनन होगा नदी उतनी ही गहरी होगी और उतना ही कम बाढ़ गांव और खेतों का रुख करेगी। जाहिर है खनन से मालामाल हो रहे विभाग, प्रशासन, कंपनियों और ग्रामीण लोगों की शब्दावली में कानून, पर्यावरण और नदी हित नामक शब्द ही नहीं है। वास्तव में इसे बाढ़ नियंत्रण से जोड़कर ग्रामीण लोग गलतफहमी का शिकार हो रहे हैं।
“खनन होने से इस साल बाढ़ से नदी ने कटाव नहीं किया। जिससे खेतों को नुकसान नहीं हुआ। जितना खनन होगा उतना अच्छा रहेगा”, खनन कार्य में लगे ग्रामीण युवा ने बताया।
परन्तु ना तो सभी इस बात से सहमत और खुश हैं, ना ही खनन से सबको लाभ मिल रहा है। हकीकत यही है कि इस कारोबार से भले ही सरकार, कंपनी और अलग अलग गांवों में कुछ ग्रामीणों और किसानों को आमदनी हो रही हो। परन्तु अधिकांश जनता और नदी इसका खामियाजा भुगतने को विवश हैं।

यमुना नदी संरक्षण पर लम्बे अरसे से लेखन कार्य कर रहे एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि खनन करने से बाढ़ का खतरा कम होता है। इनके अनुसार ये सब सुनी सुनाई बातें हैं और विभाग के पास कोई स्वतंत्र अध्ययन पर आधारित जानकारी नहीं है कि खनन से बाढ़ नहीं आती है। ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले हमें कम से कम पिछले तीन दशकों की बाढ़ों का गहन मूल्यांकन करना होगा।
खनन से प्रभावित किसानों का भी कहना है कि लगातार हो रहे खनन से खेती पर विपरीत असर हो रहा है। दिन रात बड़े बड़े ट्रकों की आवाजाही से परे ग्रामीण अंचल में धूल ही धूल उड़ रही है। जो फसलों के साथ साथ ग्रामीण लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है। यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है, यमुनानगर में भी वायु प्रदुषण की स्थिति चिंताजनक बनी रहती है, जिसमें निश्चित तौर पर इतने बड़े पैमाने पर हो रहे खनन कार्यों का बहुत बड़ा योगदान है।[iii] [iv]
नदी प्रवाह, पर्यावरण, पानी भूजल की किसी को नहीं चिंता
हरियाणा राज्य में यमुना ही एक मात्र बहती नदी हैं। शेष नदियां जैसे सोम्ब, घग्गर, मारकंडा, टांगरी, साहिबी आदि सूखकर बरसाती हो गई हैं। दूसरा, इस वर्ष यमुना नदी के ऊपरी जलागम क्षेत्र में बहुत कम बारिश हुई है[v], जिससे नदी की धार अभी से सूखने लगी है।

यमुना नदी के कारण ही तटवर्ती जिलों में भूजल स्तर बना रहता है और हरियाली दिखाई पड़ती है। नहरों के माध्यम से भी यमुना जल राज्य के बड़े भूभाग को सिंचित करता है और उद्योगों, शहरों को पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में भी यमुना नदी से जलापूर्ति का बड़ा हिस्सा आता है। फिर भी खनन से भूजल स्तर और नदी जलस्तर पर हो रहे विपरीत प्रभावों को किसी भी विभाग को कोई चिंता नहीं है।
“रेत एक तरह से नदी के लिए ही बना है। यही नदी की प्यास बुझाता है और बारिश के पानी को सोखकर भूजल स्तर बढ़ाता है। रेत ही गैरमानसूनी महीनों में नदी में जल प्रवाह बनाये रखने में मुख्य भूमिका अदा करता है। पर कोई भी नहीं समझ रहा है कि ये केवल रेत का खनन नहीं बल्कि पानी का भी खनन है और जल संकट को न्यौता देने के समान है।” यमुना नदी संरक्षण पर लेखन कार्य कर रहे पत्रकार ने बताया।
नदी की नहीं है कोई जमीन
सबसे आश्चर्य का पहलु है कि नदी की ना तो कोई अपनी जमीन है, ना ही नदी को कोई कानूनी संरक्षण दिया गया है। खनन कार्यों का ज्याजा लेते वक्त ग्रामीणों ने बताया कि पूरी नदी में किसानों खेती करते हैं। गैर मानसूनी महीनों में जहाँ भी नदी सिकुड़ती है, वो जमीन खेती के कार्यों में उपयोग होने लगती है। खनन के लिए भी कंपनियां किसानों को मुआवजा देती है। नदी की अधिकांश जमीन को, नदी किनारे के दोनों राज्यों हरियाणा और उत्तरप्रदेश के किसान शामलात भूमि मानते हैं। जिस पर कब्जे और अधिकार को लेकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच सालों से विवाद होते आ रहे हैं, खास तौर पर बाढ़ उपरांत जब नदी अपना रुख बदल लेती है। नियमों के अनुसार खेती की जमीन पर बाढ़ से आई रेत हटाने के लिए किसी भी प्रकार की स्वीकृति नहीं लेनी पड़ती है, जिसका खनन कंपनियां खूब लाभ उठा रही हैं। विभाग भी इसी तरह का हवाला देता है। जिससे ऐसा बताने की कोशिश हो रही है कि खनन नदी में नहीं अपितु खेतों में हो रहा है।

नदी आधारित आजीविका बुरी तरह प्रभावित
इतने बड़े स्तर पर बेरोकटोक चल रहे खनन कार्यों से ग्रामीणों और नदी का सम्बन्ध टूट गया है। नदी की शामलात जमीन रेतीली होती है। इसे खादर नाम भी दिया गया है। इस रेतीली जमीन को बटाई पर लेकर आर्थिक तौर पर कमजोर किसान दशकों से सब्जी लगाने का काम करते आ रहे हैं। जिसे प्लेज कहा जाता है। इस माध्यम से एक बहुत बड़ा वर्ग अपनी आजीवका अर्जन करता था। परन्तु खनन के चलते प्लेज लगाने वाले किसान बुरी तरह प्रभावित हैं।
इसी तरह अलग-अलग घाटों पर से नदी में नाव चलाकर मल्लाह लोग बरसात के बाद दिसंबर जनवरी माह तक रोजगार पाते थे। किन्तु अधिकांश खनन कार्य घाटों के पास ही किया जा रहा है जिससे मल्लाहों का रोजगार का साधन समाप्त हो गया है और लोगों को भी नदी पार करने के लिए कई किलोमीटर दूर स्थित पुलों का सहारा लेना पड़ रहा है। धार्मिक, सांस्कृतिक पर्वों पर आमतौर पर नदी पर स्नान करने जाने वाले लोग, अब नदी की तरफ जाने से कतराते हैं। कई गावों की श्मशान भूमि भी खनन की चपेट में हैं।
खनन कार्यों में घोर लापरवाही और बढ़ती दुर्घटनाओं से मर रहे लोग, प्रशासन खामोश
खनन कार्यों से प्रभावित, यमुना नगर के ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। उन्हें नदी किनारे और गांवों की सड़कों पर अपनी जान जोखिम में दिखाई पड़ती है। जहाँ नदी में खनन से बने गहरे जलकुण्डों में ग्रामीण मर रहे हैं, वहीं रेत खनिज ढो रहे, ट्रकों से सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही है (उदाहरण नीचे पढ़ें)। स्थानीय लोग बताते हैं कि ग्रामीणों की शिकायतों और हालातों पर तो प्रशासन पूरी तरह खामोश है, परन्तु जब ग्रामीण अवैध खनन का विरोध करते हैं तो पूरा प्रशासन खनन कंपनियों के समर्थन में खुलकर आ जाता है।
7 जुलाई 2019 को जिले के कनालसी गांव में खनन से बने 25-30 फ़ीट गहरे गढ्ढों में डूबने से दो ग्रामीण बच्चे मर गए।[vi] इस पर प्रशासन ने आज तक ना तो खनन कंपनी के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्यवाही की है, ना ही पीड़ित परिवारों को किसी तरह का आर्थिक सहयोग प्रदान किया है। ग्रामीणों का आरोप है कि खनन में संलिप्त लोगों और कंपनी को बचाने के लिए पुलिस प्रशासन ने पुरे मामले में जमकर लीपा पोती कर इसे एक तरह से इसे बच्चों की ही लापरवाही से हुई प्राकृतिक दुर्घटना दर्शाने की कोशिश की।

“हमें कोई न्याय नहीं मिला क्योंकि हम बाल्मीकि हैं, कमजोर हैं। मामले में प्रशासन ने पर्दा डाल दिया। हमारे बच्चे तो चले गए पर गांव के दूसरे बच्चे खनन के गढ्डों में ना मरे, इसके लिए ये खनन बंद होना चाहिए”, मारे गए बच्चों के माता पिता भरी हुई आँखों से कहते हैं।
इसी तरह, पिछले दो वर्षों के दौरान खनन से जुडी अलग अलग दुर्घटनाओं में दो ग्रामीण युवकों की मौत हो गई है।लगभग दो वर्ष पूर्व भी कनालसी गांव ही से 26 वर्षीय ग्रामीण की खनन के गहरे गढ्डे में डूबकर मौत हो चुकी है। इलाके के रामपुर खादर गांव से भी एक ग्रामीण बच्चा रेत से लदे डम्पर की चपेट में आने से अपनी जान गँवा चूका है। वहीँ शहजादपुर गांव में खनन में लगे ट्रक की टक्कर से एक नवजात बुरी तरह घायल हो गया था।
ग्रामीणों का उत्पीड़न और अवैध खनन को संरक्षण दे रहा प्रशासन
खनन कार्यों में प्रशासनिक मिलीभगत का एक उदाहरण सब्बापुर गांव का है। जब ग्रामीणों ने गांव की सड़कों से भारी भरकम रेत लदे ट्रकों के गुजरने का विरोध किया। तब खनन में संलिप्त चालकों, श्रमिकों ने गांव वालों पर हमला किया जिसमें कई ग्रामीण चोटिल हुए परन्तु यहाँ भी प्रशासन ने ग्रामीणों की कोई मदद नहीं की।
“खनन, क्रेशर, स्क्रीनिंग कार्यों से पुरे ग्रामीण अंचल में धूल के गुबार उड़ते रहते हैं। जहाँ कभी शांति और सकून होता था वहां दिन रात मशीनों का का कानफोड़ू शोर शराबा है जैसे कहीं लड़ाई चल रही हो। फसलों पर, घरों के अंदर बाहर सब जगह धूल की चादर जम रही है। सड़कों पर गढ्डे पड़ गए हैं। कई जगह रास्ते टूट गए हैं। पर हम ग्रामीण ऐसी नारकीय स्थिति में जीने को मजबूर हैं। हमें नदी के किनारे और सड़कों पर अपनी जान खतरे में दिखाई देती है।”, कनालसी के एक बुजुर्ग ग्रामीण ने अपनी व्यथा सुनाई। प्रशासन के अवैध खनन कार्यों को समर्थन के चलते ग्रामीण लोग ऐसी घटनाओं को और बदतर स्थिति को अपनी नियति मान चुके हैं।
ग्रामीणों के उत्पीड़न और प्रशासन की मिलीभगत को उजागर करते, कुछ प्रिंट मिडिया रिपोर्ट्स
कनालसी गांव के किसानों का कहना है कि अवैध खनन की शिकायत पर प्रशासन ने कंपनियों के खिलाफ तो कोई कार्यवाही नहीं की परन्तु ग्रामीणों द्वारा अपनी सुविधा के लिए सोम्ब नदी पर बनाये गए अस्थायी पूल को तोड़ दिया। इसका विरोध करने पर कुछ ग्रामीणों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करायी गई। उपरोक्त घटनाओं से स्पष्ट है विभाग और प्रशासन ग्रामीणों को डरा धमकाकर, अवैध खनन में कंपनियों को पूरा सहयोग दे रहा हैं।
आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त सम्बंधित विभाग
खनन कार्यों में सरेआम नियमों के उल्लंखन के बारे में जब राज्य प्रदुषण नियंत्रण समिति में क्षेत्रीय अधिकारी शैलेन्द्र अरोड़ा और पर्यावरण सहायक कमलजीत सिंह से बात की गई तो अधिकारियों ने बताया कि इसकी सारी जानकारी खनन विभाग देगा और वे केवल ऑनलाइन शिकायतों पर कार्यवाही करते हैं।
खनन कार्यों में लगे ट्रकों से शांत ग्रामीण अंचल में ध्वनि, वायु प्रदूषण, सड़कों की दुर्दशा, ट्रैफिक जाम की स्थिति दर्शाता वीडियो। ग्रामीण लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित।
वहीं खनन विभाग के अधिकारी राजीव कुमार बताते हैं कि अवैध खनन मॉनिटरिंग का काम प्रदुषण नियंत्रण समिति का है। जमकर जारी अवैध खनन, नदी पर दुष्प्रभाव और मानसून में कमी की बात जब जिलाधिकारी मुकुल कुमार को बताई गई तो वे मामले में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए, खनन विभाग से ही बात करने के लिए कहा। वे जिला स्तर पर प्रदान की गई पर्यावरण स्वीकृतियों, खनन पूर्व किये जाने अध्ययनों के बारे में भी कुछ नहीं बता पाए।
कितना हो खनन, नहीं हुआ कोई अध्यनन
खनन विभाग से दोबारा बातचीत में भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली। पर अधिकारी खुलकर खनन कार्यों और कंपनियों का समर्थन करने लगे। “खनन से बाढ़ का नुकसान कम हुआ है। कंपनियां तो वैसे भी घाटे में हैं। वे बरसात के तीन महीनों में खनन नहीं कर पाती हैं। खनन के लिए स्वीकृत क्षेत्र में भी बाढ़ का पानी आ जाता है। जिससे खनन करने में कंपनियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।”, जिला खनन अधिकारी राजीव कुमार कहते हैं।
पर जब उनसे पुनर्भरण (रेप्लेनिशमेंट स्टडी) अध्ययन, पर्यावरणीय स्वीकृतियों, नियमों के हो रहे जमकर उल्लंखन के बारे में बताया गया और मौका मुआइना करने का आग्रह किया गया तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। उनके अनुसार खनन विभाग के पास कर्मचारियों की भारी कमी है। विभाग में कोई तकनीकी विशेषज्ञ भी नहीं है। साथ में विभाग के पास उचित कार्यालय और संसाधनों का भी अभाव है।

नियमों के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर खनन से पूर्व पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन, पर्यावरण प्रबंधन योजना और पुनर्भरण (रेप्लेनिशमेंट स्टडी) अध्ययन का होना जरूरी है। परन्तु जिला प्रशासन और खनन विभाग इनके बारे में कुछ नहीं बता पाया।
नियमों के अनुसार खनन की निगरानी के लिए खनन क्षेत्र में सीसीटीवी स्थापित करना और ट्रकों में बारकोड, जीपीएस सिस्टम लगवाना, आवंटित खनन क्षेत्र का खम्बों के माध्यम से चिन्हित करना अनिवार्य है। परन्तु क्षेत्र भ्रमण, ग्रामीणों और अधिकारियों से बातचीत करने से ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब नियम केवल कागजों तक ही सीमित हैं।
खनन का बढ़ता कारोबार, विभाग संसाधनों से लाचार
साथ में डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फाउंडेशन की स्थिति भी स्पष्ट नहीं है। लघु खनिज खनन अधिनियम 1957 की धारा 9 बी के तहत सभी खनन प्रभावित जिलों में इसका गठन किया जाना अनिवार्य है। इसके तहत खनन से मिले राजस्व का एक तिहाई हिस्सा, खनन से हुई पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए खर्च किया जाना होता है।
जानकारी के अनुसार हरियाणा में खनन कार्यों में लगी कंपनियों, ठेकेदारों को कुल भुगतान किए गए राजस्व का दस प्रतिशत धनराशि खनन से हुए नुकसान की भरपाई के लिए देनी होती है। राज्य सरकार भी अपनी ओर से इस फण्ड में पांच प्रतिशत योगदान राशि देती है। इस मद से पैसा खनन प्रभावित गांवों में जनसुविधाओं, जनकल्याणकारी कार्यों में भी खर्च किया जा सकता है।
परन्तु इस सम्बन्ध में कोई भी सूचना जनता के बीच उपलब्ध नहीं है। विभाग ने कोई वेबसाइट भी नहीं बनायी है, जहाँ इस मद में जमा राशि और खर्च का विवरण दिया गया हो। ऐसी स्थिति में प्रथम दृष्टतया, ऐसा प्रतीत होता है, इसमें बड़े स्तर पर अनियमितताएं बरती जा रही हैं।

यमुना, भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण सहायक नदी है। पहले ही पर्याप्त पर्यावरणीय प्रवाह के अभाव और बढ़ते प्रदुषण के कारण, यमुना नदी मरणासन्न स्थिति में पहुँच गई है। ऐसे में हरियाणा राज्य में निर्बाध तौर पर जारी अवैध, मशीनी और अवैज्ञानिक रेत, पत्थर खनन से, यमुना नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है और बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीणों के जीवन पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं।
प्रशासन और खनन उद्योग की इस लापरवाही पर क्या न्यायालय और राष्ट्रीय हरित पंचाट (NGT) क्या चुप रहेंगे? क्या यमुना बेसिन के बाकि राज्यों को नदी की कोई चिंता नहीं है?
Composed by Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)
End Notes:-
[i] https://sandrp.in/2019/10/01/surplus-2019-monsoon-in-india-proves-imd-and-skymet-wrong/
[ii] https://sandrp.in/2016/03/02/unabated-riverbed-mining-in-saharanpur-up-puts-delhis-water-supply-under-threat/
[iii] https://www.etvbharat.com/hindi/haryana/state/yamunanagar/yamunanagar-air-quality-index/haryana20191029233700616
[iv] https://www.bhaskar.com/news/ten-major-problems-in-the-district-the-government-system-in-failing-to-get-rid-of-them-so-far-022616-3146039.html
[v] https://sandrp.in/2019/10/04/monsoon-2019-state-wise-rainfall/
[vi] https://sandrp.in/2019/07/12/3-kids-drowned-to-death-in-a-day-in-illegal-sand-mining-pits/