कमल पंवार का अतिथि लेख
28 जुलाई के सबेरे तीन बजे के आस पास गाँव में कोलाहल मच गया। भारी बारिश के बीच गाँव के ऊपरी हिस्से और बगल वाले गदेरे में अचानक भारी गाढ़ आ गई। कुछ ही देर में तेज गर्जन से मलबे की धारा गाँव के पास से होकर गुजर गई और अपने पीछे बर्बादी का भयानक मंजर छोड़ गई।
क्षेत्र के बारे में
मैं चमोली जिले के बूरा, पडेर गाँवों की बात कर रहा हूँ। ये गाँव तिमदो तोक, विकासखंड घाट में पड़ते हैं। इन गाँवों की कुल आबादी लगभग 5000 है। केवल बूरा गाँव ही लगभग 2 किलोमीटर के क्षेत्र में चार अलग-अलग भागों च्याना, चांजलि, सीमार बसा है। बूरा से ऊपर की ओर उत्तर पश्चिम दिशा में पडेर गाँव लगभग दो किलोमीटर दूर है।
यहाँ के अधिकांश ग्रामीण पशुपालन और खेतीबाड़ी से गुजर बसर करते हैं। बड़ी संख्या में लोग गरमी और बरसात के समय गाँव के ऊपर के जंगली क्षेत्रों में अपने पशुओं को लेकर खेती करने जाते हैं और शीतकाल के समय जब बर्फ पड़ती है तो नीचे आ जाते हैं।

पडेर गाँव से च्याना की ओर एक ग्रामीण सड़क योजना का काम भी चल रहा है। ये सारा इलाका, नंदाकनी नदी के जलागम क्षेत्र का हिस्सा है जो बूरा से करीब एक किलोमीटर नीचे दक्षिण दिशा से होकर बहती है और तकरीबन 25 किलोमीटर बाद नंदप्रयाग में अलकनंदा नदी में समाहित हो जाती है। अपने क्षेत्र, जीवन यापन, आजीविका के साधन पर मैंने 30 जुलाई 2020 को अपने यूट्यूब चैनल पर वीडियो डाली है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं।
घटना के बारे में
क्षेत्र में 27 जुलाई की दोपहर से ही कभी कम तो कभी ज्यादा बारिश चलती रही। रात दो बजे के बाद गाँव के ऊपरी हिस्सों में बेतहाशा मूसलाधार बारिश हुई। बीच बीच में बिजली कड़कने की आवाजें भी आती रही। इसी दौरान हमारे गाँव से लगभग 50 मीटर ऊपर मलबे की धाराएं फट पड़ी। नजदीकी गदेरे में सैलाब आ गया। जिसमें बड़े बड़े पत्थर, मलबा कान फोड़ू आवाज के साथ लुढ़क रहे थे।
तीन बजे के करीब गाँव में भी भारी शोर शराबा मच गया। अंधेर के बीच लोग अफरा तफरी में इधर उधर भाग रहे थे। तब तक इसी तरह के नुकसान की खबर, ऊपर पडेर गाँव की छानियों में रहने वाले लोगों से भी आने लगी। स्थानीय खड्ड, गदेरे उफान पर थे। मलबे का रेला तेजी गति से भयंकर चीत्कार करता हुआ नीचे बह रहा था। देखते ही देखते गदेरे के पास के पुश्तैनी खेत, गौशाला और मकान भी मलबे की चपेट में आ गए।
बादल फटने से हुआ भारी नुकसान
रात में ही बूरा गाँव के शबरी लाल को सबसे पहले इस अतिवृष्टि का पता चला, जब अधिकांश गाँववाले गहरी नींद में थे। उनके अनुसार गदेरे के रौद्र रूप से उनका घर हिलने लगा था। उन्होंने लोगों को जगाने और सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए आवाजें लगाई।
किसी के कुछ समझने से पहले बूरा गाँव की तीन गौशालाएं, मलबे की गाढ़ की चपेट में आ गई। बड़ी मुश्किल से इनमें सो रहे लोगों ने भागकर अपनी जान बचाई। पर खूटे से बंधे दो बैल, पांच बकरियां, एक गाय और एक भैंस मलबे के नीचे दबकर मर गयी। बहते मलबे का वेग इतना तीव्र था कि तीनों गौशालाएं बुरी तरह टूट गयीं।

ये गौशालाएं किराना राम, शेरी राम और गैना लाल की थी। जो पशुपालन और खेती से ही गुजारा करते थे। उफान में किराना राम के रूपये-जेवर जैसे कीमती से लेकर रोजमर्रा का सामान या तो बह गया या मलबे में ही दब गया। साथ में गाँव के कई मकानों में मलबा भर गया और कई कई खेतों के बड़े हिस्से, फसल समेत बह गए।
गाँव में बादल फटने से हुए नुकसान का मैंने एक जमीनी और विस्तृत वीडियो रिपोर्ट बनाई है जिसका लिंक यहाँ पर दिया गया है।
पडेर गाँव में महिला की मौत
सुबह होते होते, पता चला कि ऊपर के पडेर गाँव में इससे भी अधिक नुकसान हुआ है। यहाँ के कई परिवार तिमदो में रहते हैं जहाँ खेती की उपजाऊ जमीन है। रघुबीर सिंह भी पुरे परिवार के साथ गाँव से दूर तिमदो में सालों से रह रहे हैं।
बादल फटने के बाद गदेरे में आये उफान से परिवार का एक घर पूरी तरह मलबे से भर गया। जिसमें दबने से इनकी पत्नी देवेश्वरी देवी की मौत हो गई और बारह साल की लड़की प्रीति घायल हो गई। जिसका अभी अस्पताल में इलाज चल रहा है। इसके अलावा उनके पशु और घर का सारा सामान मलबे में दब गया।

उजाला होने पर गाँव में हर कहीं बर्बादी के निशान थे। दोनों जगह लगभग एक दर्जन से अधिक घरों को मलबे से नुकसान हुआ था। मलबे के रास्ते में आएं खेतों का तो कहीं पता भी नहीं चल रहा था। दोनों गाँवों की 50 नाली से अधिक खेती की जमीन को भारी नुकसान हुआ। जिन्होंने ये तबाही देखी उनका कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में इस तरह की घटना पहले कभी नहीं देखी।
अधूरी सड़क ने बढ़ाया नुकसान
पिछले दो सालों से पडेर से लेकर राजजात क्षेत्र के लिए ग्रामीण सड़क बन रही है। इसकी लम्बाई लगभग 15 किलोमीटर है। अभी तक इसमें सिर्फ 5 किलोमीटर के करीब केवल कटान का काम हुआ है। यह रोड हमारे बूरा गाँव और च्याना के ऊपर से गुजरती है। रोड कटान के दौरान सारा मलबा ढलान, खड्डों और गदेरों में गिराया गया। जिससे गाँव वालों के जंगल, चाराभूमि और खेतों को नुकसान हुआ। साथ में गाँव के घरों पर मलबा गिरने का खतरा बन गया।

इस रोड़ पर जगह जगह भूस्खलन भी हो गए हैं। बड़े पत्थर, चट्टानें रोड़ पर आ गई हैं। जिससे 5 मीटर चौड़ी सड़क कहीं कहीं मुश्किल से 1 मीटर चौड़ी बची है। हालत ये है कि ग्रामीणों का इस सड़क पर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। महिलाएं तो जान जोखिम में डालकर घास लाती हैं। हमेशा दुर्घटना का डर बना रहता है। ग्रामीणों ने कई बार आपत्ति भी की है परन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। इसका पूरा विवरण मैंने अपने यूट्यूब चैनल पर जुलाई 22, 2020 को ही दिया था। कृपया वीडियो देंखें।
आखिरकार ठेकेदार द्वारा ढलानों, गदेरों में मलबा डालने की हम सबको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। क्योंकि बादल फटने से बड़े पैमाने पर यही मलबा हमारे गाँव, खेतों, गौशालाओं और घरों में पहुँच गया। जिससे गाँव में नुकसान बढ़ गया। सरकार को इस गंभीर विषय पर ध्यान देना चाहिए और सड़क निर्माण से बनने वाले मलबे को डंपिंग जोन में ही डालना चाहिए।

बहरहाल प्रशासन और आपदा राहत दल ने मौका मुआइना तो किया है पर घटना से प्रभावित ग्रामीणों को कोई भी मदद नहीं मिली है। सरकार से निवदेन है पीड़ित लोगों के जख्मों पर जल्द मरहम लगाए। भगवान से प्रार्थना है हमारे पहाड़ों के अन्य गाँवों को ऐसी त्रासदी से ना गुजरना पड़ें।
लेखक के बारे में
मेरा नाम कमल पंवार है। मैं 35 वर्ष का हूँ और एम.ए. तक शिक्षा उपरांत अपने गांव में रहकर ही जीवन यापन कर रहा हूँ। मेरा गाँव बूरा, विकासखंड घाट, जिला चमोली में है। मेरा विलेज बॉय, विलेज लाइफ नाम से यूट्यूब चैनल है जिसके माध्यम से, मैं अपने गाँव व क्षेत्र की विशेषताओं और समस्याओं को लोगों तक पहुंचाता हूँ।
हमारे अधिकांश ग्रामीण खेती, पशुपालन और ध्याड़ी मजदूरी से जीवन यापन कर रहे हैं। बादल फटने की घटना से मैं और अन्य ग्रामीण अब भी सदमे में हैं और नहीं जानते इस नुकसान की भरपाई में कितना वक्त लगेगा। kamallotuspanwat143@gmail.com
टिप्पणी:- उत्तराखंड में बढ़ती बादल फटने की घटनाएं
विशेषज्ञ एक सिमित भू भाग पर एक घंटे के अंदर 100 मिलीमीटर से अधिक हुई बारिश को अतिवृष्टि या बादल फटना मानते हैं। जानकारों के अनुसार उत्तराखण्ड में पिछले एक दशक से बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं और हर मानसून सीजन में औसतन 20 से अधिक ऐसी घटनाएं हो रही हैं।
इस वर्ष अभी तक बादल फटने की कम घटनाएं हुई हैं। 19 जुलाई 2020 को म्युन्सारी में दोहरे क्लाउड बर्स्ट को मिलाकर 28 जुलाई 2020 को घाट क्षेत्र में हुई यह शायद इस सीजन की तीसरी घटना है। जिसका बड़ा कारण निगरानी के साथ साथ सक्रिय मानसून वर्षा का अभाव है।

SANDRP ने वर्ष 2018[i] और 2019[ii] उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं का संकलन किया है।जिसमें पाया गया है कि अभी तक राज्य सरकार की ओर से इन घटनाओं के अध्ययन और रोकथाम के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। राज्य में वर्षा मापन केंद्रों का नितांत आभाव[iii] है जिसके कारण अधिकांश ऐसी घटनाएं दर्ज ही नहीं हो रही हैं। साथ में 2013 केदारनाथ आपदा के बाद से डॉप्लर राडार लगाने की बात हो रही है परन्तु सात साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)
End Notes:
[i] https://sandrp.in/2018/07/21/uttrakhand-cloudburst-incidents-2018/
[ii] https://sandrp.in/2019/12/11/uttarakhand-cloud-bursts-in-monsoon-2019-no-doppler-radars-six-years-since-2013-disaster/
[iii] https://sandrp.in/2019/06/26/cloud-burst-in-chouthan-no-rain-says-disaster-control-room-pouri-garhwal/
बहुत बहुत धन्यवाद सर।।।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
अपने उत्तराखंड के आपदा पीड़ितों, दीनदुखियों के लिए ऐसे ही काम करते रहो….
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Thanks a lot, Jamal, keep up the great work.
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