फरवरी 7 को चमोली में आई विकराल बाढ़ अपने पीछे भीषण तबाही के निशान के साथ कुछ अहम सबक भी छोड़ गई है जो भविष्य में आपदा प्रबंधन को बेहतर बनाने में बहुत कारगार साबित हो सकते हैं।
ऐसा ही एक असंभव किस्सा स्थानीय महिला मंगसीरी देवी का है जिनका 27 साल का लड़का विपुल कैरेनी एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना में कार्यरत है।
घटना के दिन विपुल की माँ मंगसीरी और पत्नी अनीता ने ऊचाई पर स्थित अपने गांव ढ़ाक से धौलीगंगा नदी में आई जलप्रलय को देखा। उसके बाद उसने अपने बेटे को कई बार फोन किया जिसके कारण उनके बेटे समेत 25 अन्य लोगों का जीवन बच गया।
विपुल कैरेनी के अनुसार जब सुबह लगभग साढ़े दस बजे मेरी माँ ने मुझे मोबाइल पर फोन किया, उस उक्त मैं बैराज स्थल पर काम कर रहा था। वो मुझे चिल्ला-चिल्ला कर नदी से दूर भागने के लिए कह रही थी। परन्तु मैंने उसे गंभीरता से नहीं लिया और कॉल काट दिया। पर माँ ने मुझे फिर संपर्क किया और बताया की नदी में बाढ़ आ रही है और मुझे तुरंत बैराज से दूर जाना चाहिए।
गाँव में हमारा घर ऊंचाई पर है, जहाँ से माँ ने धौलीगंगा में तेजी से बढ़ते हुए बाढ़ को देख लिया था जिसके बारे में मुझे कतई भी आभास नहीं था।
विपुल ने आगे बताया की माँ के बार बार फ़ोन करने से वे हालात के प्रति गंभीर हो गए और अपने दो दर्जन से अधिक साथी कर्मचारियों को बैराज से दूर जाने के लिए सचेत किया। “अगर मेरी माँ समय पर चेतावनी नहीं देती तो हममें से कोई भी आज जीवित नहीं होता,” विपुल ने भावुक होकर कहा।
विपुल की दो महीने पहले ही शादी हुई है। वे पिछले सात साल से तपोवन योजना में भारी वाहन चालक के तौर पर कार्यरत है। घटना के दिन लगभग 9 बजे, विपुल अपने गांव ढ़ाक से तपोवन के लिए चल दिया जो आज पूरी तरह कीचड़ और मलबे से भरा पड़ा है। “रविवार अवकाश के बावजूद मैं बैराज पर काम करने आया। मुझे सुबह लगभग 10.35 बजे, मां ने लगातार फोन कॉल किया, जिस कारण मैं अपने साथियों के साथ समय रहते बाढ़ की चपेट में आने से बच गया।” विपुल ने बताया।
घटना को याद करते हुए विपुल बताते हैं “सबसे पहले, मैंने माँ का केवल चिल्लाना सुना और इसे गंभीरता से नहीं लिया। फिर मैंने माँ को कहा की कोई पहाड़ नहीं टूटा है और वो चिंता ना करे। उसने मुझे फिर से फोन किया और नदी से दूर जाने की विनती की। मेरी माँ और पत्नी अनीता ने नदी का जलस्तर सामान्य से करीब 15 मीटर ऊपर उठते हुए देखा था जो सबकुछ तबाह करते हुए आगे बढ़ रही थी। माँ के बार-बार गुहार लगाने से हम सभी साइट पर एक सीढ़ी की ओर भागे और अपनी जान बचाने के लिए इस पर चढ़ गए।
ढ़ाक गांव के ही संदीप लाल ने, जो मंगसीरी देवी के इस प्रयास से बच गए, घटना के अंतिम दो मिनटों को याद करते हुए बताया, “मैं अंदर था और बिजली की लाइन में खराबी को ठीक कर रहा था। जब विपुल ने फोन किया, तो मैं पूरी क्षमता से भागते हुए बाहर आ गया। मेरा जीवन विपुल की माँ की वजह से बचा है और इस घटना मुझे सबक मिला है कि कभी भी माँ-बाप की चेतावनी को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।”
संदीप ने आगे बताया, “साइट पर लगभग 100 अन्य लोग थे जो लापता हैं, हमें डर है कि वे सब बह गए हैं। क्योँकि सुरक्षा के लिए जिस सीढ़ी का हम उपयोग करते थे, जबतक उनको बाढ़ आने का पता चला वो मलबे से भर गई थी और लोग उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।” तपोवन ग्राम प्रधान किशोर कनियाल ने भी मंगसीरी देवी के प्रयास की सराहना है।
उपरोक्त विवरण टाइम्स ऑफ़ इंडिया में 14 फरवरी को शिवानी आज़ाद द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट और विपुल कैरेनी से बातचीत पर आधारित है।
विपुल ने आगे जनतक के रिपोर्टर (रिपोर्ट में उनका और उनकी माता का नाम गलत छपा है) को बताया कि “हालांकि, हमारे लिए बैराज की ऊंची सुरक्षा दीवार पर चढ़ना आसान नहीं था। फिर भी दीवार पर लगे सरियों पकड़कर जैसे-तैसे सभी ऊपर चढ़ गए और सुरक्षित स्थान पर जा पहुंचे। जब मैं घर पहुंचा तो मां मुझे गले लगा फूट-फूटकर रोने लगीं। उनके लिए यह खुशी का सबसे बड़ा मौका था।“
विपुल ने बैराज के नीचे काम कर रहे श्रमिकों को भी आवाज देकर और सीटी बजाकर चेताने का पूरा प्रयास किया। लेकिन कोई आवाज उन तक नहीं पहुंच पाई क्योंकि तब तक नदी में बाढ़ की गर्जन बहुत बढ़ गई थी और देखते ही देखते 50 से अधिक श्रमिक सैलाब की भेंट चढ़ गए। यह खौफनाक दृश्य आपदा के छह दिन बाद भी उसकी आंखों में तैर रहा है। वह साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाया, इसका हमेशा उसे अफसोस रहेगा।
जैसा कि संड्रप ने अपने साप्ताहिक न्यूज़ बुलेटिन में पहले ही लिखा है कि मंगसीरी देवी के उल्लेखनीय प्रयास से चमोली आपदा में कम से कम दो दर्जन लोगों की जान बच गई। आपदा के समय ऐसा काम दुर्लभ और प्रेरणादायक है। चिंता की बात है कि आपदा पूर्व निगरानी और आपदा के दौरान लोगों को बचाने के मामले में राज्य आपदा प्रबंधन और विशेषकर एनटीपीसी आपदा प्रबंधन तंत्र के प्रयास और उपस्थिति पूरी तरह से नाकाफी साबित हई हैं।
निसंदेह, एक पूर्व चेतावनी प्रणाली (अर्ली वार्निंग सिस्टम) होनी चाहिए थी जिससे इस घटना में अनेक अन्य लोगों की जान बचा सकती थी। लेकिन यह प्रणाली ऋषिगंगा, धौलीगंगा बेसिन से लेकर उत्तराखंड में आपदा संभावित क्षेत्रों में कहीं भी मौजूद नहीं है।
वास्तव में फरवरी 18, 2021 को एनआईडीएम-फिक्की द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में हिमस्खलन, ग्लोफ्स, फ़्लैशफ्लड और रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर विषय पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में डॉ. काला चंद सैन, निदेशक वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी ने भी कहा कि फरवरी 7 की आपदा के दौरान एनटीपीसी कंपनी के पास तपोवन विष्णुगाड परियोजना क्षेत्र में खतरे से घिरे लोगों को बचाने के लिए पर्याप्त समय था।

एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना 2008 से लेकर आज तक बहुत सारी आपदाओं का शिकार हुई है, लेकिन बांध निर्माण कार्य शुरू होने के लगभग 15 सालों बाद भी यह केवल पूर्व चेतावनी प्रणाली को लागू करने की बात कर रही है। क्या एनटीपीसी और बिजली मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ-साथ उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग को इस आपदा को त्रासदी बनाने के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाना चाहिए?
कम से कम मंगसीरी देवी के प्रयास को तुरंत पुरस्कृत करने की जरूरत है और जो काम आपदा प्रबंधन विभाग को करना था उसे एक साधारण महिला के असाधारण प्रयास ने किया जिसके लिए क्या उन्हें उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष का मानद पद नहीं दिया जाना चाहिए?
हिंदी रूपांतरण भीम सिंह रावत (bhim.sandrp@gmail.com)
This is the proof of the fact that rest of India is still under a colonial rule after 73 years of Independent Delhi. This is the main reason why hydropower projects all around India have to face local obstructions.
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