Ramganga

उत्तराखंड: सड़क मलबे में दफन होती रामगंगा की धाराएं

यह सचित्र रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे उत्तराखंड में ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण दौरान उत्तपन्न मलबे को नियमों के विपरीत छोटी जलधाराओं, गदेरों में फेंक दिया जाता है जो नदी पर्यावरण तंत्र को तात्कालिक तौर पर नुकसान पहुँचाने के अलावा भविष्य में किसी बड़ी आपदा का कारक भी बन सकती है।  

स्यूंसाल गांव निर्माणाधीन सड़क मार्ग (काली रेखा), प्रभावित बारामासी गदेरों (नीली रेखा), मलबे से दबे गदेरों का क्षेत्र (लाल रेखा) को दर्शाती गूगल अर्थ की तस्वीर। 

यह मामला पौड़ी जिले के थैलीसैंण प्रखंड में स्थित स्यूंसाल गांव का है जो रामगंगा बेसिन में आता है। वर्तमानमें लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी)बैजरो मंडल द्वारा गांव में ;लगभग 7 किमीलंबी सड़क निर्माणाधीन है।

पत्युडा गडेरा में फेंका गया सड़क मलबा। Feb. 2022

हालाँकि ग्रामीण अपनी लंबे समय से लंबित मांग को साकार होते देखकर काफी खुश हैं, परन्तु सड़कके मलबे का कुप्रबंधन एक संभावित आपदा का खतरा बन गया है, जैसाकि हाल में राज्य के कई गाँवो में देखने को मिला है।

पहाड़ ढलान से नीचे फेंके गए सड़क मलबे में दबा गांव का पुराना पैदल मार्ग। (17 फरवरी 2022)

अब तक प्रथम चरण में 7 मीटरचौड़ी सड़क की लगभग 80 प्रतिशतदोहरी कटाई की जा चुकी है इस दौरान बड़ी मात्रा में मलबा सीधे ढलानों पर फेंका जा रहा है, जिससेनदियों के अलावा वन क्षेत्र, सामान्यचारागाह भूमि, ग्रामीण पैदल मार्ग और कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं। 

पहाड़ी ढलान पर डाला गया सड़क मलबा जिससे पंचायती वनभूमि में लगे स्थानीय पेड़ों और वनस्पतियों को नुकसान हो रहा है ।

जहां सर्वेक्षण के दौरान ग्रामीणों को लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों द्वारा हर किलोमीटर में 3 से 4 मक डंप यार्ड बनाने की जानकारी दी गई, वहींजमीन पर अभी एक भी डंप यार्ड नहीं बनाया गया है। 

सड़क मलबे से बंद खड़ी डा गदेरा का प्रवाह और बहाव क्षेत्र। 

अभी तक पत्यूड़ा, खड़ी डा, भूतु, मैल्या, लिम डा समेत दर्जन भर बारामासी और बरसाती गदेरों का बड़ा हिस्सा मलबे में दफ़न हो चूका है जिससे जलीय जीवों के जीवन और आवास पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है। तीव्र ऊंचाई से गिरते ये गदेरे रामगंगा नदी तंत्र में प्रथम दर्जे की जलधाराएं हैं जो मिलकर बिन्नू नदी को बनाती हैं। 

जेसीबी द्वारा पहाड़ी ढलान और लिम डा गदेरे में सड़क मलबा डालने की तस्वीर। 

अल्मोड़ा स्थित के देघाट कस्बे में सहित दर्जनों गांव पीने योग्य और सिंचाई की जरूरतों के लिए बिन्नू नदी पर आश्रित हैं। ये जलधाराएँ वन्यजीवों के लिए जल स्रोत के अलावा के क्षेत्र में सांस्कृतिक, मछली आखेट, पर्यटन आदि गतिविधियों का भी अटूट हिस्सा हैं।  

मैल्या गदेरे के रास्ते में डाला जा रहा है सड़क का मलबा

जहाँ सड़क कटान स्थल पर गदेरों का स्वरूप बिगाड़ दिया गया हैं वहीं निचले क्षेत्र को मलबे से पाट दिया गया है जबकि इस नुकसान को सीमेंट के पाइप अथवा पुलिया निर्माण कर आसानी से रोका जा सकता था ताकि जलधारा निरंतर बहती रहे। 

बहाव क्षेत्र अवरुद्ध होने के कारण खडी डा गदेरा निर्माणाधीन सड़क पर बहने लगा।

7-8जनवरी, 2022 कीबारिश के दौरान, खडी डा गदेरे में आई हल्की गाढ़ (बाढ़) सड़क के निर्माणाधीन सड़क के हिस्से को बहा ले गई क्योंकि गदेरे का प्राकृतिक मार्ग सड़क मलबे से बंद पड़ा था।  

लिम डा गदेरे में फेंके गए पेड़ और मलबा ।

जैसे-जैसे सड़क पहाड़ी को पार करते हुए ऊपर चढ़ती है, इन गदेरों के बहाव क्षेत्र में दो से तीन स्थानों पर मलबा डाला गया है। परिणामस्वरूप लिम डा, भूतु, खडी डा गदेरों का सौ मीटर से अधिक हिस्से पूरी तरह से मलबे में गायब हो गए हैं।

सड़क मलबे से अवरुद्ध भूतु गदेरे का क्षेत्र। 

पूर्व में भूतु गदेरे का किनारा पेड़ों, झाड़ियों, वनस्पति से ढका होता था और मानव पहुँच से बाहर थे, परन्तु आज यह भूभाग बंजर अथवा युद्धक्षेत्र प्रभावित प्रतीत होता है। 

30 जनवरी 2022 कोमलबा निस्तारण की स्थिति का निरीक्षण करते राजस्व अधिकारी।

प्रशासन को जब इस गंभीर समस्या से अवगत कराया गया तो राजस्व अधिकारी संदीप कुमार ने 30 जनवरी 2022 को सड़क निर्माण का निरीक्षण किया और सड़क मलबे के निस्तारण में लापरवाही पायी। 

खडी डा गदेरे के ऊपरी हिस्से में पहाड़ी ढलान पर फेंका गया सड़क मलबा।

 उन्होंने मौखिक रूप से जेसीबी चालकों को लिम डा और खडी डा गदेरों से तीन दिन में मलबा हटाने का निर्देश दिया। राजस्व विभाग ने आवश्यक कार्रवाई के लिए लोक निर्माण विभाग बैजरो के कार्यकारी अभियंता विवेक सेमवाल को सूचित किया। 

सड़क मलबे में दफ़न भूतु गदेरे का मध्य भाग 

इस मामले में पीडब्ल्यूडी के पर्यवेक्षक, कनिष्ठअभियंता को कई बार अवगत  किया गया लेकिन विभाग की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। जहां अधिकारियों का कहना है कि ठेकेदारों को सड़कों पर मलबा डालने की अनुमति नहीं है, वहींजमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है।

दिलचस्प बात यह है कि पीडब्ल्यूडी के मई 2017 केदिशा-निर्देश में डंपिंग यार्ड में सड़क के मलबे के पुन: उपयोगऔर सुरक्षित निपटान का भी प्रावधान है, लेकिनयह नियम सिर्फ कागजों तक ही सीमित है।

सितंबर 2021 में तुड़ाय गदेरे में बादल फटने का प्रभाव अभी भी दिखाई दे रहा है।

गौरतलब है कि इसी स्यूंसाल गांव में 7 सितंबर,2021 को ‘बादल फटने’ की घटना से फसलों, खेतों,पेड़ों, रास्तों,पैदल पुल को काफी नुकसान हुआ है, जिसकी विस्तृत रिपोर्ट यहाँ देखी जा सकती है।

बादल  फटने से आई बाढ़ के प्रभाव को गूगल अर्थ तस्वीर में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है जो इस बात के प्रति चेता रहा है कि यदि गदेरों के बहाव क्षेत्रों को मलबे में दबा दिया जायेगा तो अतिवृष्टि के समय मानव निर्मित आपदा निश्चित है।  

सड़क मलबा प्रभावित भूतु गदेरे के किनारे ‘गदेरों में मलबा आपदा को न्यौता’ का अहम सन्देश देती स्यूंसाल गांव की महिलाएं।

 मानसून पूर्व का समय  जब राज्य में बादल फटने की अधिकांश घटनाएं होती हैं अब नजदीक है। ऐसी स्थिति में अगर समय रहते लोक निर्माण विभाग और स्थानीय प्रशासन इस मसले का समाधान नहीं करेंगे तो सड़क मलबे से भरे गदेरे आपदा के नुकसान को कई गुणा बढ़ा सकते हैं।

Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)

यह फोटो ब्लॉग 05 मार्च 2022 को अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया जा चुका है। इस विषय पर विस्तृत रिपोर्ट यहाँ देखी जा सकती है।

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