बाणसागर बाॅध, सोन नदी, गंगा नदी और पटना को दर्शाता मानचित्र
21 अगस्त 2016 की सुबह, गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ते हुए, पटना में 50.43 मीटर पर पहुॅच गया। जिससे पटना में गंगा नदी अपने पहले के उच्चतम बाढ़स्तर 50.27 मीटर से 16 सैंटीमीटर ऊपर बह रही थी। 22 अगस्त 2016 तक पानी का जलस्तर गंगा नदी के किनारे तीन अन्य स्थानों पर उच्चतम बाढ़स्तर को पार कर गया। जिसका विवरण निम्न हैः-
स्थान 22.08.2016 को उच्चतम बाढ़स्तर पुराना उच्चतम बाढ़स्तर
बलिया उत्तरप्रदेश 60.30 मीटर 60.25 मीटर (14 सितंबर 2003)
हाथीदाह, बिहार 43.17 मीटर 43.15 मीटर (07 अगस्त 1971)
भागलपुर बिहार 34.55 मीटर 34.50 मीटर (05 सितंबर 2013)
इस तरह से हम देखते हैं कि पटना में उच्चतम बाढ़ का रिकार्ड तोडने के बाद, अब यह बाढ़ गंगा नदी के किनारे बसे बिहार और उत्तरप्रदेश के अन्य इलाकों में पहुॅच रही है। यहाॅ यह बात उल्लेखनीय है कि बिहार में अब तक वर्षा औसत से 14 प्रतिशत कम हुई है। सवाल यह उठता है कि इसके बावजूद गंगा में रिकार्ड तोडने वाली बाढ़ क्यों आयी?
बिहार के अनेक जिले इस वक्त बाढ़ की चपेट में हैं। जिसकी वजह से कम से कम 10 लाख लोग प्रभावित हैं और 2 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है साथ में कई लोग जान गॅवा चुके हैं। सिर्फ 21 अगस्त 2016 को ही, दीदारगंज, भक्तियापुर, दानापुर छपरा, वैशाली और मानेर में राष्ट्रीय आपदा राहल दल द्वारा 5300 से अधिक लोगों को बचाया गया था। इस सबसे, ऐसा प्रतीत होता है कि यह बाढ़ सालाना तौर पर आने वाली बाढ़ो जैसी ही प्राकृतिक आपदा है।
पंरतु यह बात नहीं है। उपलब्ध जानकारी के आधार पर पता चलता है कि बिहार और उत्तरप्रदेश मेें इस समय जारी अभूतपूर्व बाढ़ में दो बाॅधों की मुख्य भूमिका है। पहला बाॅध है, मध्यप्रदेश में सोन नदी पर बना बाण सागर बाॅध और दूसरा पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बना फरक्का बाॅध जिसे गलती से बैराज का दर्जा दिया गया है। अगर बाणसागर बाॅध का समुचित प्रबंधन किया जाता तो इससे 10 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोडने की नौबत ही नहीं आती। जैसा की बिहार सरकार ने भी इंगित किया है, पटना में विनाशकारी बाढ़ लाने के पीछे इस बाॅध से सोन नदी में छोड़े गए पानी की बडी भूमिका है।

फरक्का पर शिप लाॅक की स्थितिः सुरक्षाकर्मियों के अनुसार इस मार्ग से औसतन तीन महीने में केवल एक जहाज ही गुजरता है। चित्रः-परिणीता दानडेकर (नवंबर 2014)
बिहार बाढ़ में फरक्का बाॅध की भूमिकाः- जैसे कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार नेे बताया है, बिहार में बाढ़ की दूसरी वजह फरक्का बाॅध है। बिहार सरकार सुझाव पर 21 अगस्त 2016 की शाम को फरक्का बाॅध के कुछ गेट खोल दिये गए, (एन डी टी वी के अनुसार, 21 अगस्त 2016 की शाम को फरक्का बाॅध के 104 गेटों को खोल दिया गया। पंरतु इस जानकारी की अभी पुष्टि की जानी हैं क्योंकि ऐसा करने से निचले इलाकों में भीषण तबाही मच सकती है। ) जिसकी वजह से गांधीघाट पर गंगा का जलस्तर 22 अगस्त 2016 को घटकर 50.11 मीटर तक पहुॅच गया जो एक दिन पहले, 21 अगस्त 2016 को 50.43 मीटर था। अपने पिछले कई सालों के बयानों की भाॅति बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने एक बार फिर कहा कि फरक्का बाॅध के कारण इससे ऊपरी इलाको में जलनिकासी प्रणाली अवरूद्ध हुई है, बाॅध की वजह से गंगा नदीतल में गाद जमा होने से नदीतल ऊपर उठा है और साथ में गंगा नदी की जल बहाव क्षमता में कमी आयी है।
नीतिश कुमार लंबे अरसे से फरक्का बाॅध की उपयोगिता का स्वंतत्र मूल्यांकन करने और इसे हटाने की बात भी उठा रहे हैं। उन्होने राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति बनाने की माॅग भी उठाई जोकि अभी तक भारत में नहीं बनी है। बिहार के मुख्यमंत्री की ये सभी माॅगे जायज है, जिन्हें वह लगातार रख रहें और हालिया समय में उन्होंने प्रधानमंत्री को भी इस मुद्दे से अवगत कराया है। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है।
फरक्का बैराज के गेट खोलने से पश्चिम बंगाल के मालदा समेत निचले कई इलाकों में बाढ़ आयी है।

फरक्का बैराज
बाणसागर निंयत्रण समिति का अधिकारिक सोन नदी जलागम मानचित्र
बाणसागर बाॅध के संचालन में गंभीर लापरवाहीः- मध्यप्रदेश जल संसाधन विभाग की अधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार राज्य के साहदोल जिले में सोन नदी पर बने बाणसागर बाॅध के जलाशय का अधिकतम स्तर 341.64 मीटर और कुल जलाशय क्षमता 5429.6 मिलियन क्यूबिक मीटर है। मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी पर बने इंदिरासागर और चंबल नदी पर बने गांधीसागर के बाद बाणसागर तीसरा बड़ा जलाशय है। इन बाॅधो को केवल मानसून के अंतिम चरण में पूरा भरा जा सकता है। साथ में मानसून के दौरान जब इन बाॅधो के निचले इलाकों में तेज बारिश व अन्य कारणों से पहले ही बाढ़ आई हो तो ऐसे समय में इन बाॅधों से पानी की निकासी नियंत्रित तरीके से कि जाती है ताकि बाढ़ की स्थिति त्रासदी में ना बदले।
फिर भी, 19 अगस्त 2016 के सुबह 0800 बजे तक बाणसागर बाॅध का जलस्तर 341.33 मीटर पहुॅच गया। इस स्तर पर जलाशय में 5169.2 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी था, जोकि इसकी कुल जलाशय क्षमता का 95.22 प्रतिशत है। इसके बाद इस बाॅध में बहुत कम मात्रा में पानी भरा जा सकता है। इसके बावजूद 18 अगस्त 2016 की शाम 1730 बजे तक, इस बाॅध से 1672 क्यूमेक (क्यूबिक मीटर प्रति सेंकण्ड) की दर से पानी छोड़ा गया। जो कि पानी की आवाक से बहुत कम था। 19 अगस्त 2016 की सुबह 0700 बजे ही, बाॅध के 18 में से 16 गेटों को खोलकर, अचानक 15798 क्यूमेक पानी छोड़ा गया। पहले से ही भारी बारिश से प्रभावित पटना समेत बिहार और उत्तरप्रदेश के अनेक इलाकों में, इतनी बड़ी मात्रा में पानी छोडने के कारण अप्रत्याशित बाढ़ आई। यदि बाणसागर बाॅध पहले से ही अपने जलाशय को इतना ना भरता तो इसे बाढ़ग्रस्त निचले इलाकों में, इतना ज्यादा पानी छोड़ने की नौबत ही ना आती। इस तरह से बिहार और उत्तरप्रदेश में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली, गंगा की अभूतपूर्व बाढ़ को टाला जा सकता था।

बाणसागर बाॅध और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों को दर्शाता मानचित्र
अक्सर जब हम, बाॅधों द्वारा निचले इलाकों में कृत्रिम बाढ़ की स्थिति से बचने के लिए, बाॅध से समय रहते पानी छोडे़ जाने की बात कहते हैं तो हमें यह तर्क सुनने को मिलता है कि बाद में बारिश ना होने की दशा में अग्रिम तौर पर छोड़े गए पानी की बर्बादी की भरपाई कैसे होगी। परंतु इस साल ऐसी अवस्था नहीं है। पूर्वी मध्यप्रदेश में दक्षिण पश्चिमी मानसून आधारित वर्षा पहले ही सामान्य से अधिक है। खास बात है कि बाॅध से नीचे ही जलागम क्षेत्र का दायरा 50 हजार वर्ग किलो मीटर से अधिक है। इसके अतिरिक्त भारतीय मौसम विभाग द्वारा पूर्वी मध्यप्रदेश में भारी बरसात की चेतावनी पहले ही जारी कि जा चुकी थी। जिसे 19 अगस्त 2016 की सुबह 0700 बजे तक गंभीरता से नहीं लिया गया। इसके बाद ही, भारी बारिश से प्रभावित और बाढ़ग्रस्त निचले इलाकों में बाॅध से भी बड़ी मात्रा में पानी छोड़ दिया गया। 23 अगस्त 2016 के दोपहर तक, बाणसागर बाॅध से, एक बार फिर बड़ी मात्रा में पानी छोड़ा जाना तय है क्योंकि 23 अगस्त 2016 में सुबह 0800 बजे तक इसका जलस्तर 340.93 मीटर पहुॅच चुका है जो इसकी कुल जलाशय क्षमता का 90 प्रतिशत है। और सभी गेट बंद है।
इसके अतिरिक्त, जून 2015 में जब बाणसागर बाॅध भरना शुरू हुआ तो इसमें पहले से ही 1808.58 मिलियन क्यूबिक मीटर की मात्रा में पानी मौजूद था। ध्यान देने वाली बात यह है कि 2015-16 एक सूखा वर्ष था, बावजूद इसके 2015-16 के अंत तक बाणसागर बाॅध में कुल जलाशय क्षमता का 33.3 प्रतिशत से अधिक जल अनुपयोगी रहा। वास्तव में यदि इतने पानी का सुखे के दौरान उपयोग किया जाता तो इसके दोहरे लाभ होते:- एक तो बाणसागर बाॅध में 1800 मिलियन क्यूबिक मीटर वर्षाजल भरने की जगह होती और दूसरे, निचले इलाकों में छोडे़ गये पानी की मात्रा को 1800 मिलियन क्यूबिक मीटर कम किया जा सकता था जिससे बाढ़ की मारक क्षमता में निश्चित तौर पर कमी होती।

फरक्का बैराज चित्रः-परिणीता दानडेकर
यहाॅ तक कि 2015-16 के दौरान, इस बाधॅ पर तीन चरणों में बने 405 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना से मात्र 721.84 मिलियन (10 लाख) यूनिट बिजली बनी। जोकि 2014-15 में उत्पादित 1388.5 मिलियन यूनिट बिजली का लगभग आधा था। (केंद्रीय उर्जा प्राधिकरण के अनुसार 2014-15 में हुए 1388.5 मिलियन यूनिट बिजली उत्पादन भी पिछले दो वर्षो की तुलना में 30 फीसदी कम था।) इस आर्थिक वर्ष के पहले चार माह अपै्रल से जूलाई के दौरान भी बाणसागर बाॅध से जलविद्युत उत्पादन केवल 161.13 मिलियन यूनिट था जोकि पिछले वर्ष (2015-16) की उसी अवधि के दौरान उत्पादित 299.05 मिलियन यूनिट से बहुत कम था। 2015-16 का उत्पादन अपने आप में पिछले दो वर्षो की तुलना में हुए उत्पादन का काफी कम था! बाणसागर बाॅध द्वारा 2015-16 और अपै्रल से जूलाई 2016 में हुआ बिजली का कम उत्पादन अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा नुकसान है परंतु ऐसा क्यों हुआ?
ये सभी बातें अनेक प्रश्नों को जन्म देती हैं जैसेः-
- आखिर क्यों सक्रिय मानसून के 6 सप्ताह पहले ही बाणसागर बाॅध की जलाशय क्षमता को 19 अगस्त 2016 में सुबह 0700 बजे 96 प्रतिशत तक भर दिया गया?
- अचानक पानी छोड़ने की स्थिति से बचने के लिए 19 अगस्त 2016 में 0700 बजे से पहले पानी क्यों नहीं छोड़ा गया?
- बिहार और उत्तरप्रदेश में आई इस अनावश्यक मानव निर्मित बाढ़ (जिसे बाणसागर बाॅण के सुचारू संचालन करके टाला जा सकता था ) से हुए नुकसान का जिम्मेदार कौन है? इस दिशा में अब तक क्या कार्यवाही की गई है?
- क्या बाणसागर जलाशय को भरने के लिए कोई नियम बने हैं? क्या इन नियमों का पालन किया जा रहा है? इन नियमों का पालन ना होने के लिए कौन दोषी है? इस संदर्भ में बाणसागर बाॅध की अधिकारिक वेबसाइट पर कोई जानकारी क्यों उपलब्ध नहीं है? बाणसागर बाॅध के संचालन की प्रक्रिया क्यों पारदर्शी और जवाबदेह नहीं है?
- एक सुखे के वर्ष में भी, बाणसागर बाॅध में क्यों 1800 मिलियन क्यूबिक मीटर उपलब्ध जल का उपयोग नहीं हुआ? जलसंसाधनों के इस कम उपयोग के लिए कौन जिम्मेदार है?
- 2015-16 में वर्ष के अंत तक भी पर्याप्त पानी होने के बावजूद बाॅध से इतनी कम मात्रा बिजली उत्पादन क्यों हुआ?
- मध्यप्रदेश सरकार ने इस विफलता की जाॅच के लिए और दोषियों को जवाबदेह बनाने के लिए क्या कदम उठाए हैं?
बाणसागर योजना के लिए खास तौर पर, बिहार और उत्तरप्रदेश को मिलाकर बनाई गई अंर्तराज्जीय बाणसागर बाॅध समिति ने इस मसले में अब तक क्या कार्यवाही की हैं? - बाणसागर संचालन समिति के अध्यक्ष के तौर पर मनोनीत, केंद्रीय जल संसाधन मंत्री ने क्या कदम उठाए हैं?
केंद्रीय जल आयोग ने इस दिशा में क्या प्रयास किए हैं? यहाॅ यह उल्लेख करना जरूरी है कि केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष, बाणसागर संचालन समिति के क्रियान्वयन समूह जिसे 1973 में हुए अंर्तराज्जीय समझौते के बाद 1976 में बनाया गया था, के अध्यक्ष होते हैं।

कल्याण रूद्र द्वारा फरक्का बैराज का चित्रण
सारांश में, उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि बाणसागर बाॅध संचालन में लापरवाही और फरक्का बाॅध द्वारा गंगा नदी की जल निकासी में कमी एवं गाद जमा होने से नदी तल में वृद्धि होने से इस वक्त बिहार और उत्तरप्रदेश एक अनावश्यक बाढ़ की त्रासदी झेल रहे हैं। तबाही का यह मंजर अभी ओर लंबा चल सकता है क्योंकि पूर्वी मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार में एक बार फिर से भारी बारिश के आसार हैं।
बाणसागर बाॅध के संचालन में बरती लापरवाहियाॅ केवल एक निष्पक्ष जाॅच से उजागर हो सकती है। दुर्भाग्य से हमारे यहाॅ ना तो ऐसी जाॅच होती है ना ही ऐसी लापरवाहियों के लिए जवाबदेही निर्धारित की जाती है। जिसकी वजह से, भवष्यि में ऐसी मानव निर्मित बाढ़ त्रासदियों का बढ़ना जारी रहेगा।
फरक्का बाॅध की उपयोगिता, कीमत, लाभ और ऊपरी एवं निचले क्षेत्रों में इसके प्रभाव को लेकर हमें जल्द एक स्वतंत्र और निष्पक्ष मूल्यांकन करने की सख्त आवश्यकता है। अन्य विक्लपों के अतिरिक्त, फरक्का बाॅध के संचालन और ढाॅचे को हटाने के विकल्पों को भी इस मूल्यांकन के दायरे में रखना चाहिए।
साथ में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति की माॅग पर भी ध्यान देने की जरूरत है। आज भी हम गाद का हमारी नदियों और नदीतंत्र की कार्यप्रणाली में महत्व को समझते नहीं हैं। जिसकी अनदेखी करने से हमादी नदियों एवं नदीतंत्र पर बहुत बुरा असर हो रहा है। गाद का हमारी नदियों और नदीतंत्र के माध्यम से डेल्टा में ना पहुॅचने की वजह से डेल्टा क्षेत्र संकुचित (Shrinking) एवं जलविलीन (Sinking) एक तरफ जहाॅ, डेल्टा क्षेत्र गाद की आपूर्ति से वंचित है, दूसरी ओर यही गाद नदीतल और बाॅधो में जमा होकर भारी नुकसान कर रही है।
आशा है इन सभी समस्याओं का जल्द समाधान किया जाएगा जो बदलते जलवायु परिवेश लगातार बढ़ रही हैं।
Himanshu Thakkar (ht.sandrp@gmail.com), SANDRP
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फरक्का बाॅध को राष्ट्र का गौरव बताता हुआ बोर्डः- चित्र परिणीता दानडेकर
बहुत सटीक और तार्किक व तथ्य परक विश्लेषण ….
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