दिल्ली चुनाव के दौरान यमुना नदी प्रदूषण एक अहम मुद्दा बना। चुनाव जीतने के बाद नई सरकार निरंतर यमुना सफाई को लेकर कई घोषणाएं और योजनाओं पर बात कर रही है। स्वयं प्रधानमंत्री और उसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री, जल संसाधन मंत्री इसके लिए बड़ी बैठक कर चुके हैं। इन सबमें हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मिलकर कार्य करने की आवश्यकता सबसे सराहनीय पक्ष रहा है। सरकार द्वारा एसटीपी क्षमता विकास, औद्योगिक प्रदूषण रोकथाम, जल संचयन बढ़ाने और जल स्रोतों को बचाने की बातें भी कही जा रही है। पर ये सब बातें तो पिछली सरकारों द्वारा पहले भी कही जा चुकी हैं और बातों से आगे ठोस नीति और सफल निष्पदान कार्ययोजना की तरफ नहीं बढ़ पा रही है। इन सबके बीच यमुना नदी स्वास्थ्य में गिरावट जारी है।
दरअसल बातों से इतर केंद्र और यमुना बेसिन की राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में सबसे बड़ी खामी है कि ये नदी को प्रदूषण और सफाई तक की सीमित संकीर्ण दृष्टि से देख रही हैं। उस पर भी अधिकतम ध्यान दिल्ली पर है जहाँ 1376 किमी लम्बी नदी का मात्र 22 किमी का हिस्सा है। योजनाकार ऐसा मान बैठे हैं कि बाकि जगह ज्यादा चिंता की बात नहीं है और भूल रहे हैं कि यमुना के ऊपरी हिस्से में अत्यधिक नदी जल दोहन और ऊपरी क्षेत्र में नदी को प्रवाह विहीन बनाने का ही दुष्प्रभाव दिल्ली में नदी प्रदूषण का एक बड़ा कारण है।
ये ही सरकारें हैं, जो एक तरफ नदी सफाई पर करोड़ों रूपये लगा रही है और दूसरी तरफ उससे कई गुना अधिक धनराशि नदी से जल दोहन की बांध, बैराज जैसी योजनाओं पर खर्च कर रही हैं। जिसका नतीजा है कि आज नदी का हिमालयी हिस्सा बांधों में कैद है, दूसरा मैदानी हिस्सा प्रवाह विहीन है, तीसरा दिल्ली-आगरा का हिस्सा अत्यंत प्रदूषित है और चौथा हिस्सा इटावा-प्रयागराज जो अपेक्षाकृत ठीक है अब केन-बेतवा और पार्वती-कालीसिंध-चम्बल जैसी बड़ी नदी जोड़ परियोजनाओं के चलते संकटग्रस्त हो गया है।
मुख्य समस्या यही है कि सरकारी योजनाकारों की नदी जल दोहन और सफाई दोनों योजनाओं की दिशा और लक्ष्य परस्पर विरोधी हैं। अतः इस विसंगति को जल्द दुरुस्त करना बहुत जरूरी है। बिना नदी को बारामासी प्रवाहमान बनाए साफ़ और निर्मल बनाना सम्भव नहीं है। इसमें केंद्र सरकार की भूमिका ज्यादा और आवश्यक है पर अब तक के प्रयासों में ये नदारद है।
छः वर्ष बीत गए हैं पर अभी तक केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा साल 2019 में राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के अध्ययन जिसमें हथनी कुंड बैराज से न्यूमतम प्रवाह को 10 कुमेक्स से बढ़ाकर 23 कुमेक्स करने की अनुशंसा है को लागू नहीं किया है। चाहे केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय हो या पर्यावरण मंत्रालय और इनके उपक्रम केंद्रीय जल आयोग, अपर यमुना रिवर बोर्ड या नमामि गंगे, ये अब तक 2015 के राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के उस आदेश को भी ठीक से लागू नहीं करा पाएं हैं जिसमें निर्मित बांधो में उपलब्ध जल का न्यूमतम 15-20 फीसदी नदी में छोड़ा जाना अनिवार्य कहा गया है। जल शक्ति मंत्रालय ने गंगा के सन्दर्भ में यह आदेश अक्टूबर 2018 में अधिसूचित भी कर दिया है पर अब तक इसका सफल निष्पादन नहीं करा पाई है।
हाल के कुछ वर्षों में यमुना बेसिन सरकारें भी बिलकुल विपरीत दिशा में कार्य कर रही हैं। यमुना जल दोहन सबकी प्राथमिकता है। पर यमुना को प्रवाहमान बनाने पर सब विमुख है। इससे उल्ट, जहां हरियाणा सरकार शिवालिक क्षेत्र में बांध बनाकर यमुना को मिलने वाला उसकी सहायक नदियों का पानी सरस्वती नदी में डालना का प्रयास कर रही है। वहीं दिल्ली सरकार, गंगा के पानी से यमुना के दिल्ली के हिस्से में बहाव बढ़ाना चाहती है।
इससे सरकारी योजनाओं में समग्रता और दूरदृष्टि का नितांत अभाव पता चलता है। जबकि ये सरकारें अपने राज्यों में यमुना अहितकर कार्यों चाहे असंवहनीय (Unsustainable) एवं अवैध मशीनी खनन हो या नियमपूर्ण सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट शोधन संयंत्र (एसटीपी, सीईटीपी) संचालन आदि सुनिश्चित करने में पूरी तरह विफल रही हैं।
दिल्ली से ऊपर हरियाणा-उत्तर प्रदेश में तो आद्यौगिक स्तर पर मशीनी रेत खनन से यमुना नदी की गैर मानसूनी महीनों में बहने की क्षमता को क्षीण कर दिया है पर अभी तक न तो केंद्र सरकार न ही राज्य सरकारें इस पर अंकुश लगा पाई हैं। ग्रामीणों की माने तो यहां रेत माफिया सरकारी और नदी तंत्र पर पूरी तरह से हावी हो चूका है।
वहीं दिल्ली सरकार की सबसे बड़ी कमी है कि यह अपने जल स्रोतों जोहड़, तालाब, खादर आदि को खत्म करके यमुना जल पर अपनी आश्रिता बढाती जा रही है। सरकार केवल पेयजल आपूर्ति के लिए ही करोड़ों रूपये लगाकर यमुना और सहायक नदियों को लखवाड़, रेणुका, किशाऊ जैसे बड़े विनाशकारी बांधों में जकड़ने को बढ़ावा दे रही है। जबकि यह काम दिल्ली सरकार अपने उपलब्ध जल स्रोतों का संरक्षण एवं संवर्धन कर और अपने जल संसाधनों वर्षा, उपचारित सीवेज, लीकेज आदि के समुचित उपयोग और प्रबंधन को ठीक करके आसानी से कर सकती है।
अंत में, ऐसा प्रतीत होता है कि यमुना नदी विपरीत दिशा और विरोधाभासी लक्ष्यवाली योजनाओं में बजट खपाने का निमित मात्र बन गई है। विडंबना है कि नदी राजनीति भी केवल ऐसी अनुचित योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए होती है। जबकि यमुना को केवल सफाई नहीं अपितु समग्र नदी तंत्र संरक्षण नीति की आवश्यकता है। बिना नदी में पर्याप्त प्राकृतिक प्रवाह सुनिश्चित किये दिल्ली में नदी सफाई असम्भव है और नदी जल पर्यटन, रिवरफ्रंट की योजनाएं निरर्थक हैं।
SANDRP
An edited version of this article is published in Dainik Jagran Hindi newspaper on Oct. 23, 2025 and can be seen below.
