देश की नदियों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। एक ओर नदियों का जलप्रवाह लगातार घट रहा है, दूसरी ओर उनमें प्रदूषण की मात्रा चिंताजनक स्तर पर पहुॅच गई है। बढ़ती बॉध, पनबिजली, सिंचाई परियोजनाओं, भूजल दोहन, वनविनाश, बाढ़ भूमि अतिक्रमण और अवैध खनन से हमारी नदियों की जैवविविधता पर विपरीत प्रभाव सामने आ रहे हैं। साथ में नदियों पर गुजर बसर करने वाले मछवारों, मल्लाहों, किसानों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
इन सबके बीच, नदियों को बचाने के सरकारी प्रयास नाकेवल नाकाफी और निष्फल साबित हो रहे है, अपितु अब यह स्पष्ट है कि नदी विरोधी सरकारी योजनाओं के चलते ही छोटी बडी जलधाराएॅ सूख रही है, मैला हो रही है और बाढ़ के समय आपदा का कारण भी बन रही है। वास्तव में नदी संरक्षण संबंधी नियम कानूनों और व्यापक जनभागीदारी के अभाव के चलते आज हमारी जीवनदायनी नदियॉ, खुद के स्वछंद बहते जल को तरस रही है।
इन्हीं सब महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने के लिए 25 नवम्बर 2017 को दिल्ली भारतीय नदी दिवस[1] समारोह आयोजित किया गया। इस बार के एक दिवसीय आयोजन में शहरी नदियों को केंद्र में रखकर मनाया गया। कार्यक्रम में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से अस्सी से अधिक सरकारी विभागों -गैरसरकारी संस्थाओं से जुडे़ नदीप्रेमियों, चितंको और विचारकों ने भाग किया। यह कार्यक्रम वर्ष 2014 से निरंतर मनाया जा रहा है। हर साल की तरह, इस बार भी देश में नदियों को बचाने में संघर्षरत व्यक्तियों और नदी संगठनों को ‘भगीरथ प्रयास सम्मान’[2] से नवाजा गया। प्रभावी नदी लेखन, छायांकन और चित्रण के माध्यम से नदियों की आवाज उठाने वाले मीडियाकर्मी के लिए, इस साल से अनुपम मिश्र[3] मैमोरियल मैडल का शुभांरभ किया गया।
भारतीय नदी दिवस 2017 के दौरान घटित महत्पूर्ण गतिविधियों का संक्ष्पित विवरण
- नदी प्रेमियों, विशेषज्ञों के व्याख्यान और नदी संकल्प पत्र की घोषणा
समारोह का आगाज करते हुए श्री मनोज मिश्र (संयोजक यमुना जिए अभियान) ने उपस्थितजनों को भारतीय नदी सप्ताह/दिवस के उद्ेश्यों से अवगत कराते हुए, उन्होनें पिछले चार सालों की चुनौतियों और उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन किया। श्री हिमांशु ठक्कर (सम्नवयक सैनड्रप) ने शहरी नदियों की वर्तमान स्थितियों, इसके लिए जिम्मेदार कारणों, नदियों और नागरिकों के खत्म होते संबंधों पर प्रस्तावना रखी। अपने संबोधन में प्रख्यात पर्यावरणविद रवि चोपड़ा जी ने दिल्ली, देहरादून, मुम्बई और चैन्नई जैसे महानगरों में विलुप्त होती और प्रदूषण से त्रस्त नदियों के बारे में उल्लेखनीय जानकारियॉ सॉझा की।
आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए, श्री शशि शेखर जी (पूर्व सचिव, जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार) ने अपने व्यक्तव्य के माध्यम से वर्तमान परिदृश्य में नदियों के महत्व और खतरों से प्रतिभागियों को अवगत कराया। एक सरकारी अधिकारी के तौर पर नदी संरक्षण को लेकर मिले अच्छे-बुरे अनुभवों तथा चुनौतियों को भी उन्होनें लोगों के बीच रखा।
इस मौके पर देश के अग्रणी नदी वैज्ञानिकों और विशषज्ञों के मध्य, नदी प्रकृति और संस्कृति को प्रभावित करने वाले मुख्य कारणों पर व्यापक विचार मंथन हुआ। अपने अर्थपूर्ण व्यक्तव्यों से पूर्व प्राध्यापक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय डॉ. ब्रिज गोपाल, जानेमाने अर्थशास्त्री डॉ. भरत झुनझुनवाला, प्रो. विनोद तारे, (वैज्ञानिक, भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान, कानपुर), प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रो. सी. आर. बाबू ने प्रतिभागियों को वर्तमान समय में नदियों की समस्याओं पर जागरूक करने के साथ_साथ उन्हें नदी संरक्षण कार्यो में सक्रिय योगदान के लिए प्रेरित भी किया।
इस अवसर पर एक नदी संकल्प पत्र (IRD 2017 Resolution)भी तैयार किया गया है जिसे संसोधनों के बाद जल्द जारी किया जाएगा। यह संकल्प पत्र अभी ड्राफ्ट प्रारूप में है। इसे बेहतर बनाने में आप भी अपने सुझाव ht.sandrp@gmail.comव indiariversweek2014@gmail.com ईमेल पतों पर भेज सकते हैं।
- शहरी नदियों को बचाने में किए जा रहे उल्लेखनीय प्रयास
कार्यक्रम में इनटैक संस्था द्वारा हिंडन नदी पर किए गए हालिया शोध कार्य के परिणामों पर वस्तृत विवरण प्रस्तूत किया गया। इस शोध में हिंडन नदी से संबंधित अनेक पहलूओं का बारीकि से अध्ययन किया गया है।
बंजर बाढ़ भूमि को सजीव जैवविविधता पार्क में तब्दील करने के सफर को डाक्टर फैयाज खुदसर वैज्ञानिक यमुना बॉयोडार्वसिटी पार्क[4] ने खुबसूरत अंदाज में लोगों के सामने रखा। वर्षो की मेहनत के बाद आज इस पार्क में यमुना नदी की लुप्त जैवविविधता को एक नमुने के तौर पर सफलतापूर्वक पुर्नजीवित कर लिया गया है, वो भी देश की राजधानी दिल्ली में।
समारोह में इनटैक द्वारा मुथा नदी पर बनाई गई डॉक्यूमैन्ट्ररी फिल्म गुमराह को प्रदर्शित किया गया। यह फिल्म हिंदी[5], मराठी[6] व अंग्रेजी[7] भाषाओं में भी उपलब्ध है। प्रस्तावित मैट्रो रेल परियोजनाओं से मुथा नदी क्षेत्र को बचाने के जनसंघर्ष को इस फिल्म में असरदार तरीके से दर्शाया गया है।
- शहरी नदी छायाचित्र प्रर्दशनी उद्घाटन, नदियों पर पुस्तकों का विमोचन और इंडिया रीवर्स फोरम वेबसाइट का लोर्कापण
इस अवसर पर श्री शेखर जी ने शहरी नदियों पर एक छायाचित्र प्रर्दशनी[8] का शुभांरभ किया और भारतीय नदी फोरम नामक वेबसाइट[9] (इंडिया रीवर्स फोरम https://indiariversforum.org/) को भी लोकार्पण किया। नदी संरक्षण के उद्देश्यों को समर्पित, इस फोरम के माध्यम से पूरे देश में सक्रिय नदीसंगठन और नदीप्रेमी अपने विचार, अनुभव व समस्आएॅ आदि एक दूसरे के साथ बॉट सकते है।
साथ में भारतीय नदी सप्ताह 2016 पर आधारित- भारतीय नदियों की स्थिति 2016 एक समीक्षा रिर्पोट, इनटैक शोध पुस्तक -रिवाईविंग हिंडन रिवरः बेसिन अप्रोच[10], लोक विज्ञान केंद्र द्वारा बनाया गया-केन नदी कैलेंडर, इनटैक द्वारा नदी कविताओं पर संकलन पुस्तिका का भी विमोचन किया गया।
शहरी नदियों की दुर्दशा को उजागर करती, पॉच दिवसीय छायाचित्र प्रदर्शनी कार्यक्रम में विशेष आकर्षण का बिंदु रही। प्रदर्शनी में चित्रों के माध्यम से शहरी नदियों में प्रदूषण, बाढ़ भूमि पर कब्जे, बॉधों द्वारा धारा परिवर्तन, नदी के लिए धर्म की भूमिका, नदी आधारित जीविका, नदी जैवविविधता, नदी परिवहन एवं पर्यटन आदि विषयों पर सौ से अधिक तस्वीरों को लगाया गया। देशभर से नदीप्रेमियों ने प्रदर्शनी के लिए अपनी तस्वीर भेजी। इस प्रर्दशनी का संचालन सिद्धार्ध अग्रवाल वैदितम[11] संस्था के द्वारा किया गया। इस तरह पूर्वाध सत्र का समापन श्री जयेश भाटिया, पीस संस्था के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।
- वर्ष 2017 के भगीरथ प्रयास सम्मान और अनुपम मिश्र मैमोरियल मैडल विजेता[12]
भारतीय नदी सप्ताह 2014 के प्रांरभ से ही भगीरथ प्रयास सम्मान नदियों को बचाने में उल्लेखनीय कार्यो के लिए प्रदान किए जा रहा है। इस वर्ष से नदी पत्रकारों को भी अनुपम मिश्र मैमोरियल मैडल देने की शुरूआत की गई है।
- मीनाचिल नदी संरक्षण समिति, केरला विजेता भगीरथ प्रयास सम्मान 2017 (संस्था श्रेणी)
यह समिति पिछले ढाई दशकों से मीनाचिल नदी[13] की समग्र जैवविविधता को बचाने के लिए एक प्रयासरत है। विशेष बात यह है कि इस काम के लिए समिति जनअभियान के जरिए सम्पूर्ण जलागम सरंक्षण स्तर पर काम कर रही है। पश्चिमी घाट में अनेक छोटी धाराओं से बनी मीनाचिल नदी, केरला राज्य के कौट्टयम जिले में बहती है और विश्व रामसर नमभूमि सूची में शुमार वेम्बानद झील में गिरती है।
इस समिति की शुरूआत वर्ष 1989-90 में तब हुई, जब समान विचारों वाले कुछ व्यक्तियों ने टीकोय ग्राम पंचायत में नदी पर प्रस्तावित बॉध का विरोध किया। यह बॉध पर्यावरणीय दृष्टि से अव्यवाहरिक था। उसके बाद यह दल और बॉध विरोध, मीनाचिल नदी संरक्षण समिति में बदल गया। जिसका मख्य उद्देश्य पूरे मीनाचिल नदी पारिस्थितिकीय को पुर्नजीवित करना है। इसके लिए समिति ने नदी बेसिन का दृष्टिकोण अपनाया और जनभागीदारी को केंद्र में रखकर मीनाचिल नदी को जलागम[14] क्षरण, जल दोहन, शहरी प्रदूषण, अतिक्रमण और रेत खनन जैसे अनकों खतरों से बचाने के लिए संघर्षरत है।
1995 के दौरान समिति ने ग्राम पंचायतों, जिला पंचायतों, सरकारी विभागों, कॉलेज छात्रों और समुदायों के साथ मिलकर चेरू थडायनकल (चैक डैम) अभियान चलाया। इस मुहिम के तहत मीनाचिल की प्रमुख सहायक नदियों इटुपेट्टेयार, पूंजर, टीकोयार पर बड़ी संख्या में चैक डैमों का निर्माण किया गया। इस कार्य से मीनाचिल नदी के भूमिगत जलस्रोतों पानी से भर गए और नदी में बहते जल की मात्रा में इजाफा हुआ।
वर्ष 2014 15 में नदी में बढ़ते शहरी प्रदूषण और रेतखनन से निपटने के लिए समिति ने एक और अभिनव प्रयास किया । जिसका नाम कवलमडम (स्वंय चौकसी) है। इसके तहत स्थानीय लोग कवल सभाओं में नियमित तौर पर मिलते थे और इन समस्याओं के निराकरण के लिए आपस में विचार विमर्श करते थे।
समिति ने अपने पर्यावरण शिक्षा अभियान के तहत, ’मीनाचिल नदी वापिस लौटाओ’ और ’हम अपनी मीनाचिल नदी को बचा सकते हैं’ लोकप्रिय अभियान चलाए, जिससे बड़ी संख्या में युवा प्ररेति हुए और नदी हित में सकारात्मक योगदान देने लगे। कवलमडम अभियान को आगे बढ़ाते हुए समिति ने स्कूलों और कॉलेजों में ’मीनाचिल के पंख’ और ’मीनाचिल के सपने’ नाम से छात्रों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाए और उन्हें वृक्षारोपण के माध्यम से मीनाचिल नदी जलागम बहाली के लिए प्रेरित किया।

वर्तमान में समिति के कामों से प्रभावित होकर, जानकीया कूटायमा (जन एकता) अभियान चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य मीनाचिल नदी की सहायक नदियों मीनाथरा और कुडूर को अतिक्रमण और गाद हटाकर पुर्नजीवित करना है। इस काम के लिए बने पर्यावरण भाईचारा समूह के तहत कई सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाएॅ इन सहायक नदियों से अतिक्रमण हटाने आगे आई हैं। जल सुरक्षा और जलागम संरक्षण के लिए फिर से धान की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये सभी प्रयास, समिति के कामों को एक नए क्षितिज और आयाम पर ले जाएगे।
वास्तव में शैक्षिक और जागरूकता अभियानों के साथ स्थानीय प्रयासों का समावेश करके वो भी बिना किसी बाहरी वित्तीय मदद के, समिति एक अनुकरणीय और अनोखा उदाहरण प्रस्तुत कर रही है जिससे नदी बचाने में जनसहयोग और जनभागीदारी की भावना बढ़ी है और सार्थक एवं स्पष्ट परिणाम सामने आए हैं।
मीनाचिल नदी संरक्षण के 27 वर्षो के असाधारण प्रयासों का सम्मानित करते हुए और स्वीकारते हुए, मीनाचिल नदी संरक्षण समिति, केरला को वर्ष 2017 में भगीरथ प्रयास सम्मान प्रदान किया गया है। आशा है, समिति अपने अनोखे, अभिनव एवं सतत् अभियानों से स्वच्छ-स्वस्थ मीनाचिल नदी का सपना जल्द साकार कर सके।
- श्री महावीर सिहं सुकरलाई विजेता भगीरथ प्रयास सम्मान 2017 (व्यक्तिगत श्रेणी)।

महावीर सिंह सुकरलाई (परिचय), पर्यावरण किसान संघर्ष समिति, जयपुर को व्यक्तिगत श्रेणी में भगीरथ प्रयास सम्मान 2017 दिया गया। वे पिछले चौदह सालों से राजस्थान के पाली जिले में बहने वाली बांदी नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने में संघर्षरत है। इस कार्य में किसानों के साथ मिलकर उनके अथक प्रयासों से कुछ अच्छे सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
महावीर भाई पिछले चौहद सालों से जन जागरूकता अभियानों, पक्षपोषण और याचिकाओं के जरिए बांदी नदी में प्रदूषण की रोकथाम के लिए साहसिक और अथक प्रयास कर रहे हैं।
राजस्थान के पाली जिले में बहने वाली बांदी नदी पिछले चालीस सालों से लगातार कपड़ा और प्रिंटिंग उद्योग से निकले अवशिष्टों से विषैली बन गई है। इस दिशा में सरकार द्वारा लगाया करोड़ो की लागत से स्थापित सामूहिक अपशिष्ट संसोधन यंत्र भी असफल रहा क्योंकि अपशिष्टों की मात्रा यंत्र की क्षमता से कहीं ज्यादा थी।
परिणाम स्वरूप उपचारित, अनुपचारित, अर्धोपचारित रसायनिक अपशिष्ट नदी पर इससे आगे बने (Downstream) नेहडा बॉध में जमा हो गए। इस कारण आसपास के क्षे़त्रों का भूजल भी प्रदूषित हो गया। नेहडा बॉध को सिचॉई के लिए बनाया गया था।
नदी प्रदूषण के पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हो रहे गंभीर परिणामों से चकित, स्नातक की शिक्षा पूरी कर चुके महावीर भाई ने बांदी नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने का बीड़ा उठाया। इसके लिए उन्होने वर्ष 2004 में स्थानीय किसानों के साथ मिलकर श्री किसान पर्यावरण संघर्ष समिति का निर्माण किया और स्वच्छ बांदी की मॉग के साथ गॉव गॉव जाकर लोगों को जागरूक और संगठित करने लगे।
उद्योगों, जिलाधिकारियों और राजकीय विभागों को लिखी दर्जनों याचिकाओं और कई दौर की बैठकों के बाद भी प्रदूषण की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। तब फरवरी 2008 में प्रशासन के अपर्याप्त और अधुरे प्रयासों के खिलाफ महावीर भाई ने हजारों किसानों को जमा कर बांदी नदी किनारे 20 दिन तक धरना दिया। तब जाकर जिलाधिकारी ने उद्योगों को पालियों में बॉटकर बारी बारी से चलाने के निर्देश दिए जिससे शोधन यंत्र की क्षमता से अधिक अपशिष्ट ना निकलें।
परंतु प्रदूषण की स्थिति जस की तस बनी रही। अंत में प्रदूषण निंयत्रण पर प्रशासनिक उपायों से हताश, महावीर भाई ने अपनी समिति के माध्यम से वर्ष 2012 में राजस्थान उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। अपनी याचिका में उन्होने प्रदूषणकारी उद्योगों को अपशिष्ट शुन्य (Zero Discharge) और प्रदूषण से पर्यावरण एवं किसानों को हुए नुकसान पर हर्जाने की मॉग रखी। वर्ष 2014 में यह मामला राष्ट्रीय हरित पंचाट में भेज दिया गया।
बाद में महावीर भाई की याचिका के कारण पाली जिले में गैर ओद्यौगिक क्षेत्र में चलने वाली 200 से अधिक उद्योगों को बंद कर दिया गया। इसी याचिका पर दिशा निर्देश जारी करते हुए उच्च न्यायालय उद्योगो से निकलने वाले गंदे जल की मात्रा 3 करोड़ 40 लाख लीटर प्रतिदिन से घटाकर 1 करोड़ 20 लाख लीटर प्रतिदिन कर दी। वर्ष 2016 में हरित पंचाट ने भी जिले के 500 उद्योगों को दस महीने के लिए बंद रखा। इसकी वजह से दशकों बाद किसानों को नेहड़ा बांध से सिंचाई के लिए साफ पानी मिला।
चौदह सालों से जारी संघर्ष में महावीर सिंह जी ने बांदी नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए जनआंदोलन से लेकर जनहितयाचिका तक दायर की। इन सालों में उन्हें रिश्तेदारों की उपेक्षा से लेकर, आर्थिक तंगी, उद्योगों के प्रलोभन और शाररिक हमलों से गुजरना पड़ा परंतु वे अपने लक्ष्य पर अडिग रहे। उनेक साहसिक और सतत प्रयासों की बदौलत ही आज बांदी नदी में प्रदूषण की स्थिति में कुछ सुधार है और उनका संघर्ष भी जारी है।
- आरती कुमार राव[15] प्रथम अनुपम मिश्र मैमोरियल विजेता

आरती कुमार राव पिछले एक दशक से अपनी रचनात्मक फोटोग्राफी और लेखन के माध्यम से गंगा, सुंदरवन और पूर्वोत्तर की नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की महत्ता और आसन्न संकटों को उजागर करने में उल्लेखनीय कार्य कर रही है।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी आरती कुमार राव स्वतंत्र पर्यावरण छायाकार और लेखक है। वह अपने सजीव छाया चित्रों और सशक्त लेखन शैली से दक्षिण एशिया में प्रकृति के साथ मानव दखलांदाजी और जलवायु परिवर्तन का नदियों की जैवविविधता और लोगों की आजीविका हो रहे धीमे, नकारात्मक प्रभावों को उजागर कर रही है। वह खास तौर पर गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में विकास गतिविधियों से हो रहे बदलावों को संकलित कर रही है। बड़ी नदियों का सफर करते हुए, आरती जी ने असाधारण तस्वीरों और रोचक लेखन के जरिए लोगों और नदियों पड रहे दुष्प्रभावों का बारीकी से अध्ययन कर अनेकों जिज्ञासापूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित की हैं। नदी डायरी उनका पसंदीदा काम है जिसके द्वारा वे नित बदलती, जिंदा, गतिशील और नदियों को प्रस्तूत करती है।
बॉधों, पनबिजली, बैराजों की योजनाओं से नदी क्षेत्र, नदी जैवविविधता और नदी समुदायों पर हो रहे धीमे प्रभावों, आरती जी को उनकी आवाज बनने के लिए प्रेरित करती है।
अपने नदी आलेखों में आरती जी नदी को बदलने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारकों को अंकित करती है जिसे मुख्यधारा मीडिया में ज्यादातर अनदेखी की जाती है। उनकी रिपार्टो का उद्देश्य है कि विकास योजनाओं से नदियों को हो रहे नुकसानों को ध्यान में रखा जाए और नदी किनारे रहने वाले वाशिंदो को विकास योजनाओं में निर्णय लेने का मौका दिया जाए ताकि नदी विरोधी एक तरफा विकास से बचा जा सके।
उनका उत्कृष्ट नदी लेखन और विलक्षण नदी छायाचित्र कार्य को देश विदेश की अनेक पत्रिकाओं जैसे डाईटर्ब, द गार्जियन, बी बी सी आउट सोर्स, हिंदुस्तान टाइम्स, मिन्ट और नेशनल जॉयग्रफिक ट्रैवलर इंडिया आदि पत्रिकाओं और अखबारों में छप चुका है। उनके लिए छायाचित्रण कहानी ब्यॉ करने का एक जरिया है और हर कहानी उनके लिए अहमियत रखती है।
नदियों को केंद्र में रखकर आरती कुमार राव के विशिष्ठ और तथ्यपरक लेखन और छायाचित्रण कार्यो का महत्व समझते हुए, उन्हें अनुपम मिश्र मैमोरियल मैडल प्रदान किया गया।
सभी विजेताओं को श्री मदन भीमराव लोकुर, माननीय न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय ने सम्मानित किया और उन सभी ने अपने अनुभवों को अभिलाष खांडेकर (नेचर वालंटियर्स्) द्वारा संचालित परिचर्चा में अपने श्रोताओं के सामने रखा।
अपने जानकारीपूर्ण और शिक्षाप्रद व्याख्यान में न्यायाधीश मदन भीमराव लोकुर ने उपस्थितजनों को नदी सरंक्षण के प्रयासों को बढाने और इस कार्य को जनभागीदारीपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित किया।
- दिवंगत अनुपम मिश्र, जल संरक्षक और लथा अंनता नदी प्रेमी को श्रृद्धांजलि
समारोह के अंत में दिवंगत अनुपम मिश्र और लथा अंनता जी को स्मरण किय गया। इन नदी वीरों को याद करते हुए उनके सहकर्मियों, मित्रों और परिचितों ने उनसे जुडे अनुभवों और उनके साथ बिताए लम्हों को बॉटा।
- भारतीय नदी दिवस/सप्ताह के बारे में
वर्ष 2014 से भारतीय नदी सप्ताह/भारतीय नदी दिवस (हर दूसरे साल) का आयोजन किया जा रहा है। यह समारोह इनटैक, लोग विज्ञान केंद्र, पीस संस्था, सनडै्रप, टॉक्सिकस् लिंक,यमुना जिए अभियान और विश्व प्रकृति निधि के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। इस कार्यक्रम में देश भर से नदी विचारक, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, चिंतक, नदी प्रेमी और कार्यकर्ता भाग लेते हैं।
Bhim Singh Rawat, SANDRP (bhim.sandrp@gmail.com)
End Notes:-
[1] https://sandrp.wordpress.com/category/india-rivers-week/
[2] http://hindi.indiawaterportal.org/sites/hindi.indiawaterportal.org/files/BPS%20Call%20for%20nominations%202017.pdf
[3] https://en.wikipedia.org/wiki/Anupam_Mishra
[4] https://dda.org.in/greens/biodiv/yamuna-biodiversity-park.html
[5] https://www.youtube.com/watch?v=VUJit_Fx6Os
[6] https://www.youtube.com/watch?v=EzLCUrp9UXM
[7] https://www.youtube.com/watch?v=WM0ypDSp81I
[8] For details see: https://sandrp.wordpress.com/2017/11/26/exhibition-on-indias-urban-rivers-at-india-rivers-day-2017/
[9] https://indiariversforum.org/ / https://indiariversforum.org/
[10] http://naturalheritage.intach.org/wp-content/uploads/2017/11/Reviving-Hindon.pdf
[12] For details see: https://sandrp.wordpress.com/2017/11/28/2017-bps-awards-to-meenachal-samiti-in-kerala-mahaveer-singh-in-rajasthan-inaugural-anupam-mishra-medal-for-river-focussed-media-work-to-arati-rao/
[13] https://en.wikipedia.org/wiki/Meenachil_River
[14] http://indiaenvironmentportal.org.in/files/Meenachil%20%2046-84%20pages.pdf
नदियोंकी दुर्दशा इंडस्ट्री और म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन कर रहे है/ इन्को शासन
करो और दंड वसूल करो/ किसीका भी आऊट लेट नदी में नहीं जायेगा / जिसका जायेगा
उसको सजा भुगतानी पडेगी/ ऐसा करो/
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गंगा उद्भव योजना, मोकामा-बिहार-प्रोजेक्ट कोस्ट 3 हजार करोड़।
नमस्कार रवीश सर
हमारे गाँव मोकामा से 191 किलोमीटर पाइपलाइन के सहारे गंगा नदी का पानी मोकामा से नालंदा, गया, राजगीर लेकर जाया जा रहा है।प्रोजेक्ट की कीमत 3 हजार करोड़ रुपये है। जिसे रिवाइज़ कर 5 हजार करोड़ किया जायेगा।इस प्रोजेक्ट की घोषणा पिछले साल 2019 में अगस्त सितंबर के महीने हुई और साल भर के अंदर युद्ध गति से काम होने लगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद इसकी देख रेख कर रहे हैं।
इस प्रोजेक्ट से मोकामा के स्थानीय लोग भयभीत है।जिसके निम्न कारण हैं:-
-प्रोजेक्ट की “इंपैक्ट स्टडी” पब्लिक नहीं की गयी है। स्टडी हुई भी है या नहीं इसपे शंका है।प्रोजेक्ट का ब्लू प्रिंट सामने नहीं आया है।
-मोकामा गंगाजी के इलाकों में पूरे भारत में सबसे अधिक “गंगेटिक डोलफिंस्” हैं।स्ट्रीम डिस्टर्ब होने से “एक्वेटिक लाइफ” पे बुरा असर होगा।
– मोकामा का ग्राउंड वॉटर लेवल गया,नवादा इत्यादि जिलों से काफी कम है।उसके बावजूद मोकामा में 120 फीट बोर करके पानी ले जाये जाने से ‘ग्राउंड वाटर’ और ‘कृषि कार्यों’ पर नेगेटिव इंपैक्ट होगा।क्युकी मोकामा में गंगा के दक्षिण में एशिया का सबसे बड़ा फार्मलैंड टाल है।
-सरकार कहती है बरसात के दिनों में जब पानी अधिक होगा तब लगातार 3 महीने पानी सप्लाई करेंगे। कुल 270 मिलियन क्यूबिक फिट के तीन डैम में पानी स्टोर होगा। जबकि नालन्दा जिला बरसात के दिनों में स्वयं डूबा रहता है। 2016 में आई बाढ़ देखें। साथ ही गंगा जी की स्थिति क्षणभंगुर है। 2 महीने पानी रहता है, उसके अगले महीने पानी सूख जाता है।
-गंगा पलायन से नदी बेसिन में “सिल्टिंग और सेडिमेंटेशन्” होगा।जिसको साफ करवाने के लिये विशेष कवायद करनी होगी,अन्यथा मोकामा क्षेत्र में बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ जाती है। क्षेत्रीय लोग परेशान है, क्युकी मोकामा टाल में भी सिल्टिंग से गाद जमा होने की समस्या से बुआई नही हो पाती है।(कलकता से वाराणसी 14 दिनों की गंगा ट्रिप से पर्यटन की सुविधा है, जिसको लेकर अडानी ग्रुप और भारत सरकार पिछले 2 सालों से 40*10 मीटर चैनल निर्माण कर रही है। सेडिमेंटेशन् की वजह से आये दिन रोज जहाज फंस जाता है।)
-गया,नालन्दा,राजगीर में भी छोटी बड़ी 5 नदियाँ हैं।बरसात में वहाँ बाढ़ आता है।वाटर मैनेजमेंट, ग्राउंड वाटर रिचार्ज इत्यादि के लिए स्ट्रीम के विरुद्ध जाने के अलावे अन्य उपाय किये जा सकते थे। जैसा तमिलनाडु और अन्य दक्षिण के राज्यों में है।
-इंपैक्ट स्टडी इस योजना के और भी कई कुप्रभाव बाहर लायेगी।यह एक छात्र का विश्लेषण है। “इंटरनेशनल वाटर ट्रिटी” के भी इंपैक्ट होने के चाँसेज हैं।
मै मोकामा से हूँ। मोकामा में सारे उद्योग(सुता मिल,बाटा,सिंदूर फैक्ट्री, भारत वैगन,मैकडावल इत्यादि बंद है। कृषि ही एकमात्र साधन है,वो भी कई वर्षों से वाटर मिसमैनेजमेंट की मार झेल रहा है। पिछले वर्ष भी 70% टाल क्षेत्र में बुआई नही हुई, जिसका मुआवजा भी नहीं मिला और इस बीच इस योजना से भूजल प्रभावीत होने से लाखों लाख की आबादी बर्बाद हो जायेगी। रवीश सर मैं आपके माध्यम से बिहार सरकार से अनुरोध करता हूँ कि सरकार इस प्रोजेक्ट की “इंपैक्ट स्टडी और ब्लूप्रिंट” पब्लिक कर क्षेत्रीय लोगो को भरोसे में ले।
यह पत्र Versial Aunta के द्वारा रवीश कुमार को भेजा गया है। साथ ही सभी बड़े छोटे पत्रकार और एनवायरोमेंटलीस्ट् को भेज रहे हैं।
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Thanks, Sundaram Kumar
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