देश की नदियों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। एक ओर नदियों का जलप्रवाह लगातार घट रहा है, दूसरी ओर उनमें प्रदूषण की मात्रा चिंताजनक स्तर पर पहुॅच गई है। बढ़ती बॉध, पनबिजली, सिंचाई परियोजनाओं, भूजल दोहन, वनविनाश, बाढ़ भूमि अतिक्रमण और अवैध खनन से हमारी नदियों की जैवविविधता पर विपरीत प्रभाव सामने आ रहे हैं। साथ में नदियों पर गुजर बसर करने वाले मछवारों, मल्लाहों, किसानों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
इन सबके बीच, नदियों को बचाने के सरकारी प्रयास नाकेवल नाकाफी और निष्फल साबित हो रहे है, अपितु अब यह स्पष्ट है कि नदी विरोधी सरकारी योजनाओं के चलते ही छोटी बडी जलधाराएॅ सूख रही है, मैला हो रही है और बाढ़ के समय आपदा का कारण भी बन रही है। वास्तव में नदी संरक्षण संबंधी नियम कानूनों और व्यापक जनभागीदारी के अभाव के चलते आज हमारी जीवनदायनी नदियॉ, खुद के स्वछंद बहते जल को तरस रही है।
इन्हीं सब महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने के लिए 25 नवम्बर 2017 को दिल्ली भारतीय नदी दिवस[1] समारोह आयोजित किया गया। इस बार के एक दिवसीय आयोजन में शहरी नदियों को केंद्र में रखकर मनाया गया। कार्यक्रम में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से अस्सी से अधिक सरकारी विभागों -गैरसरकारी संस्थाओं से जुडे़ नदीप्रेमियों, चितंको और विचारकों ने भाग किया। यह कार्यक्रम वर्ष 2014 से निरंतर मनाया जा रहा है। हर साल की तरह, इस बार भी देश में नदियों को बचाने में संघर्षरत व्यक्तियों और नदी संगठनों को ‘भगीरथ प्रयास सम्मान’[2] से नवाजा गया। प्रभावी नदी लेखन, छायांकन और चित्रण के माध्यम से नदियों की आवाज उठाने वाले मीडियाकर्मी के लिए, इस साल से अनुपम मिश्र[3] मैमोरियल मैडल का शुभांरभ किया गया।
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