(Feature Image: Screnshot of Haryana 24 News exclusive report on illegal mechanized sand mining in Yamuna river at Gumthala ghat near Yamuna Nagar-Karnal border of Haryana in May. 2024.)
हरियाणा राज्य के करनाल और यमुनानगर जिलों में वरयाम सिंह एक जाना-माना नाम है। आप पेशे से जिला न्यायालय और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं। आप यमुना नदी के किनारे स्थित गुमथला गांव में रहते हैं जहाँ आपके प्रयासों से इंक़लाब मंदिर स्थापित है जो देश के स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित है और राज्यस्तर पर प्रसिद्ध है। क्षेत्र में विकास कार्यों में पारदर्शिता एवं सरकारी विभागों के कार्यों में सुधार लाने के लिए आपने हरियाणा एंटी करप्शन सोसाइटी की स्थापना भी की है और आप इन उद्देश्यों के लिए जन सूचना अधिकार कानून का बखूबी इस्तेमाल करते हैं।
राज्य में यमुना से सटे जिलों में बेतहाशा रेत खनन से वरयाम सिंह खासे चिंतित हैं और आप लगातार सरकारी रेत खनन पट्टों में व्याप्त अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार को रोकने हेतु न्यायिक, प्रशासनिक और जमीनी स्तर पर प्रयासरत हैं। आपका मानना है कि सरकारी पट्टों की आड़ में स्थानीय नेताओं, अधिकारियों और खनन कंपनियां की आपसी मिलीभगत से यमुना में बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन का कार्य चल रहा है जिससे नदी पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
भीम सिंह रावत, सहायक समन्वयक (SANDRP) से साक्षात्कार में अधिवक्ता वरयाम सिंह यमुना नदी से निरंतर हो रहे अवैध मशीनी रेत खनन और इसके परिवहन से जुडी समस्याओं पर विस्तार से अपने विचार एवं अनुभव साँझा कर रहे हैं।
1. हरियाणा में यमुना नदी से किन-किन खनिजों का दोहन होता है? आप कब से यमुना नदी में सरकारी पट्टों में जारी अवैध रेत खनन को रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं?
यमुना नदी में यमुना नगर जिले के बड़े क्षेत्र में पत्थर, गटका (छोटा पत्थर) के साथ रेत और बाकि सभी जिलों में रेत, बजरी का बड़े पैमाने पर खनन होता है। यमुना में मुख्यत दो तरह का रेत मिलता है मोटा और बारीक़। बारीक़ रेत को जीरी भी कहते हैं। यमुना नदी के रेत की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण इसकी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में होने वाले निर्माण कार्यों में बहुत अधिक मांग है।
मैं कुछ स्थानीय लोगों की टीम के साथ लगभग पिछले आठ सालों से यमुना नगर और करनाल जिलों में यमुना नदी क्षेत्र में असंवहनीय (Unsustainable) और अवैध खनन के खिलाफ जमीनी, प्रशासनिक और न्यायिक स्तर पर संघर्ष कर रहा हूँ।
2. आपके अनुसार हरियाणा में यमुना नदी से रेत खनन की कितनी खदान चालू है? एक खदान से रोजाना औसतन कितना रेत निकाला जाता है? क्या सारे रेत का प्रयोग केवल हरियाणा में ही होता है?
वर्तमान में हरियाणा में यमुना से सटे हर जिले में अमूमन पांच से लेकर दस रेत खनन घाट चालू हैं। अकेले करनाल जिले में ही करीब आठ घाटों को मंजूरी मिली हुई है। मात्रा की बात करें तो एक घाट से औसतन रोजाना दस लाख रूपये तक की रेत का खनन होता है।
3. राज्य की रेत खनन नीति में क्या खामियां हैं? रेत खनन के विपरीत प्रभाव को रोकने के लिए क्या नियम बने हैं? रेत खनन कार्यों के लिए आवश्यक जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Report, DSR) के बारे आपका क्या अनुभव है?
राज्य की रेत खनन नीति में वैसे तो कई खामियां हैं। पर सबसे बड़ी खामी है समस्या भारी मशीनों से खनन की मंजूरी। जिसके लिए पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने भी कोई स्पष्ट नियम नहीं बनाया है। खनन कंपनियों द्वारा बड़ी संख्या में बड़े-बड़े ट्रकों को नदी खादर में उतारा जाता है। जब तीन मीटर से अधिक गहराई तक रेत खनन नहीं कर सकते तो क्यों भारी मशीनों जेसीबी, पोकलेन आदि को खनन विभाग मंजूरी देता है जो आसानी से बीस तीस फ़ीट तक की गहराई से रेत खनन कर सकते हैं और कर भी रहे हैं।
इसी तरह ये भारी मशीनी खनन ही है जिसके कारण नदी की बहती धारा को अवरुद्ध किया जाता है और बहते पानी से भी खनन किया जाता है। ट्रकों को क्षमता से अधिक भर दिया जाता है। एक तरफ खनन विभाग रेत के वाहनों के ओवरलोड न होने का नियम बनाता है दूसरी तरफ ईपोर्टल पर ओवरलोड वाहनों के लिए अलग कॉलम दिया जाता है जोकि की सरासर दोहरी निति है।
आज हरियाणा में यमुना नदी पर स्थित कोई भी ऐसा घाट नहीं जहाँ उपरोक्त नियमों की सरेआम अवेहलना ना की जाती हो। दिन तो छोड़िये खनन कंपनियां को इतना अधिक राजनितिक संरक्षण प्राप्त है कि रात के अँधेरे में भी नदी से निर्बाध खनन किया जाता है।
इसके अतरिक्त सरकार का ज्यादा जोर राजस्व पर है जिसके कारण पिछले आठ सालों से यमुना में लगातार खनन हो रहा है। इससे पर्यावरण, पानी, नदी और स्थानीय लोगों पर होने वाले विपरीत प्रभावों को सरकार जानते हुए भी अनदेखा कर रही है।
4. यमुना में अवैध मशीनी रेत खनन को रोकने के लिए कौन-कौन से विभाग जिम्मेदार हैं? इन विभागों में क्या कमियां हैं?
मुख्यतः इसकी जिम्मेदारी खनन, सिंचाई, राजस्व, पुलिस, प्रदुषण नियंत्रण एवं परिवहन विभागों की बनती है। परन्तु मोटे तौर पर ये सभी विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। जिसके कई कारण हैं जैसे इन विभागों के पास पर्याप्त मानव एवं तकनीकी संसाधनों की कमी का होना। चूँकि रेत खनन आज करोड़ों का लाभ देने वाला व्यवसाय बन चूका है और इसमें हर स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है ऐसे में खनन, पुलिस एवं परिवहन महकमे से कई कर्मचारी निजी स्वार्थों के चलते रेत खनन कंपनियों से मिलीभगत रखते हैं। अक्सर शिकायत करने पर कार्यवाही करने के बजाय ये लोग खननकर्ता को ही सतर्क कर देते हैं। ऐसे में मौका मुआयना या तो होता ही नहीं है और अगर होता है तो वास्तविक रिपोर्ट की बजाय लीपापोती कर दी जाती है।
5.अवैध रेत परिवहन को रोकने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाये हैं? सरकार-प्रशासन यमुना में अवैध रेत खनन और परिवहन रोकने में क्यों असफल है?
सरकार अपने स्तर पर पुलिस चेक पोस्ट लगाना, तकनीकी यंत्रों का सहारा लेना, ई-रवन्ना की स्थापना करना आदि के दावे करती है। कई बार स्पेशल टास्क फार्स गठन की बातें भी हुई हैं। पर ये सब कदम कागजों तक ही सीमित हैं। जमीनी स्थित लगातार ख़राब हुई है। जिसका सबसे बड़ा कारण हैं सरकार में इच्छाशक्ति का अभाव का होना। क्योंकि सरकारी पट्टों में अवैध खनन से कमाए पैसे की एक मोटी रकम राजनेताओं तक भी पहुँचती है इस कारण यह कारोबार निरंतर फलफूल रहा है।
वैसे तो स्थानीय मिडिया का एक धड़ा भी इस संगठित गिरोह का हिस्सा बन चूका है पर कई बार रेत खनन से जुडी बड़ी घटनाओं या हादसों के बाद मिडिया और प्रशासन हरकत मैं आता है पर कुछ दिन की खानापूर्ति की कार्यवाही के बाद स्थिति फिर से पुराने ढर्रे पर आ जाती है। एकाध बार कुछ ईमानदार सख्त अधिकारी आते हैं पर उनका बहुत जल्द तबादला कर दिया जाता है।
6. यमुना में अवैध रेत खनन और परिवहन के पीछे स्थानीय नेताओं-अधिकारियों-कंपनियों का गठजोड़ कैसे काम करता है?
हालत इतने गंभीर हैं कि अवैध खनन करने वालों के व्हाट्सप्प समूह बने हैं। जिनके द्वारा पुलिस, परिवहन विभागों की गतिविधिओं की निगरानी की जाती है। इन्हीं समूहों में छापे की कार्यवाही पहले ही लीक हो जाती है। जो विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना सम्भव नहीं है। राज्यभर में अब यही चलन है और ये सब अब एक आम बात हो गई है।
ऐसी भी सूचनाएं हैं कि खनन कंपनियों और परिवहन एवं पुलिस विभागों के अधिकारियों तथा राजनेताओं के बीच हरेक खनन पट्टे पर पांच से लेकर बीस प्रतिशत की रकम तय की गई है जिसके कारण ना केवल ये अवैध खनन करने वाली कंपनियों कानूनी कार्यवाही से बच जाती हैं बल्कि यह गठजोड़ यह भी सुनिश्चित करता है कि अवैध खनन से भरे ओवरलोड ट्रक अपने गंतव्य तक बेरोकटोक पहुंचे।
7. करनाल-यमुनानगर की सीमा में स्थित गुमथला में अवैध मशीनी रेत खनन से नदी पर्यावरण और लोगों पर क्या विपरीत असर पड़ा है? अवैध रेत खनन के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों से इसके परिवहन से किस तरह के नुकसान हो रहे हैं?
हमारा गुमथला का क्षेत्र खेतीबाड़ी में समृद्ध रहा है। पर जबसे यहाँ यमुना से रेत खनन का काम शुरू हुआ है तब से यहाँ पर्यावरण, नदी एवं लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत अधिक बुरा असर होने लगा है। सबसे पहले तो खनन के प्रदूषण और नदी की धारा से छेड़छाड़ के कारण जलीय जीव लुप्त हो गए हैं। बड़ी-बड़ी मशीनों के शोर से प्रवासी एवं स्थानीय पक्षियों की आवाजाही बंद हो गई है। नदी में लगातार मशीनी खनन से बाढ़ के समय नदी के किनारों का कटान बढ़ गया है जिसे बड़ी कृषि भूमि नष्ट हो गई है।
सरकार दावा करती है कि खनन से बाढ़ का खतरा कम होता है परन्तु यह सच नहीं है। हर साल बाढ़ नियंत्रण के लिए तटबंध बनाये जाते हैं उनकी मरम्मत की जाती है जिसमें लाखों रूपये खर्च होते हैं। परन्तु अत्यधिक खनन के कारण बाढ़ के समय नदी का रुख बदल जाता है और ये तटबंध फिर से टूट जाते हैं। दो साल पहले सिंचाई विभाग की आपत्ति के बाद भी यहाँ नए बन रहे पूल के ठीक पास खनन का काम चलता रहा जिससे इस पूल को भी नुकसान हुआ।
इसके अतिरिक्त, ग्रामीण सड़कों पर रेत खनन के परिवहन में बड़ी तादाद में लगे भारी ट्रकों से क्षेत्र में सड़क हादसों में कई गुना वृद्धि हुई है। रोजाना ग्रामीण सड़कों से सैकड़ों भारी ट्रक गुजरते हैं जिससे सड़के जर्जर हो गई हैं और आये दिन हादसे हो रहे हैं जिनमें अब तक कई स्थानीय लोग मारे जा चुके हैं और बहुत सारे अपाहिज हो गए हैं। यमुना क्षेत्र में करनाल से यमुना नगर तक लगभग 60 किलोमीटर सड़क का हिस्सा इतनी बुरी तरह टूट चूका है कि इस पर आवागमन मज़बूरी में करना पड़ता है।
8. यमुना में अत्यधिक रेत खनन से बने गड्ढे किस तरह से जानलेवा हो रहे हैं?
यमुना नदी में धार्मिक पर्वों और त्योहारों के अवसरों पर स्थानीय लोग नहाने जाते हैं। गर्मी के मौसम में भी ग्रामीण बच्चे नदी पर नहाने के लिए जाते हैं। पर कई स्थानों पर मशीनी रेत खनन से 20-30 फ़ीट गहरे गड्ढे बन गए हैं। जिसके खतरे से अनभिग ग्रामीण, खास तौर से बच्चे इनमें डूब कर मर जाते हैं। सालाना ऐसी दर्जनों मौतें होती हैं और ठीक से आकंड़े जुटाएं जाए तो पिछले आठ वर्षों में लगभग 100 बच्चे यमुना में रेत खनन से हुए गहरे गड्ढों में डूबकर मर चुके हैं। राज्य में रेत परिवहन करने वाले वाहनों से और रेत खनन से बने गड्ढों से होनी वाली मानवीय मौतों का ठीक से अध्ययन और दस्तावेजीकरण करने की सख्त आवश्यकता है।
9. आपके क्षेत्र में जिला खनिज न्यास (District Mining Fund, DMF) कैसा काम कर रहा है? क्या इससे खनन प्रभावित लोगों की स्थिति में कोई सुधार हुआ है? इसकी कार्यप्रणाली में सुधार के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
राज्य खनन नीति के तहत जिला खनिज न्यास निधि में फण्ड तो जमा होता है लेकिन इसके उपयोग को लेकर पारदर्शिता का अभाव है। मोटे तौर पर खनन प्रभावित क्षेत्रों में कुल जमा राशि के बहुत कम हिस्से का ही उपयोग होता है। बाकि राशि कब, कहाँ और कैसे खर्च होती है इसकी जानकारी नहीं मिलती है। हमारे सुझाव में इस फण्ड से किये जाने वाले कार्यों की पहले और बाद में वीडियोग्राफी कराये जाने और प्रस्तावित एवं पुरे किये गए कार्यों का विवरण वेबसाइट पर डालने की जरूरत है ताकि जवाबदेही तय हो सके।
10. आपने यमुना में अवैध रेत खनन के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए क्या-क्या प्रयास किये हैं? इन प्रयासों का क्या परिणाम हुआ है?
हम स्थानीय लोगों ने एक छोटी सी टीम बनाई है और हम क्षेत्र में यमुना नदी से हो रहे अवैध, नुकसानदायक रेत खनन को रोकने के लिए कई स्तरों पर प्रयास करते हैं, चाहे यह खनन कर्ताओं द्वारा बहती धारा में खनन का मामला हो या नदी के प्रवाह को रोकने का। हम निगरानी रखते हैं कि तय सीमा से अधिक गहराई और तय सीमा से बाहर खनन ना हो। हम नदी से रात के समय होने वाले खनन और ग्रामीण सड़कों से गुजरने वाले रेत ओवरलोड ट्रकों पर नजर बनाये रखते हैं।
जब भी हमें नियमों के विरुद्ध खनन कार्य देखने को मिलता है तो हम संबंधित अधिकारियों मौखिक और लिखित तौर पर सूचित कर शिकायत करते हैं। हमारे प्रयासों से कई बार प्रशासन कार्यवाही करता है। इसके अतिरिक्त कुछ अवसरों पर हमने सुनिश्चित किया है कि अनुबंध की शर्ते पूरी किये और राजस्व की रकम जमा किये बिना कंपनियां नदी से रेत खनन का कार्य ना करें।
हमारा मुख्य उद्देश्य रेत खनन संबंधी प्रशासन और व्यवसाय को जवाबदेह, पारदर्शी और पर्यावरण हितैषी बनाना है। हमने प्रशासन से सड़कों पर पोर्टेबल धर्मकांटे लगाने, ई पोर्टल से ओवरलोड वाहन का कॉलम हटाने तथा छापे के दौरान बॉडी कैमरा लगाने के सुझाव दिए हैं। जहाँ वेबसाइट से ओवरलोड वाहन कॉलम तो हटा दिया गया है वहीं प्रशासन ने तकनीकी कारणों का हवाला देकर पोर्टेबल धर्मकांटे और बॉडी कैमरा लगाने के सुझाव पर आश्वासन के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की है।
खनन कार्यों से जुड़ी कंपनियों की आपराधिक एवं राजनितिक पृष्ठभूमि की जांच करना और अधिकारियों-नेताओं-कंपनियों के गठजोड़ से चल रहे अवैध रेत खनन की सीबीआई जाँच हमारी प्रमुख मांगे हैं। यमुना से रेत खनन में नियमों की अनदेखी, इससे नदी पर्यावरण और नदी संरचनाओं को हो रहे भारी नुकसान को रोकने के लिए हमारे संगठन हरियाणा एंटी करप्शन सोसाइटी ने 2017 में एक जन हित याचिका भी पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दाखिल की है जो अभी विचारधीन है।
11. आपको यमुना में अवैध रेत खनन और परिवहन रोकने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? आपके अब तक किए संघर्ष की क्या अनुभव और सीख है? न्यायालय, सरकार और लोगों से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं?
सबसे बड़ी समस्या हमें तब आती है जब भ्रष्ट अधिकारी संलिप्त नेताओ के इशारे और खनन माफियाओं के दवाब में हमारे खिलाफ फर्जी शिकायतें दर्ज करा देते हैं। जिनसे निपटने में हमारा समय और ऊर्जा बर्बाद होती है। इन कार्यों से कई बार टीम में जुड़े लोगों को बहुत ज्यादा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान होता है। इससे टीम का मनोबल कम होता है और कई बार टीम के साथी हमारा साथ छोड़ देते हैं।
कई बार अपराधी प्रवृति के लोग जानलेवा हमले की धमकियां देते हैं जिससे टीम के लोगों को अपने और अपने परिवार की सुरक्षा का खतरा होता है। उन्हें अपने रोजगार को भी बचाना होता है। कुछ ईमानदार अधिकारी, नेता हमें अप्रत्यक्ष सहयोग करते हैं जिससे हमें संघर्ष और प्रयासों को जारी रखने का होंसला मिलता है।
हम अपेक्षा करते हैं कि न्यायालय अवैध रेत खनन संबंधी मामलों की त्वरित सुनवाई करे और दोषियों को समयबद्ध तरीके से सख्त सजा दे। सरकार से हमारी मांग है कि रेत खनन संबंधी प्रशासन और व्यवसाय को जवाबदेह, पारदर्शी और पर्यावरण हितैषी बनाये। नागरिकों खास तौर पर स्थानीय ग्रामीणों को निर्बाध अवैध और मशीनी खनन के दूरगामी दुष्प्रभावों को समझने और इसके समाधान के लिए संगठित प्रयास करने की बेहद जरूरत है।
12. आपके अनुसार यमुना नदी को अत्यधिक रेत खनन से हो रहे दुष्प्रभावों को बचाने के लिए सरकार, प्रशासन और समाज को क्या प्रयास करने चाहिए?
हमारा मानना है कि मशीनी खनन हर लिहाज से नदी, पर्यावरण और ग्रामीणों के लिए बहुत नुकसानदायक है। आज रेत खनन कार्यों से नदी और लोगों को हो रहे अधिकाशं दुष्प्रभावों की जड़ में मशीनी खनन है। इसलिए आज मशीनी रेत खनन पर तुरंत प्रभाव से पाबंदी लगाना बहुत आवश्यक है। इसके स्थान पर सरकार को मशीनों की जगह स्थानीय ग्रामीणों से हाथ से हस्तचालित हल्के औजारों से (मैनुअल) ही नदी से खनन करवाना चाहिए। साथ में सरकार को रेत खनन की योजना और इसकी निगरानी के लिए स्थानीय लोगों की समिति को बनाकर इसे वैधानिक मान्यता देनी चाहिए।
13. यमुना से रेत खनन के प्रशासनिक मामलों में स्थानीय समुदाय की क्या भूमिका होनी चाहिए ?
खनन प्रभावित ग्रामीणों को जागरूक होकर अपने जनप्रतिनिधियों के माध्यम से प्रशासन और सरकार पर नियमों के अनुसार रेत खनन कराए जाने की मांग पुरजोर तरीके से उठानी चाहिए। ऐसा करने से स्थिति में बहुत अधिक बदलाव लाने की संभावना है। जब तक लोग ही अपने खनिज और नदी अधिकारों से विमुख रहेंगे इनकी लूट और बर्बादी रोकना मुश्किल है।
14. यमुना से रेत खनन मामलों में पारदर्शिता, जिम्मेदारी लाने और स्थानीय लोगों को प्रशासनिक निर्णयों में भागीदार बनाने के लिए क्या नीतिगत बदलाव आवश्यक है?
खनन से जुड़े प्रशासनिक ढांचे को प्रभावी और ईमानदार बनाने के लिए तकनिकी संसाधनों जैसे सीसीटीवी, जीपीएस, बार कोड, ड्रोन कैमरा, सैटेलाइट इमेजरी आदि का धरातल पर सक्रिय उपयोग बहुत आवश्यक है। इनके बारे में सरकार बयान तो देती है पर ईमानदारी से अमल नहीं करती। इसके साथ में खनन, प्रदूषण, सिंचाई, पुलिस, राजस्व एवं परिवहन को मानवीय एवं आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराये जाने की सख्त जरूरत है। इसके अलावा ओवरलोड ट्रकों का ऑनलाइन चालान, खनन क्षेत्र में कार्यरत अधिकारियों की सम्पति का विवरण सार्वजनिक करना, स्थानीय लोगों की शिकायतों पर शीघ्रता से कार्यवाही करना और दोषी अधिकारियों की त्वरित जांच कर जेल भेजना भी इस दिशा में आवश्यक कदम है।
SANDRP: वरयाम सिंह जी यमुना रेत खनन संबंधी विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी एवं इस साक्षात्कार हेतु अपना समय देने के आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! आशा है आप अपनी मुहीम जारी रखेंगे और सरकार एवं प्रशासन आपकी मांगों, सुझावों पर गंभीरता से विचार करेगा। हमें यह भी आशा है कि आपकी याचिका पर न्यायालय जल्द से जल्द सुनवाई कर, नदी, पर्यावरण एवं स्थानीय लोगों के हित में फैसला सुनाएगा।
Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)