दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान यमुना नदी प्रदूषण एक महत्वपूर्ण राजनितिक मुद्दा बना। चुनाव जीतने के बाद स्वयं प्रधानमंत्री और भाजपा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने ‘आप’ सरकार की हार के लिए यमुना की दुर्दशा को एक प्रमुख कारण बताया। साथ में यमुना को साफ करने की बात कही। ऐसे में क्या दिल्ली के नागरिक एक स्वच्छ बहती नदी की उम्मीद रख सकते हैं?
सफाई ही नहीं जीर्णोद्धार पर भी हो ध्यान
वैज्ञानिक दृष्टि से जलागम क्षेत्र, सहायक नदियां, बहते जल की मात्रा और गुणवत्ता, नदी आश्रित जलीय और तटीय जीव-जंतु, बाढ़ क्षेत्र आदि की स्थिति किसी भी नदी के स्वास्थ्य को परिभाषित करने वाले आवश्यक मापदंड है।
परन्तु पिछले तीन दशकों में यमुना नदी की सफाई पर ही ख़ास जोर रहा और नदी को प्रभावित करने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारकों जैसे जलागम क्षेत्र में अवनीकरण, सहायक नदियों की निरंतर बिगड़ती स्थिति, बाँध बैराजों की माध्यम से अधिकाधिक जल दोहन, खादर में बढ़ता भूजल दोहन, अतिक्रमण, मशीनी रेत खनन, नदी जीवों के लुप्त होने आदि अहम कारकों पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। साथ में यमुना के हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भी अनदेखी हो रही है।
वैसे तो दिल्ली में यमुना के वास्तविक कायाकल्प के लिए नदी बेसिन में स्थिति छः राज्य सरकारों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान को साथ मिलकर इस दिशा में कार्य करने की नितांत आवश्यकता है। जिसमें केंद्र सरकार के कृषि, जलशक्ति, वन एवं पर्यावरण, शहरी विकास आदि मंत्रालयों एवं विभागों केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण, नमामि गंगे, अप्पर यमुना रिवर बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग और इनके समकक्ष राज्य सरकारों के विभागों की बड़ी जिम्मेदारी है।
वर्तमान में ना तो केंद्र सरकार ना ही राज्यों सरकारों ने इस दिशा में कोई सार्थक पहल की है। फरवरी 2024 में संसदीय समिति की सिफारिशों जिसमें यमुना में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने, खनन, प्रदूषण, खादर अतिक्रमण रोकने आदि शामिल हैं पर भी केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से अब तक किसी प्रगति की सुचना नहीं हैं।
इसके विपरीत नदी की स्थिति सुधारने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय विभागों विशेषकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अपर यमुना रिवर बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग आदि एवं यमुना बेसिन की राज्य सरकारों में दूषण नियंत्रण, खनन, कृषि, वन, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, शहरी विकास विभागों में तकनीकी एवं मानव संसाधनों का भारी अभाव बना हुआ है। इस वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का बजट ओर कम कर दिया है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों के नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की घोषणाएं और योजनाएं कैसे धरातल पर उतरेगी ?
नदी में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने का सुनहरा अवसर
गौरतलब है कि इस वर्ष 1994 में हुए अपर यमुना रिवर बोर्ड समझौते की भी समीक्षा होनी है। छः राज्यों के बीच हुए इस समझौते के तहत ही यमुना नदी से विभिन्न कार्यों के लिए जल निकाला जाता है और इसके कारण दिल्ली से ऊपर नदी पर्यावरणीय प्रवाह से वंचित हो गई है। जिस कारण दिल्ली में तमाम प्रयासों के बावजूद नदी प्रदूषण की समस्या विकराल बनती जा रही है। अगर केंद्र सरकार एवं यमुना बेसिन सरकारें इस समझौते की समीक्षा के दौरान यमुना नदी में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने पर कोई ठोस कदम उठाते हैं तो दिल्ली में यमुना नदी के प्रदुषण में सुधार की अपेक्षा की जा सकती है।
चूँकि अब केंद्र और यमुना बेसिन में स्थित हिमाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों में एक ही दल की सरकार है तो अपेक्षा है कि अब यमुना नदी की समस्याओं को समग्रता से समझकर, उसके उत्थान के लिए प्रभावी योजना बनाई जाएगी और उस योजना को ईमानदारी से लागु किया जायेगा। अन्यथा दिल्ली में यमुना नदी के पुनर्जीवित होने की उम्मीद करना निरर्थक है।
चाहिए समग्र जल नीति
निसंदेह दिल्ली सरकार भी यमुना नदी की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई कार्य कर सकती है। यहाँ पिछले पांच वर्षों में सरकार और राज्यपाल के बीच लगातार टकराव की स्थिति के कारण नदी सफाई कार्य भी बहुत धीमी गति से हुआ है। आज भी दिल्ली में 1100 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज बिना उपचार के नदी में डाला जा रहा है। एक तरह यहां 37 निर्मित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और 13 कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) की कार्यशैली को सुधारने और पारदर्शी बनाने की बेहद आवश्यकता है, वहीं दूसरी तरफ नए विकेन्द्रीकृत एसटीपी का निर्माण भी बहुत जरूरत है। साथ में प्रदूषित उद्योगों को नियंत्रित करने और औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में गिरने से रोकने के लिए कड़े कदम उठाने जरूरी है।
उपचारित सीवेज (ट्रीटेड सीवेज) वास्तव में दिल्ली सरकार के लिए एक बड़ा उपयोगी संसाधन है। सरकार इसे सिंचाई, उद्योग, बागबानी जैसे अनेक द्वितीय कारणों में प्रयोग कर सकती है। साथ में दिल्ली में बड़े पैमाने पर वर्षा जल संचयन करने की आवश्यकता है। इसके अलावा सरकार दिल्ली में भूजल संरक्षण, प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे खादर, तालाब, जोहड़, बावड़ी, झील आदि के जीर्णोंद्धार और हरित क्षेत्र को बढ़ाने का काम वृहद पैमाने पर कर सकती है। यदि यह सब कार्य गंभीरता से किये जाये तो दिल्ली की यमुना नदी पर ताजे जल के लिए आश्रिता कम होगी, नदी प्रदूषण में गुणात्मक कमी होगी। साथ में भूजल दोहन रुकेगा और यमुना में पर्यावरणीय प्रवाह को बढ़ाया जा सकेगा। परन्तु इन सबके लिए दिल्ली सरकार को एक समग्र जलनीति बनानी होगी और इसका संजीदगी से निष्पादन करना होगा।
नई सरकार की यमुना नीति और दिशा
नई सरकार के चुनावी घोषणापत्र पर यदि गौर करें तो इसमें यमुना उद्धार, पुनर्जीवन, जीर्णोद्धार आदि शब्दों का एक बार भी उल्लेख नहीं किया गया है। यमुना सफाई के लिए घोषणापत्र में अंतिम पन्नों पर बिना आवश्यक विवरण के एससटीपी क्षमता को 1000 एमएलडी बढ़ाने और साहिबी नदी (नजफगढ़ नाला), शाहदरा, बारापुला, गाज़ीपुर नालों में प्रदूषण नियंत्रण एवं नदी में शून्य औद्योगिक अपशिष्ट बहाव की बात कही है। साथ में बर्षा जल संचयन, प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण का औपचारिक जिक्र किया है।
घोषणापत्र में राजधानी में पेयजल आपूर्ति को 1000 मिलियन लीटर गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) से बढ़ाकर 1500 एमजीडी करने के लिए नॉन रेवेन्यू वाटर को घटाने, मुनक नहर की क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की सरकारों से जलसंधि कर ऊपरी क्षेत्रों से दिल्ली में यमुना और गंगा नदियों से और अधिक पानी लाने का वादा किया गया है। यह कार्य दिल्ली का यमुना पर बढ़ते जलापूर्ति दवाब को कम करने बिल्कुल विपरीत है और नदी में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।
वास्तव में घोषणापत्र में यमुना नदी एवं खादर संरक्षण के लिए भी विरोधाभासी बातें कही गयी है। एक ओर दिल्ली को बाढ़ रहित बनाने के लिए 700 करोड़ रूपये की घोषणा है तो इसके विपरीत यमुना खादर में सौन्दर्यीकरण के नाम पर व्यवसायिक निर्माणों की बात कही है। इससे एनजीटी के 2015 के आदेश और दिल्ली में पिछले डेढ़ दशकों में खादर क्षेत्र संरक्षण के लिए कार्यों की अवेहलना होने की आशंका है।
घोषणापत्र में दिल्ली में साबरमती की तर्ज पर यमुना रिवरफ्रंट विकसित करने की बात सबसे अधिक निराशाजनक है। अहमदाबाद में नर्मदा नदी के पानी को नहर से छोड़कर साबरमती रिवरफ्रंट बनाया गया है जिसमें शहर में नदी को एक लम्बे रुके हुए तालाब में तब्दील कर दिया गया है। रिवरफ्रंट क्षेत्र के नीचे आज भी नदी में अनुपचारित घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट निर्बाध बहाए जा रहे हैं। साथ में रिवरफ्रंट के नाम पर नदी के प्राकर्तिक तटों को कंक्रीट निर्मित व्यावसायिक कार्यों से पाटा जा रहा है।
हाल ही में केंद्र सरकार की दिल्ली में यमुना वाटर टैक्सी का परीक्षण हो या राज्यपाल का यमुना रोपवे योजना सर्वे का आदेश या एनजीटी के निर्देशों का उल्लंघन कर यमुना खादर में बांसेरा व्यावसायिक निर्माण कार्य, यही इंगित करते हैं कि नई सरकार पर यमुना पुनर्जीवित के स्थान पर नदी सफाई, जल दोहन और सौंदर्यीकरण का पक्ष ज्यादा हावी है। ऐसे में दिल्ली में यमुना नदी में प्रदूषण रोकथाम, पर्यावरणीय प्रवाह और खादर संरक्षण के आवश्यक पहलुओं के गौण होने की पूरी सम्भावना है।
भीम सिंह रावत (bhim.sandrp@gmail.com)
इस लेख का एक संशोधित संस्करण 13 फरवरी 2025 दैनिक जागरण, दिल्ली में भी प्रकाशित किया क्या है।
