(Feature Image: Bone dry Yamuna riverbed at Mawi, Kairnana. (Image Bhim Singh Rawat, June 2010)
सर्दी शुरू होते ही दिल्ली में यमुना नदी में झाग की समस्या चरम पर पहुँच जाती है। इसी के साथ कई दिनों तक ओखला बैराज के नीचे नदी सतह पर तैरते ‘आइस बर्ग’ की भांति दिखने वाले झाग के बड़े-बड़े खंड लोगों के आकर्षण और मीडिया की सुर्ख़ियों का केंद्र बन जाते हैं। बढ़ते नदी प्रदुषण पर नागरिकों की बढ़ती चिंताओं और नदी प्रेमियों के बढ़ते सवालों के बीच राजनितिक दोषारोपण का दौर शुरू होता है। समस्या का फौरी निराकरण करते दिखने के प्रयास में संबंधित सरकारी विभाग आनन-फानन में कुछ आधे-अधूरे कदम उठाते हैं। त्यौहार और खास तौर पर छठ पर्व समाप्त होते ही, लोगों की नदी पर जाने वाले भीड़ कम हो जाती है और दो-तीन सप्ताह बाद सब यमुना नदी में बढ़ते प्रदुषण और झाग की समस्या को भूल जाते हैं। लगभग एक साल बाद फिर से यह क्रम दोहराया जाता है जब सर्दी के समय झाग के आगोश में लिपटी प्रदूषित यमुना, नागरिकों की उदासीनता और नदी सफाई योजनाओं की नाकामी को उजागर करती है।
सिर्फ सफाई बजट, योजनाएं ही नहीं प्रवाह मांगती यमुना नदी
यमुना नदी में झाग की सालाना घटना पर नदी सफाई पर खर्च बजट और योजनाओं की चर्चा प्रमुखता से होती है। जोकि बेहद जरूरी है पर उससे भी अहम सवाल नदी में नगण्य पर्यावरणीय प्रवाह का है जिस पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है। साथ में नदी सफाई योजनाओं को पारदर्शी, जवाबदेह और भागीदारी पूर्ण बनाने की दिशा में भी इच्छाशक्ति का अभाव नजर आता है।
बजट और योजनाओं की ही बात करें तो इसी वर्ष फरवरी 2024 में जारी यमुना संसदीय रिपोर्ट के अनुसार यमुना एक्शन प्लान एक और दो में 1514.70 करोड़ रूपये नदी सफाई पर खर्च हो चुके हैं। पिछले एक दशक में इसी काम के लिए नमामि गंगे योजना के तहत भी 5834.7 करोड़ रुपए मंजूर किये गए जिसमें से 2597.28 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
गौरतलब है यमुना नदी सफाई पर अब तक खर्च 4141. 98 करोड़ रुपए की धनराशि का बड़ा हिस्सा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, सीवरेज नेटवर्क बनाने, घाट निर्माण, सौन्दर्यीकरण और जागरूकता के काम पर किया गया है। जबकि नदी में पारिस्थिकीय तंत्र को बचाने और पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करने की योजना आज तक नदारद है।
इसी रिपोर्ट में इन सफाई योजनाओं की दुर्दशा का उल्लेख किया गया है। जिसके अनुसार दिल्ली में निर्मित 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से 22 प्लांट तय मानकों पर काम नहीं कर रहे हैं। इसी तरह हरियाणा में निर्मित 156 प्लांटों में से 64 प्लांट अपने उद्देश्य पर खरे नहीं उतरे हैं। केवल दिल्ली में 3600 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज उत्पन्न होता है जबकि यहाँ बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कुल क्षमता 2874 एमएलडी है और मात्र 2486.7 एमएलडी सीवेज का निस्तारण का दावा किया जाता है। जिसका अर्थ है कम से कम 1113 एमएलडी सीवेज बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे यमुना नदी में गिर रहा है।
कमोबेश यही स्थिति औद्योगिक अपशिष्टों और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांटस की भी है। आज हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में हज़ारों की संख्या में जल प्रदूषण करने वाले उद्योग अवैध तौर पर संचालित है जिनसे भारी मात्रा में उत्तपन्न औद्योगिक अपशिष्ट यमुना नदी को प्रदूषित कर रहे हैं।
ऐसे हालत सालों से हैं। परन्तु क्यों हमारे एससटीपी और सीईटीपी ठीक से काम नहीं करते हैं और इन्हें सुचारु तौर पर चलाने की कारगर व्यवस्था क्यों नहीं की जाती है ?
यमुना सफाई योजनाओं में विसंगतियां एवं विरोधाभास
स्पष्ट है यमुना नदी सफाई योजनाओं के चयन और उनके निर्माण में आधारभूत विसंगतियां हैं। इनका निष्पादन कछुए की रफ़्तार से होता है और संचालन व्यवस्था तो पूरी तरह लचर है। साथ में इन योजनाओं की निगरानी में पर्यावरणविदों और नागरिकों की भी कोई भूमिका सुनिश्चित नहीं की गई है। नतीजन करोड़ों रूपये खर्च होने के बाद भी नदी में प्रदुषण की समस्या बद से बदतर हुई है।
साथ में सरकारी योजनाओं में इस तरह का विरोधाभास है कि एक योजना यमुना एक्शन प्लान, नमामि गंगे नदी सफाई पर करोड़ों खर्च करती है। वहीं दूसरी योजना उप्पर यमुना रिवर बोर्ड नदी में उपलब्ध जल को बेसिन सरकारों में बाँट देती है और नदी को पूरी तरह प्रवाह विहीन कर दिया जाता है। इसका नतीजा है कि पर्यावरणीय प्रवाह के अभाव में सफाई योजनाएं निर्रथक साबित हुई हैं। दूसरी तरफ यमुना घाटी में जो बारिश होती है, उसे स्थानीय तौर पर संग्रह करने और भूजल रिचार्ज करने में की दिशा में कोई कारगर काम नहीं हुआ है। जिससे मानसून के बारिश का पानी तेजी से नदी में पहुंचकर, बाढ़ में बदल जाता है।
निरंतर बहना किसी भी नदी का पहला, प्राकृतिक और अति-आवश्यक स्वभाव है। जो नदी बहती नहीं वो नदी ही नहीं है। यही वो तथ्य है जिसे हमारे नदी सफाई योजनाकार एवं सम्बंधित सरकारे जानना नहीं चाहती हैं या जानकर भी अनदेखा कर रही है।
सरकारी नदी सफ़ाई योजनाओं की तकनीकी, बजट और विफलता एक तरफ, सच्चाई यही है कि नदी जितना स्वछन्द, अविरल बहती है वो बिना किसी योजना, बजट स्वयं ही अपने को काफी हद तक स्वच्छ रखने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि मार्च-मई 2020 में कोविड महामारी के दौरान बारिश से प्रवाह बढ़ने और औद्योगिक प्रदूषण बंद होने से दिल्ली में यमुना नदी के जल की गुणवत्ता में अविश्वनीय सुधार देखने को मिला। यही काम नदी प्राकृतिक तरीके से प्रतिवर्ष मानसून के समय करती आ रही है।
दिल्ली में वर्तमान यमुना संकट का भी एक तात्कालिक एवं आसान उपाय है पर्यावरणीय प्रवाह को बढ़ाना। अगर हथनीकुंड बैराज पर उपलब्ध जल का 50 प्रतिशत हिस्सा दो हफ्ते के लिए नदी में बहने दिया जाए तो दिल्ली में जारी पेयजल संकट, यमुना प्रदुषण एवं झाग की समस्या में गुणात्मक सुधार हो सकता है। केंद्र सरकार कुम्भ के समय गंगा नदी में अतिरिक्त जल प्रवाह के लिए तत्परता से प्रयास करती है। अगर सरकार चाहे तो दिल्ली में छठ के समय भी ऐसा प्रयास हो सकता है।
बारामासी यमुना के लिए हो ठोस प्रयास
पर्यावरणीय प्रवाह ही यमुना नदी को पुनर्जीवित करने का दीर्घकालिक समाधान है। चिंताजनक है दिल्ली से ऊपर यमुना नदी में 9 गैर मानसूनी महीनों के दौरान पर्यावरणीय प्रवाह का नितांत अभाव होता है। नदी के ऊपरी जलागम क्षेत्र में बढ़ती जल दोहन योजनाओं व्यासी बांध, डाकपथर एवं हथनीकुंड बैराजों के निर्माण से आज 1376 किमी लम्बी यमुना मात्र आरम्भिक 100 किमी के हिस्से में ही अवरिल बहती है। हथनीकुंड बैराज से नदी में उपलब्ध जल का अधिकांश हिस्सा नहरों में बाँट लिया जाता है और नदी को खनन, प्रदूषण, अतिक्रमण के हवाले छोड़ दिया जाता है।
यमुना में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाने के लिए ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी ) ने जून 2015 में हथनी कुंड बैराज से नीचे यमुना नदी में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह को 4.5 घन मीटर प्रति सेकेंड (क्यूमेस) से बढाकर 10 क्यूमेक्स किया था। ना केवल यह जलराशि पूरी तरह अपर्याप्त है, बल्कि निष्पक्ष निगरानी के अभाव इस आदेश की पालना भी संशय में है। इसके बाद वर्ष 2019 राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान रुड़की ने अपनी रिपोर्ट में हथनीकुंड बैराज से यमुना नदी में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह को 10 क्यूमेक्स से बढ़ाकर 23 क्यूमेक्स बढ़ाने की सिफारिश दी। परंतु पिछले पांच वर्षों में इस सुझाव पर सम्बंधित सरकारों और विभागों की तरफ से कोई पहल नहीं हुई है।
ज्ञात रहे कि 23 क्यूमेक्स की मात्रा भी नदी में प्रवाहमान बनाने में नाकाफी है। सैद्धांतिक तौर पर यमुना नदी की आधारभूत प्रक्रियाओं जैसे पारिस्थिकीय तंत्र, जलीय जीवों के जीवन चक्र, भूजल संचयन, रेत बहाव गाद निस्तारण आदि की पूर्ति हेतु नदी पर बने बांध और बैराज पर उपलब्ध जल का कम से कम 50 प्रतिशत नदी में छोड़ा जाना चाहिए।
इस दिशा में सम्बंधित राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय को मिलकर सुनियोजित तरीके से प्रभावी कदम उठाने की सख्त जरूरत है। अगले वर्ष यमुना जल बंटवारे संधि की समीक्षा के दौरान यमुना नदी हित में पर्यावरणीय प्रवाह बढ़ाना इस दिशा में पहला सार्थक कदम हो सकता है।
दूसरा, जैसा कि यमुना पर बने बांधों, बैराजों का दुष्प्रभाव हम सबके सामने है, अब समय आ गया है कि नदी पर प्रस्तावित, निर्माणधीन रेणुका, किशाऊ, लखवाड़ जैसी बड़ी विनाशकारी बांध योजनाओं का स्वतंत्र आकलन कर ईमानदारी से स्थानीय, प्रभावी विकल्पों को अपनाया जाए।
दूसरा, जैसा कि यमुना पर बने बांधों, बैराजों का दुष्प्रभाव हम सबके सामने है, अब समय आ गया है कि नदी पर प्रस्तावित, निर्माणधीन रेणुका, किशाऊ, लखवाड़ जैसी बड़ी विनाशकारी बांध योजनाओं का स्वतंत्र आकलन कर ईमानदारी से स्थानीय, प्रभावी विकल्पों को अपनाया जाए। तीसरा बारिश के पानी को स्थानीय तौर पर संचयन करने के लिए प्राथमिकता से काम करना होगा। चौथा एससटीपी और सीईटीपी संचालन की प्रक्रिया पारदर्शी एवं प्रजातांत्रिक हो। क्या सरकारें यमुना की मांग सुनेगीं?
Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)
यह लेख संशोधन के साथ आज दैनिक जागरण के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित किया गया है।
