Guest Blog by Jubin Mehta
मैंने और मेरे साथी ने 25 नवंबर 2019 से 25 फरवरी 2020 का समय नर्मदा परिक्रमा के दौरान नदी किनारे यात्रा करते हुए व्यतीत किया। करीब 90 दिनों तक चली इस परिक्रमा में हमने कुछ 2500 किमी की पदयात्रा और शेष लगभग 1000 किमी का सफर गाड़ी से किया। बड़ा ही सुन्दर अनुभव रहा- किनारे पर बसे हुए लोगों का भाव, मंदिर और आश्रमों की सेवा और नर्मदा मैया के चमत्कार ने ह्रदय को निर्मल कर दिया और मन को भी एक अद्भुत सी शान्ति से मिली।
हमारे लिए परिक्रमा की प्रक्रिया आध्यात्मिक थी और पूरी यात्रा हमने अपने आप को बेहतर जानने के मक़सद से की। इन तीन महीनों के दौरान खूब सारी कठिनाईयां आई जो अगर दृष्टाभाव से देखें तो मन को स्थिर करने में बहुत सहायक रही और शायद गंदगी भी इसी का एक हिस्सा हो सकता है। पर एक बार पर्यावरण के नज़रिये से देखें तो, परिक्रमावासियों को अपनी आदतों को बदलना होगाऔर वे लोग भी जो परिक्रमावासियों की सेवा करते है।
यह पोस्ट लिखने का मेरा एक ही मक़सद है की अगर हम इस प्लेटफार्म द्वारा ये आवाज़ परिक्रमावासियों तक पहुंचा पाएं तो नर्मदाजी के आस पास फैलती हुई गंदगी को रोका जा सकता है। वैसे तो परिक्रमावासी अपना पात्र लेकर चलते है पर बहुत ही जल्द सभी जगह प्लास्टिक डिस्पोजेबल गिलास और प्लेट का इस्तेमाल होने लगा है। पैदल यात्री हो या गाडी से चलने वाला यात्री, लोग प्लास्टिक के डिस्पोजेबल पात्र इस्तेमाल कर रहे हैं और ये सारा कूड़ा नर्मदा किनारे फेका जाता है। या तो ये कूड़ा नर्मदाजी में जाता है या इसे इकठ्ठा करके जलाया जाता है! दोनों ही पर्यावरण के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक है।

दूसरा किस्सा है, बढ़ता हुआ पैकेज्ड फ़ूड खाने की आदत। हमने देखा कैसे खूबसूरत वन के बीचों बीच भी बिस्कुट और चिप्स के पैकेटों की भरमार है। कई बार लोग अपने कपडे भी नर्मदाजी में फेंक देते है! हम ये मानते है की हम पानी में जो भी फेंकते है वह बहकर कहीं चला जाता है पर ये कहीं जाता नहीं है! यह नदी में रहकर उसके लिए और उसमें रहने वाले जीवों को हानि पहुंचाता है। नर्मदाजी और अन्य नदियां जो हमारी जीवन रेखा है जब खुद ही जीवन के लिए तड़प रही है तो इंसान की जीवन रेखा भी नहीं बन सकती।
बड़े बड़े डैम और अनरेगुलेटेड फैक्ट्रीज तो सबसे बड़ा कारण है जो नर्मदाजी को हानि पहुंचाता है पर एक आम इंसान जो नदी के तट पर रहता है और हज़ारों परिक्रमावासी जो हर साल नर्मदाजी की परिक्रमा करते है, उनसे निवेदन है की वे भी प्लास्टिक डिस्पोजल की समस्या के प्रति सावधान हो जाए और अपने खुद के छोटे छोटे कर्म की ज़िम्मेदारी ले। अगर हम सेवा कर रहे है तो क्या हम पत्तल में या स्टील की थाली में भोजन परोस सकते है? हाँ, इसको धोने में दिक्कत आएगी पर यही तो सेवा है – नर्मदाजी की सेवा। परिक्रमावासी को बोले अपनी थाली धोने के लिए; पर प्लास्टिक डिस्पोजेबल कप और प्लेट न इस्तेमाल करें और अगर आप परिक्रमा में हो तो अवश्य ध्यान रखे की कूड़ा इधर उधर न फैलाएं और जितना कम हो सके उतना कम प्लास्टिक डिस्पोजल का प्रयोग करें। साथ में पैकेज्ड फ़ूड का उपयोग भी कम करें।

अगर हम यहीं से शुरू करेंगे तो बड़ी सहायक बात होगी और जब एक एक कर लोग जुड़ने लगते है तो उसका परिणाम जरूर सकारात्मक आएगा। अगर ग्राम के लोग, मंदिर आश्रम और दूर दूर से आये हुए परिक्रमावासी सफाई का ध्यान रखने लगे तो छोटे और बड़े उद्योग भी बदलेंगे। यह परिक्रमा का रिवाज़ जो सदियों पुराना है, वही फिर मददगार रहेगा नर्मदा की महिमा को बनाये रखने में। आओ, हम सब परिक्रमावासी एकजुट होते हैं और यह निश्चय करें की नर्मदा नदी किनारा एकदम साफ़ रखेंगे और मैया के पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचने देंगे।
नर्मदे हर !
Jubin Mehta (jubinmehta09@gmail.com)
Also see:- Experience of Narmada Parikrama in 2020: a 3500 km pilgrimage along the river
सही बात है. आध्यात्मिकता पर्यावरणसे जुडी होनी चाहिये.
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Reblogged this on गोष्टी सुरस आणि मनोरंजक व बरच काही and commented:
नर्मदा परिक्रमा करनेवालों ने पर्यावरण का ध्यान रखना जरुरी है, ये अपने अनुभवसे बताने वाला ये पोस्ट
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Awareness programme needs to be planned and implemented enroute Parikrama .
People who go on Parikrama should be held responsible for taking away plastic and other garbage along with them and to dispose of at a place from where it can be carried for recycling .
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Thanks. Yes indeed, we need such programs.
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Reblogged this on Gopal Garg and commented:
Yes this is true, being a Parikramawasi myself I have seen the amount of trash been put in mother narmada. There are local communities working but don’t have better ideas to deal with it. At Gwari Ghat at Jabalpur I met the team of people behind cleaning 200 tonnes of trash from Gwari Ghat, Jabalpur. Everyone is having intentions but lack ideas. How can we channelize ideas and educate people in some best practices.
Raising a concern is the first step and starting to address is the second. I am ready for the second leap. Lets do it together garggopal@gmail.com
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Many thanks. Totally agree with you. Great to know there is a group with great intention at Gwari Ghat, Jabalpur.
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Can I ask about what steps are taken at a local administration level about this pollution? Do they take responsibility in helping to prevent it e.g. by imposing fines, or implementing education programmes for the local communities?
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Good question. Local administration is generally in charge of ensuring cleanliness of public places, collecting the garbage and ensuring its safe disposal and since they are generally owners of the public land, they can ensure it is not encroached on and otherwise polluted. However, in practical terms they do little in most places.
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Very sad to hear that. Water in becoming an increasingly important resource and local authorities should be taking all possible steps to ensure rivers, streams and lakes are clean and unpolluted.
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Yes, totally agree.
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