पनचक्कियां सदियों से उत्तराखंड के पर्वतीय समाज का अटूट हिस्सा रही हैं। स्थानीय तौर पर इन्हें घट, घराट आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कुछ दशक पहले तक ये घराट अनाजों को पीसकर आटा बनाने का प्रमुख साधन रहे हैं। परन्तु कालांतर में अनेक कारणों से यह परम्परागत तकनीक, समाज और सरकार की अनदेखी का शिकार होकर विलुप्त होती जा रही है। ऐसा ही कुछ पौड़ी गढ़वाल स्थित चौथान पट्टी में देखने को मिल रहा है। यह लेख चौथान क्षेत्र में घराट संस्कृति के क्रमिक परित्याग की वजहों के पड़ताल की दिशा में एक प्रयास है।
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