यह सचित्र रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे उत्तराखंड में ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण दौरान उत्तपन्न मलबे को नियमों के विपरीत छोटी जलधाराओं, गदेरों में फेंक दिया जाता है जो नदी पर्यावरण तंत्र को तात्कालिक तौर पर नुकसान पहुँचाने के अलावा भविष्य में किसी बड़ी आपदा का कारक भी बन सकती है।
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उत्तराखंड: चौथान में ‘बादल फटा’, आपदा तंत्र फिर नदारद
बुधवार-गुरुवार (28-29 जुलाई) की दरमियानी रात में हुई अत्यधिक बारिश ने पौड़ी जिले की थलीसैंण तहसील में स्थित चौथान पट्टी के कई गांवों को प्रभावित किया है। गनीमत है कि कोई हताहत नहीं हुआ है लेकिन गांव और सार्वजनिक सम्पति के अलावा स्थानीय फसलों को भारी नुकसान हुआ है।
जहां जिले के अंतिम हिस्से में बेतहाशा बारिश हुई, वहीं डुमणीकोट के ग्रामीणों ने ‘बादल फटने’ की घटना से मची तबाही की सूचना दी। यह गांव पौड़ी-चमोली-अल्मोड़ा जिलों की सीमा पर स्थित है।
Continue reading “उत्तराखंड: चौथान में ‘बादल फटा’, आपदा तंत्र फिर नदारद”घराट: सामाजिक देखभाल, सरकारी सहयोग की राह देखती लुप्त होती धरोहर
पनचक्कियां सदियों से उत्तराखंड के पर्वतीय समाज का अटूट हिस्सा रही हैं। स्थानीय तौर पर इन्हें घट, घराट आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कुछ दशक पहले तक ये घराट अनाजों को पीसकर आटा बनाने का प्रमुख साधन रहे हैं। परन्तु कालांतर में अनेक कारणों से यह परम्परागत तकनीक, समाज और सरकार की अनदेखी का शिकार होकर विलुप्त होती जा रही है। ऐसा ही कुछ पौड़ी गढ़वाल स्थित चौथान पट्टी में देखने को मिल रहा है। यह लेख चौथान क्षेत्र में घराट संस्कृति के क्रमिक परित्याग की वजहों के पड़ताल की दिशा में एक प्रयास है।
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