बुधवार-गुरुवार (28-29 जुलाई) की दरमियानी रात में हुई अत्यधिक बारिश ने पौड़ी जिले की थलीसैंण तहसील में स्थित चौथान पट्टी के कई गांवों को प्रभावित किया है। गनीमत है कि कोई हताहत नहीं हुआ है लेकिन गांव और सार्वजनिक सम्पति के अलावा स्थानीय फसलों को भारी नुकसान हुआ है।
जहां जिले के अंतिम हिस्से में बेतहाशा बारिश हुई, वहीं डुमणीकोट के ग्रामीणों ने ‘बादल फटने’ की घटना से मची तबाही की सूचना दी। यह गांव पौड़ी-चमोली-अल्मोड़ा जिलों की सीमा पर स्थित है।

डुमणीकोट के प्रधान श्याम सिंह रावत ने कहा, “हम रात भर सो नहीं सके क्योंकि हमारे स्थानीय टोप्या गदेरे में करीब रात 2 बजे भयावह गाढ़ आ गई और कई घरों में पानी, मलबा घुस गया।”
यह गांव पौड़ी-गैरसैंण मुख्य सड़क मार्ग से लगभग आधा किलोमीटर ढलान पर बसा है। सुबह जब श्याम सिंह रावत सड़क पर गए तो उन्होंने देखा कि भूस्खलन के कारण करीब 20 मीटर लंबी सड़क क्षतिग्रस्त हो गई है। साथ में गदेरे के पास सड़क का बड़ा हिस्सा बड़े बड़े चट्टानों, मलबे के नीचे दब गया है। जिससे वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से अवरुद्ध हो गई। इसी गदेरे पर बना एक पैदल पुल भी बह गया।

अप्रत्याशित बारिश और गाढ़ के कारण टोप्या के बहाव क्षेत्र में कई स्थानों पर भूस्खलन और चट्टानों के घिसकने से गदेरे का स्वरूप ही बदल गया। “मैं यहां पिछले बीस वर्षों से रह रहा हूं, इतनी अधिक बारिश और नुकसान कभी नहीं देखा “, देव सिंह घनियाली एक ग्रामीण ने बताया। घनियाली घटना स्थल के पास सड़क के किनारे एक किराने की दुकान चलाते हैं।
ग्रामीणों के अनुसार टोप्या के अलावा स्थानीय गढ़ी और खाई जलधाराओं में भी खतरनाक बाढ़ आ गई थी। “लगातार तीन घंटे चली बारिश से सभी छोटे, बड़े गदेरे उफान पर आ गए और उनके किनारे स्थित कई खेतों का कटान हो गया और खड़ी फसल रेत, बजरी में दफन हो गई। दो पुलिया टूट गई जिससे गांव का संपर्क जिले से कट गया”, भीम सिंह रावत, सरपंच, डुमणीकोट ने बताया। उनके अनुसार गाढ़, मलबे, बारिश से गांव के तीस से ज्यादा काश्तकारों की 20 नाली से अधिक जमीन पर फसल बर्बाद हो गई।

“कई घरों में दरारें आ गई हैं जो फिर ऐसी बारिश हुई तो गिर सकते हैं। गांव के आस पास जमीन खिसक रही है। पैदल चलने के रास्ते बुरी तरह टूट चुके हैं। एक व्यक्तिगत पेयजल आपूर्ति पाइप लाइन भी बह गई है”, सरपंच ने घटना का वर्णन करते हुए बताया।
गांव के बुजुर्गों के मुताबिक उन्होंने अपने जीवनकाल में इतनी भारी बारिश कभी नहीं देखी। “इस मजबूत चट्टान के कारण मेरी गौशाला बच गई नहीं तो मेरे मवेशी जिन्दा दब जाते”, उसी गांव के प्रेम सिंह चौंडियाल ने बताया।
इस घटना से डुमणीकोट के अलावा समीप के बैसाणी, मनियार, पचतौड़ा गांवों में भी घरों, गौशालाओं, फसलों और खेतों को नुकसान पहुंचा है। स्थानीय प्रशासन के अनुसार पांच गांवों में 3.282 हेक्टेयर (200 नाली, 8 मुठी) फसल प्रभावित हुई है। वहीं क्षेत्र में भारी वर्षा से पाठों और रिक्साल गांवों में भी कुछ घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जबकि पूरे क्षेत्र से फसल क्षति, अलग अलग जगहों से भूस्खलन की सूचना मिली है।
टोप्या गदेरे के जलागम क्षेत्र के दूसरी ओर स्थित एक अन्य गांव मल्ली ड़डोली को काफी नुकसान हुआ है। “आधी रात के आसपास बादलों की तेज गर्जना के साथ बिजली चमक रही थी। जल्द ही, हमारा घट गदेरा उफान पर था और तीन पुराने घराटों के ढांचे के ढह गए, साथ में एक पैदल पुल, दो पन्यारे भी क्षतिग्रस्त हो गए”, गांव के प्रधान गोविंद सिंह नेगी ने कहा।

उनके अनुसार अचानक आई गाढ़ ने गदेरे को तीन गुना चौड़ा कर दिया। गदेरे के किनारे की 150 नाली से अधिक जमीन पर स्थानीय फसलें क्षतिग्रस्त हो गईं। वास्तव में घट गदेरे का लगभग आधा किमी का हिस्सा जो मल्ली ड़डोली से होकर और पौड़ी-गैरसैंण मार्ग के मुख्य बाजार बिरुधुनी के पास से बहता है, अभी भी विनाश की गवाही देता है।
विनाश आंशिक रूप से मानव निर्मित
मूसलाधार बारिश से बिरुधुनी बाजार क्षेत्र भी मलबा, कीचड़ से भर गया। वेग से बहता पानी बाजार की एक पुरानी दुकान के निचले हिस्से को बहा कर ले गया। “विनाश आंशिक रूप से मानव निर्मित कारणों से है। बाढ़ के पानी को सुचारू रूप से गुजरने के लिए निकासी पुलिया में पर्याप्त जगह होनी चाहिए और मानसून से पहले इसे साफ करने की जरूरत है। निर्माण गुणवत्ता घटिया होने से ये गाढ़ की मार नहीं झेल पाते हैं”, पदम सिंह कांडपाल, अध्यक्ष, बिरुधुनी व्यापार मंडल ने कहा।

दरअसल बुंगीधार से डुमणीकोट तक 10 किमी में कई स्थानों पर निकासी बंद होने से बारिश का पानी सड़क किनारे बह रहा था जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ गई थी। खोड़ा और बिरुधुनी के बीच इसी सड़क का 3 किमी हिस्सा जगह जगह मलबे, पत्थर और भूस्खलन से बंद हो गया था।
गोविंद सिंह नेगी स्थानीय गदेरों के बढ़ते दुरुपयोग पर अफसोस जताते हैं। “अब भारी मात्रा में ठोस कचरे को नदियों में फेंक दिया जाता है जो बाढ़ के दौरान धारा को बंद और मोड़ देता है जिससे नुकसान बढ़ जाता है”। देव सिंह घनियाली भी मानते हैं यदि उनके दुकान के पास की धारा पर पुलिया होती तो मलबा और पानी गांव की तरफ नहीं जाता।

बादल फटना या भारी वर्षा
इस घटना ने फिर से बादल फटने बनाम भारी बारिश पर बहस छेड़ दी है। ग्रामीण इस घटना को ‘बादल फटना’ मानते हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन इसे भारी बारिश करार देता है। यह पहेली हमेशा के लिए अनसुलझी रहेगी क्योंकि मौसम विभाग द्वारा क्षेत्र में वर्षा की निगरानी का सरासर अभाव है।
श्याम सिंह रावत के अनुसार, “टोप्या गदेरे के किनारे व बहाव क्षेत्र में बड़ी-बड़ी चट्टान, बिना जलप्रलय के लकड़ी के लट्ठों की तरह नीचे नहीं लुढ़क सकते हैं” उस भयानक रात को याद करते हुए गोविंद सिंह नेगी कहते हैं कि किसी भी ग्रामीण ने अपने जीवनकाल में इतनी बारिश नहीं देखी है।

घटना स्थल से लगभग 60 किमी दूर स्थित थलीसैंण तहसील में बारिश को मापा जाता है, जो हर सुबह 09:00 बजे पौड़ी में आपदा नियंत्रण कक्ष को दैनिक वर्षा डेटा प्रस्तुत करता है। आपदा नियंत्रण प्रकोष्ठ के अनुसार 27 जुलाई से 28 जुलाई के बीच 24 घंटों के दौरान महज 15 मिलीमीटर बारिश हुई।

इसके विपरीत, क्षेत्रीय मौसम विभाग केंद्र, देहरादून, जो दोपहर 02:00 बजे तक दैनिक वर्षा रिपोर्ट प्रकाशित करता है, उसी अवधि के लिए थलीसैंण में 60 मिमी वर्षा का उल्लेख करता है जो बादल फटने की आधिकारिक परिभाषा एक घंटे में सीमित क्षेत्र में 100 मिमी वर्षा के मापदंड से बहुत कम है।
आपदा रोकथाम तैयारी नदारद
एक ओर पिछले दशक में हिमालयी क्षेत्रों में अतिवृष्टि ‘बादल फटने’ की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं तो दूसरी ओर इनकी पूर्व निगरानी, सामायिक सुचना और प्रभाव से बचाव की तैयारी की रणनीति का नितांत आभाव बना हुआ है।
मई 2021 के प्री-मानसून महीने में, SANDRP ने अकेले उत्तराखंड में होने वाली 24 ऐसी घटनाओं[i] का संग्रहण किया है। चौथान पट्टी को अतीत में भी इसी तरह की घटनाओं का सामना करना पड़ा है। इससे पहले यहाँ[ii] 23 जून, 2019 को मासों क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी। उस समय भी आपदा नियंत्रण कक्ष और प्रशासन को इसकी कोई खबर नहीं थी।
इस मामले में भी मौसम विभाग, आपदा नियंत्रण प्रकोष्ठ घंटों तक घटना से अनजान रहा। स्थानीय और सोशल मीडिया में हलचल बाद ही स्थानीय प्रशासन हरकत में आया, लेकिन क्षेत्र में बारिश निगरानी प्रणाली नहीं होने के बावजूद इसे बादल फटने की घटना से इनकार करना जारी रखा। यह पहलु आपदा से प्रभावित ग्रामीणों, किसानों की समुचित आर्थिक मदद में बड़ी रूकावट बनता है।
वर्षा निगरानी की कमी के अलावा, स्थानीय लोगों को अतिवृष्टि की पूर्व चेतावनी दे समय पर सतर्क करने के लिए कोई तंत्र नहीं है जिससे विनाश के प्रभाव को कम किया जा सके। गौरतलब है कि क्षेत्र के विधायक डॉ. धन सिंह रावत के पास आपदा प्रबंधन और पुनर्वास का प्रभार भी है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्षों पहले क्षेत्र में आपदा प्रबंधन के नाम पर टिन शेड का ढांचा ही बना है, वह भी अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है।

साफ़ है, ‘बादल फटने’ की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन पूर्व निगरानी, समय पर सुचना, प्रभाव रोकथाम तैयारी के नाम पर सरकारी तंत्र अभी भी गहरी नींद में है, वह भी ऐसे राज्य में जो निरंतर प्राकृतिक और मौसमी आपदाओं का दंश झेलता आ रहा है।
Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gamil.com)
End Notes:-
[i] https://sandrp.in/2021/06/03/uttarakhand-cloud-bursts-in-may-2021/
[ii] https://sandrp.in/2019/06/26/cloud-burst-in-chouthan-no-rain-says-disaster-control-room-pouri-garhwal/