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चौथान में बादल फटा; स्थानीय प्रशासन, आपदा प्रबंधन पौड़ी को नहीं पता

गत 23 जून 2019 को, उत्तराखंड की चौथान पट्टी में तेज और असामान्य बरसात हुई। थलीसैंण तहसील के अंतर्गत लगने वाली चौथान पट्टी में 72 गांव आते हैं। पौड़ी जिले के दूरस्थ क्षेत्र में बसी चौथान पट्टी, दूधातोली आरक्षित वन के बफर जोन के आस पास बसी हुई है।  साथ में यह पट्टी अल्मोड़ा और चमोली जिले की सीमाओं से सटी हुई है। 

(“इति जोरग बरख लागि छ, हम भैर-भीतर नि अय स्की, हमूल अपण जमन मै यैस अंधकोप नी देख, हमूल  जाण याल छ, गाढ़-गेदरयुग गुगाट, जरूर कखि ढोल-फ़ोल करल”) “इतने जोर से बारिश हुई थी कि हम लोग घरों में कैद हो गए। हमारी याद में ऐसी घनघोर बरसात पहले कभी नहीं हुई। गाड़ गदेरों में आई बाढ़ की गड़गड़ाहट से ही हम समझ गए थे, कहीं कुछ नुकसान जरूर होगा”, स्यूंसाल गांव की एक बुजुर्ग महिला ने बताया।

बारिश रविवार शाम लगभग तीन बजे के शुरू हुई और करीब दो घंटे तक लगातार चलती रही। अतिवृष्टि के दो बाद ग्रामीण लोग इसे बादल फटने की घटना मान रहे हैं और इलाके में इससे हुए नुकसान की सूचनाएं किस्तों में मिल रही है। 

हालाँकि इस घटना में कोई मानवीय क्षति नहीं हुई है परन्तु खेती बाड़ी खासतौर पर धान की खेती को बड़े पैमाने पर क्षति हुई है। ग्रामीणों के अनुसार मंसारी, चमाली, थान, मासौं आदि गांवों में खेतों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। अलग अलग स्थानों पर पांच मवेशियों के बहने की भी सूचना है।  पीपलकोट में घरों में दरारें आयी है और छपरखाल में एक मकान का हिस्सा ढह गया है।

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Portion of a house damaged in Chhaparkhal (Riksal) Village. (Image by Sandeep Kumar, Patwari, who was unaware of the incident and shared this image when details were given to him.)

“भयंकर बारिश हुई थी, गदेरों किनारे के काफी खेतों में गाद, मट्टी और मलबा भर गया है।  इन खेतों में आने वाले लम्बे समय तक खेती नहीं हो सकती है”, स्यूंसाल गांव से वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली चौथान विकास समिति के सदस्य श्याम सिंह बेलवाल ने बताया।

“छपरखाल गांव में मकान गिरा है, ग्वाल्थी में दो, थान में एक और मंसारी में दो पशु बाढ़ की चपेट में आने से बह गए हैं”, समिति से जुड़े मंसारी गांव के नवीन जोशी ने बताया। नवीन जोशी, क्षेत्र पंचायत प्रतिनिधि भी हैं और उनके गांव में भी कई खेतों में मलबा भर गया है। 

जोशी के अनुसार यह बारिश असामान्य थी और केवल चौथान क्षेत्र तक ही सीमित रही और
समीपवर्ती  इलाकों थैलीसैंण ब्लॉक, देघाट बाजार (कुमाऊ) नागचुलाखाल (चमोली) में इसका कोई असर नहीं हुआ। क्षेत्र में कई स्थानों पर सडकों पर मलबा आने से यातायात भी प्रभावित होने के समाचार मिल रहे हैं।   

Soil erosion, flash flood in local stream and fields flooded with silt and debris in Mansari Village. Images by Chandan Singh Gusain. 

ग्रामीणों के अनुसार बादल फटने से स्थानीय गेदरों में पानी काफी बढ़ गया और बिन्नू नदी में अचानक बाढ़ आ गयी। जिससे बिन्नू नदी के किनारे बसे देघाट बाजार में लोगों में दशहत छा गयी। देघाट बाज़ार अल्मोड़ा जिले में पड़ता है। यह चौथान के केंद्र बूंगीधार से लगभग 15 किलोमीटर बिन्नू नदी के किनारे स्थित है। 

Locals in Deghat Bazar taken aback with sudden flash floods in Binnu river, without any rain. Video source: Naveen Joshi

बिन्नू नदी रामगंगा नदी पश्चिम का हिस्सा है।  यह दूधातोली के जंगलों से निकलती है। दूधातोली से ही पूर्वी और पश्चिम न्यार नदियां भी निकलती हैं जो पौड़ी जिले से होकर बहती हैं और ऋषिकेश में गंगा नदी में मिल जाती है। रामगंगा पश्चिम नदी का उद्गम स्थल भी दूधातोली का वन्यक्षेत्र है।  रामगंगा पश्चिम चमोली और अल्मोड़ा जिले से होकर गुजरती हैं। 

असहाय ग्रामीण, अनभिज्ञ प्रशासन

चौथान पट्टी पिछड़ा इलाका माना जाता है।  यह जल-वन सम्पदा से भरपूर है। बिगड़ते मौसम चक्र और जंगली जानवरों के नुकसान से उत्पन्न विपरीत और विषम हालातों के बावजूद अधिकांश ग्रामीण आजीविका के लिए खेती पर आश्रित हैं। चौथान से पलयान भी अन्य क्षेत्रों के वनस्पत कम है।  “(धान) रोपाई का सीजन है, हम दिन रात खेतों में लगे हैं”, पीपलकोट गांव के आनंद सिंह बिष्ट ने बताया। बिष्ट के अनुसार बादल फटने से पीपलकोट गांव में कई घरों में दरारें आयी हैं। 

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Google Earth Map of Chauthan. Bhim Singh Rawat

चौथान क्षेत्र जहाँ जिला मुख्यालय पौड़ी से लगभग 150 किलोमीटर दूर है, वहीँ तहसील थैलीसैंण भी करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है। दूरस्थ इलाका होने के कारण, यह क्षेत्र मीडिया के दायरे से बाहर है और सरकारी उपेक्षा का शिकार है।  वास्तव में स्थानीय प्रशासन इस घटना से पूरी तरह अनभिज्ञ था।

ग्रामीणों के अनुसार प्रशासन और सरकार का ध्यान शहरों, मैदानी क्षेत्रों, चार धाम यात्रा मार्गों तक ही सीमित है, और चौथान जैसे दूर दराज के इलाकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। जरूरत के समय भी सरकार प्रशासन नदारद रहता है। 

Sundar Gaon villager surrounded with gushing water currents. Video Source: Naveen Joshi

घटना के दो दिन बाद भी थलीसैंण में बैठे तहसीलदार मनमोहन सिंह नेगी इससे पूरी तरह अंजान थे। जब उन्हें इसके बारे में बताया गया तो उन्होंने पटवारी के माध्यम से रिपोर्ट मंगवाने की बात कही। वहीँ बूंगीधार में कार्यरत पटवारी संदीप कुमार ने इसे सामान्य बारिश की घटना मानकर बहुत सहजता से लिया। उन्हें भी जब स्थिति से अवगत कराया गया तो उन्होंने घटना से मृत पशओं का शव ढूंढ़ने और पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट के बाद पीड़ितों को राहत राशि दिलाने की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही। 

सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि इस अतिवृष्टि की घटना को आपदा प्रबंधन केंद्र, पौड़ी ने कोई बारिश नहीं हुई के तौर पर दर्ज किया हुआ था। 

आपदाएं आगे, प्रबंधन पीछे

कायदे से इस घटना का ठीक से संज्ञान लेते हुए पटवारी द्वारा तहसीलदार को अवगत करवाया जाना था। फिर तहसीलदार को घटना का विवरण आपदा प्रबंधन केंद्र पौड़ी को देना था। चूँकि यह पूरी तरह से सीमित स्थान पर अतिवृष्टि थी, जिसका तहसील स्तर पर कोई प्रभाव नहीं था, अतः इसके बारे में विभागीय सूचना और आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 

Flash flood in local stream on June 23, following extreme rainfall. Image Source: Naveen Joshi

स्पष्ट है, जलवायु परिवर्तन और बिगड़ते वर्षा चक्र को देखते हुए, स्थानीय प्रशासन को ऐसी अतिवृष्टि की घटनाओं के प्रति अधिक सजग रहना चाहिए, उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए की सामान्य और असामान्य वर्षा के अंतर को खुले दिमाग से देखने समझने का प्रयास करें।   

Dense Clouds covering Chauthan on June 23, Image by Sakam Ramola
Dark clouds looming over Chauthan on June 23. Image source: Sakam Ramola

इस घटना को ठीक से समझने में स्थानीय प्रशासन पटवारी, तहसीलदार विफल रहे। जिस कारण समय रहते आपदा प्रबंधन टीम पौड़ी को सटीक जानकारी नहीं मिल पायी और अतिवृष्टि की एक घटना को नो रेनफॉल के तौर पर दर्ज किया गया। ऐसे मौसमी और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रशासन की तैयारी कितनी लचर है, इसका पता इस बात से चलता है कि क्षेत्र में आपदा के समय राहत के लिए देवराड़ी मैदान के पास बनाये गए टीनशेड, का ढांचा आज जर्जर अवस्था में पड़ा है। 

समिति के अनुसार चौथान क्षेत्र में इससे पहले भी को ‘बादल फटने’ की घटना सामने आ चुकी है।  जुलाई 05, 2017 को बूंगीधार और ग्वाल्थी के बीच में बिजली गिरने, अतिवृष्टि से बहुत बड़ा भूस्खलन हुआ था। इस घटना में भी खेतीबाड़ी, गौशालाओं, मकानों को नुकसान हुआ था और कुछ मवेशियों की मौत भी हुई थी। 2018 में थैलीसैंण के निकट पैठाणी क्षेत्र जो मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का पैतृक क्षेत्र है, में भी बादल फटा था। 

स्थानीय अतिवृष्टि की निगरानी और दस्तावेजीकरण का आभाव

चौथान की अतिवृष्टि से पता चलता है कि दूर दराज के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर होने वाली अतिवृष्टि की घटनाओं के प्रबोधन और डॉक्यूमेंटेशन की कोई व्यवस्था नहीं है।

Fields at different locations filled with silt and debris. Image Source: Naveen Joshi 

सूत्रों के अनुसार पांच-छः वर्ष पूर्व ऐसी घटनाओं पर नजर रखने के लिए सरकार द्वारा चौथान में डोप्पलर राडार लगाने की योजना बनी थी परन्तु इस योजना का आज तक कोई अता-पता नहीं है।  इसी कारण अतिवृष्टि की यह घटना, कोई बारिश नहीं के तौर पर रिकॉर्ड हो जाती है। 

क्या इसे ‘बादल फटने’ की घटना माना जाये ?

मानसून सीजन के आरम्भ होते ही उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं  सामने  आ रही है।  वर्ष 2018 में राज्य में कुल मिलाकर 13 स्थानों पर ‘बादल फटने’ के मामले सामने आये।  (अधिक विवरण हेतु, कृपया संड्रप की रिपोर्ट देखें। https://sandrp.in/2018/07/21/uttrakhand-cloudburst-incidents-2018/)  वर्ष 2019 में भी अब तक, चौथान की घटना से पूर्व, चमोली और अल्मोड़ा की सीमाओं पछुआबाण और चौखटिया में जून 1 को दो स्थानों पर बादल फट चुके हैं।

फिर भी जानकार लोग इन्हें ना तो असामान्य मानते हैं और ना ही ऐसी घटनाओं को बादल फटने की संज्ञा देना उचित समझते हैं। “ये भारी बरसात की घटनाएं हैं, ज्यादा से ज्यादा हम इन्हें अतिवृष्टि कह सकते हैं, जो बहुत कम समय में सीमित क्षेत्र में होती है, बादल फटना बहुत विनाशकारी होता है”, गैरसैंण में रहने वाले पत्रकार विजय रावत बताते हैं। विजय रावत दो दशक से भी अधिक समय से स्थानीय पर्यावरणीय विषयों पर लिखते आ रहे हैं। फिर भी वे मानते हैं कि ऐसी अतिवृष्टि की घटनाओं में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी हो रही है और अवनीकरण व अनियोजित विकास कार्यों के चलते आर्थिक-सामाजिक नुकसान भी बहुत अधिक हो रहा है। 

मौसम विभाग के अनुसार भी  स्थान विशेष पर कम समय में 60 मिमी से ज्यादा की वर्षा अतिवृष्टि कहलाती है परन्तु स्थानीय लोग और पत्रकार इसे बादल फटने की घटना बताते हैं। 

क्या सरकार कोई सबक सिख रही है ?

चाहे जो भी हो, सरकारी विभाग, अनुभवीजन, स्थानीय ग्रामीण इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि ऐसी घटनाओं की बारम्बारता और घातकता दोनों बढ़ रही है।  उपलब्ध प्रारम्भिक जानकारी अनुसार, अतिवृष्टि की ये घटनाएं मध्य हिमालय क्षेत्र में जून और जुलाई माह में अधिक हो रही हैं। वहीँ चौथान अतिवृष्टि की घटना से पता चलता है कि सरकारी तंत्र इनसे निपटने में पूरी तरह असफल है।

Jagatpuri Market flooded with gushing water. This also shows how road construction is altering the drainage pattern and redirecting run off in certain direction, thus increasing soil erosion in the area. Video Source, Bhopal Bisht, Chamali. 

‘बादल फटने की घटनाओं का अध्ययन, चौथान जैसे संभावित क्षेत्रों में अतिवृष्टि को मापने के यंत्रों को लगाना और साथ में आपदा प्रबंधन तंत्र और संरचनाओं को सुदृढ़ करना आदि कुछ आरम्भिक किन्तु आवश्यक कदम हैं जो इन घटनाओं से निपटने में मददगार हो सकते हैं। ‘बादल फटने’ की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए क्या केंद्रीय एवं राज्य सरकार और मौसम विभाग इन उपायों को अपनाने को तैयार है ?

Samaya Villagers claim unprecedented flash flood in Binnu river. Video Source: Mohan Patwal

Composed by Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)

For English version of same report with slight changes, please see ‘CLOUD BURST’ in Chouthan; NO RAIN says Disaster Control Room Pouri Garhwal

Post Script:

Another video of heavy rainfall shows that it damaged a Lissa depot of Forest department in Paptoli, Chauthan.

Here is image of the same area.

Chauthan Cloud Burst

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