श्री अरुण तिवारी जी वरिष्ठ पत्रकार-लेखक हैं। आप लगभग पिछले तीन दशकों से नदियों को बचाने और जल संरक्षण के लिए उल्लेखनीय लेखन कार्य करते आ रहे हैं। आपका पानी पोस्ट हिंदी ब्लॉग काफी चर्चित है जिसपर आप नियमित तौर पर नदियों और पानी से जुड़े विभिन्न पहलुओं और समकालीन विषयों पर जानकारियां साँझा करते रहते हैं। आपके अनवरत प्रयासों को देखते हुए आपको 25 नवंबर 2018 को अनुपम मिश्र मेमोरियल मैडल से सम्मानित किया है। आपके विचारों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए, प्रस्तुत है, भीम सिंह रावत, SANDRP द्वारा आपके साथ ईमेल के जरिये हुए बातचीत के प्रमुख अंश।
अनुपम मिश्र मेमोरियल मैडल देश में नदी संरक्षण पर उत्कृष्ठ मीडिया काम के लिए प्रदान किया जाता है। यह सम्मान प्रख्यात पर्यावरणविद और गांधीवादी स्व. अनुपम मिश्र की स्मृति में, वर्ष 2017 से, इंडिया रिवर्स फोरम (भारतीय नदी जनसभा) के द्वारा वार्षिक तौर पर आयोजित भारतीय नदी दिवस के अवसर पर दिया जाता है।
भीम सिंह रावत: अनुपम मिश्र मैमोरियल मैडल के लिए बधाई। आप पिछले तीन दशकों से निरंतर अपने लेखन से नदियों की दुर्दशा और संरक्षण की ज़रूरत का मुद्दा उठाते रहे हैं। आज नदियों की क्या स्थिति है ? नदियों पर मुख्य संकट क्या है ?
अरुण तिवारी – नदियां, पृथ्वी की नसें हैं। ये नसें निरंतर सिकुड़ रही हैं। नीली की बजाय, काली, पीली और भूरी पड़ती जा रही हैं। भारत में यह चित्र तेजी से बढ़ रहा है।
नदी संकट के नाम पर प्रदूषण, वैश्विक तापमान में वृद्धि आदि कई कारणों को गिनाया जा सकता है, लेकिन भारतीय नदियों पर आसन्न प्रमुख संकट यह है कि हम नदियों की बहने की आज़ादी को तेज़ी के साथ छीनते जा रहे हैं। नदियां आज़ाद बहें; इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपनी नदियों को उनका प्रवाह, उनका वेग, उनकी भूमि तथा प्रवाह के उनके साथी वापस लौटाएं।
भीम सिंह रावत: आप दिल्ली में रहते हैं। क्या दिल्ली के पानी और जल स्त्रोतों की स्थिति पर थोड़ा प्रकाश डाल सकते हैं ?
अरुण तिवारी – आज की दिल्ली, एक ऐसा परजीवी शहर है, जो दूसरे के पानी को सोखकर अपना पेट भरने में यकीन रखता है। दिल्ली के सिर पर पर्याप्त पानी बरसता है। दिल्ली के पास बेहतरीन नमभूमि क्षेत्र है। दिल्ली की यमुना की रेत एक ऐसे मोटे स्पंज की तरह है, जिसमें बड़ी मात्रा में पानी संजोकर रखने की क्षमता है। दिल्ली चाहे तो अपने पानी का इंतज़ाम खुद कर पानी के मामले में स्वावलंबी बन सकती है। दिल्ली के पानी के लिए यमुना नदी और सहायक नदियों पर बांध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
दिल्ली की जलापूर्ति में 40 प्रतिशत लीकेज के कारण नष्ट होने की बात अक्सर कही जाती है। लेकिन जब तक दिल्ली की जेब में पैसा है, दिल्ली को इसकी परवाह कहां ?
पिछले कुछ सालों से दिल्ली में सीवेज मिश्रित जलापूर्ति की व्यापक शिकायतें सामने आई हैं। पानी की बीमारियों के शिकारों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। दिल्ली का हर घर, अपने पेयजल की पूर्ति के लिए आर ओ, फिल्टर अथवा बाज़ार से खरीदी पानी की बोतलों पर निर्भर हो गया है। फिर भी यह दिल्ली है कि कुछ करती नहीं।
भीम सिंह रावत: नीति आयोग द्वारा हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश के कई महानगर जल संकट की चपेट में हैं। इसके क्या कारण हैं और समाधान के लिए समाज और सरकार को क्या प्रयास करने चाहिए ?
अरुण तिवारी – अलग-अलग महानगरों में अलग-अलग कारण हैं; जैसे जल निकासी मार्ग का ख्याल रखे बगैर बनाए गए एक राजमार्ग ने अंग्रेजी ज़माने से शिमला को पानी पिला रहे 19 पहाड़ी नालों के जलग्रहण क्षेत्र को इस तरह बांट दिया कि आज मात्र दो में ही पानी शेष है। महानगरों की ओर बढ़ता पलायन, महानगरों के लिए आफत बन गया है। इस कारण महानगरों में भूमि के रेट आसमान छू रहे हैं। इसलिए हम मानने लगे हैं कि खाली ज़मीन बेकार होती है। आप देखिए कि कभी अपनी शानदार झीलों के कारण मशहूर बंगलुरु ने अपनी झीलों के सीने पर बस्तियां बसाने में कोई संकोच नहीं किया। जयपुर ने अपनी नदी दृव्यवती के साथ यही किया है। कोलकोता का वेटलैण्ड अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ ही रहा है।
समाधान सीधा है। जिन कारणों से लोग महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं; उन कारणों का निवारण करें।
दूसरा ज़रूरी कदम यह है कि महानगरों की कुल मौजूदा भूमि में से पर्याप्त प्रतिशत उचित भूमि को हरित क्षेत्र, जल क्षेत्र और कचरा निष्पादन क्षेत्र हेतु आरक्षित करने कायदा लागू हो। सड़क आदि निर्माण करते वक्त हम ख्याल रखें की जल निकासी और आगमन के रास्ते बाधित न हों। कचरे का उचित निष्पादन हो। जो कचरा जहां पैदा होता है, उसका निष्पादन वहीं करने की व्यवस्था को प्राथमिकता दी जाए। सरकारी, व्यावसायिक, औद्योगिक तथा चारदीवारी वाले सभी आवासीय परिसरों को चाहिए कि वे वर्षा जल संचयन और मल शोधन की अपनी स्वावलंबी व्यवस्था करके उदाहरण पेश करें; ताकि बाकी प्रेरित हों। जलोपयोग में अनुशासन तो सबसे पहली ज़रूरत है ही। इसका ख्याल हम सभी रखें।
जो नगर जितना अधिक विकसित माना जा रहा है, आप देखें कि उसकी नदी उतनी अधिक मैली है। नगर, अपने ऊपर लगे इस धब्बे को साफ करें।
भीम सिंह रावत: तमाम प्रयासों के बावजू़द देश की राजधानी दिल्ली में यमुना में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। पिछले प्रयास क्यों निष्फल रहे और दिल्ली तथा केन्द्र सरकार को यमुना को फिर से नदी बनाने के लिए किन–किन पहलुओं पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है ?
अरुण तिवारी – साबी नदी, अलवर से चलकर दिल्ली में यमुना में मिलने वाली नदी है। दिल्ली ने साबी नदी को अपने क्षेत्र में नजफगढ़ नाले में तब्दील कर दिया है। दिल्ली, अपनी नमभूमि पर खेलगांव, मेट्रो, मॉल, कॉलोनी और अक्षरधाम बनाकर खुशफहमी में रहती है। गंगा जलमार्ग को कोलकोता से नोएडा तक लाने की नई शासकीय घोषणा, यमुना को नहर में तब्दील कर देगी। ऐसे में मैं कहूं कि दिल्ली में केन्द्रित सत्ता यमुना को पुनः नदी बनाने के बारे में बात करना तो दूर, सोचती भी है… यह ख्याल ही गलत होगा। पूर्व में किए प्रयासों की दिशा ही गलत है।
यदि दिल्ली सचमुच संजीदा है तो सबसे पहले मल-जल शोधन यंत्र (एस टी पी) पर सीवेज के भार को कम करे। दिल्ली को चाहिए कि वह नदी किनारे बडे़-बडे़ की बजाय, कॉलोनीवार छोटे-छोटे मल शोधन संयंत्रों के प्रयोग को अपनाए। उससे निकले पानी के बागवानी आदि में उपयोग की स्थानीय व्यवस्था बनाए।
जैसा कि मैने पहले निवेदन किया कि चारदीवारीयुक्त नई आवासीय/संस्थागत निर्माण परियोजनाओं को सीवेज पाइपों से जोड़ने की बजाय, उनके परिसर में सीवेज स्टोरेज टैंक बनाए जायें। जिसमें जमा मल, बाद में सोनखाद के रूप में इस्तेमाल होकर बचत करेगा। पहले से बनी जिन कॉलोनियों/संस्थानों में यह संभव हो, वहां भी यह करें। खुले मैदानों, पार्कों, विद्यालय, पार्किंग आदि वाले इलाकों में यह संभव है। हर वाटर कनेक्शन धारी के लिए सीवेज कनेक्शन ज़रूरी है; इस प्रावधान को खत्म करें। त्रिकुण्डीय मल शोधन की घरेलु प्रणाली को प्राथमिकता दे। वर्षा जल संचयन बढ़ायें।
भीम सिंह रावत: आपने अनेक स्थानों पर जल और नदी संरक्षण के कार्यों का सर्वेक्षण किया है। क्या संक्षिप्त में कुछ सफल उदाहरणों को हवाला दे सकते हैं ?
अरुण तिवारी– उत्तराखण्ड में सच्चिदानंद भारती जी द्वारा सूखी रौला को गाड गंगा में तब्दील करने जैसे सफल उदाहरणों से तो आप परिचित हैं ही। अलवर की सात नदियों के प्रवाह को समृद्ध करने का सामुदायिक प्रयास भी काफी चर्चित है। पंजाब की काली बेईं नदी की प्रदूषण मुक्ति भी एक चर्चित उदाहरण है। रामगंगा, अकरावती, काठा नदी के बारे में आपने भारत नदी सप्ताह में सुना ही।
छोटे-छोटे कई प्रयास देश में चल रहे हैं। जैसे उत्तर प्रदेश के ज़िला प्रतापगढ़ में बकुलाही नदी के एक बंद लूप को खोलने के एक सामुदायिक प्रयास ने नई चेतना जगाने का काम किया है। ऐसे ही गोरखपुर की आमी नदी, अमेठी की उज्जियनी नदी, पुणे की मूला-मोठा, मुंबई की मीठी नदी…नदियों को बचाने के ऐसे प्रयासों को ताक़त देने की ज़रूरत है।
भीम सिंह रावत: राष्ट्रीय नदी गंगा की स्थिति भी चिंताजनक है। गंगा, जीर्णोद्धार के मसले पर सरकार कहां चूक रही है ?
अरुण तिवारी – नमामि गंगे का सारा जोर.. घाटों को पक्का करने, जलमार्ग, एस टी पी, शौचालय, बटालियन, आंकड़े और अपनी पीठ थपथपाने पर है। कोई बताये कि इनसे गंगा को क्या लाभ ? नमामि गंगे ने गंगा की किसी एक सहायक छोटी नदी का पुनर्जीवन किया हो; किसी एक मूल धारा के प्रवाह को निर्बाध किया हो तो बताइए।
दरअसल, गंगा को उसकी भूमि और प्रवाह लौटाना, हमारी सरकारों की प्राथमिकता नहीं बन पा रहीं। यह चूक नहीं, बल्कि सरकारों द्वारा जानबूझकर की जा रही बेईमानी है। यह कैसे दूर हो; विचारणीय विषय है।
भीम सिंह रावत: 11 अक्तूबर 2018 को स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी ने गंगा नदी को बांधों से बचाने के लिए, 111 दिन तक चले लम्बे उपवास उपरांत, देह त्याग दी। आपने स्वामी जी से हुई अपनी बातचीत को एक पुस्तक के तौर पर प्रकाशित किया है। पुस्तक का मूल सन्देश क्या है ?
अरुण तिवारी – पुस्तक का नाम है: स्वामी सानंद का आत्मकथ्य। पुस्तक के मूल सन्देश दो हैं। पहला यह कि अविरलता के बगैर, गंगाजी की निर्मलता की गारंटी असंभव है। गंगाजी की अविरलता सुनिश्चित करें। यह काम शासन-प्रशासन को सौंपने से नहीं होगा। इस काम के लिए गंगाजी के प्रति समर्पित लोगों को ज़िम्मेदार भूमिका में लाया जाए।
दूसरा यह कि गंगाजी, ए ग्रेड से भी ऊपर की नदी है। ऐसी गंगाजी के बारे में सबसे पहली ज़िम्मेदारी साधुओं की हैं। सबसे पहले साधु पहल करें, ज़िम्मेदारी निभाएं।
भीम सिंह रावत: आज के दौर में नदियों के विषयों पर हिंदी में लिखने वाले लेखकों और पत्रकारों का बहुत अभाव है। आपके अनुसार, इसके क्या कारण हैं और अधिक से अधिक युवाओं को नदियों के विषयों पर हिंदी में लिखने के लिए कैसे प्रेरित किया जा सकता है ?
अरुण तिवारी – आपने अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल किया है। मैं समझता हूं कि नदी के प्रदूषण संबंधी पहलू पर तो हिंदी भाषी पत्रों में काफी लिखा जा रहा है। किंतु नदी को एक सम्पूर्ण जीवंत और जीव-जगत की सहायक प्रणाली बताने वाले विवरणों पर नदीवार बेहद कम लिखा जा रहा है। नदियों की हमारी जी डी पी, रोजगार, सेहत, खुशहाली और बाकी तरक्की में जो भूमिका है, इस पर नहीं लिखा जा रहा। भारत में छोटे-बड़े कई हज़ार प्रवाह हैं। इनमें से प्रत्येक के बारे में जानकारी को स्थानीय पत्रों और पाठ्य-पुस्तकों का हिस्सा होने की ज़रूरत है। जब हम नदी को जानेंगे ही नहीं, तो उसके महत्व को मानेंगे कैसे ? नदी को बचाना क्यों ज़रूरी है; हम यह एहसास नहीं कर पायेंगे। इसलिए नदीवार लेखन ज़रूरी है।
ऐसा नहीं है कि नदियों के विषय पर हिंदी में लिखने वालों का अभाव है। दरअसल, नदियों पर लिखने के लिए नदी को पैरों से नापना पड़ता है। इसका अभाव है। यदि हम चाहते हैं नदियों पर अधिक से अधिक लेखन हो या तो लेखकों-पत्रकारों को स्वयं दायित्व बोध हो अथवा हम उन्हे नदी नापने के लिए ज़रूरी, समय, समझ और संसाधन मुहैया करायें। नदी पर काम करने वाले अध्ययन संस्थानों को यह पहल करनी चाहिए।
भीम सिंह रावत: जल और नदियों को बचाने के लिए समाज और नागरिकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?
अरुण तिवारी – यह जल और नदी को बचाने का प्रश्न नहीं है; यह जल और नदी के बहाने स्वयं और स्वयं की भावी पीढ़ी की सेहत, रोज़गार, खुशहाली और समृद्धि बचाने का प्रश्न है। जिन हालात के ज़िम्मेदार हम खुद हैं, उनका प्रायश्चित भी हम खुद करें। सरकार की ओर ताकना छोड़ें। खुद निर्णय लें और खुद लिखें एक निर्मल-सदानीरा कथा।
केन्द्र व राज्य सरकारों को भी चाहिए कि वे सभी को पानी पिला देगी; इसका घमण्ड छोडे़ं; जल-नदी प्रबंधन की ज़िम्मेदारी संविधानानुसार पंचायत, ग्रामसभा, नगर निकाय और मोहल्ला समितियों को सौंप दें। केन्द्र-राज्य सरकार व प्रशासन सिर्फ ’जैसी जहां आवश्यकता हो’ की सहयोगी भूमिका में रहे। समाज के ज़िम्मेदार भूमिका में आए बगैर, कोई टिकाऊ समाधान निकलेगा नहीं।
भीम सिंह रावत: – निकट भविष्य में आप किसी नदी कथा या व्यथा को उजागर करने जा रहे हैं ?
अरुण तिवारी – अभी मेरी निगाह, अमेठी जनपद की उज्जियनी नदी पर है।
Arun Tiwari ji can be contacted at amethiarun@gmail.com
Bhim Singh Rawat (bhim.sandrp@gmail.com)
बहुत बधाई अरुण तिवारी जी इण्टरव्यू के किये काम के बारे में। उनकी किताब कहा मिलेगी बताये।
सुनील राय तमसा नदी अभियान
आजमगढ़
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Thanks! For book, pls email to Sri Arun Tiwari Ji! amethiarun@gmail.com
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Thanks for the inquiry Sunil ji. You can buy the book from this URL http://instamojo.com/paypanipost/
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