Dams · Ken River

अनुपम केन नदी पदयात्रा का यादगार अनुभव

सैनड्रप व वेदितम, प्रेस विज्ञप्ति ,पन्ना, वीरवार 19 अपै्रल 2018

1 केन नदी पदयात्रा के बारे में

केन नदी का नाम भारत की स्वच्छ नदियों में शुमार है। 427 किमी लंबी केन नदी, रीठी विकासखण्ड़, कटनी जिला, मध्यप्रदेश से निकलकर चिल्ला घाट, बांदा जिला उत्तरप्रदेश में यमुना नदी में समाहित हो जाती है। केन नदी राष्ट्रीय नदी गंगा के जलागम क्षेत्र का हिस्सा है। इसे करीब से देखने व समझने के लिए नदियों पर अध्ययनरत संस्थाओं साउथ एशिया नेटवर्क आन डैमस्, रिवर्स एंड पीपल (सैनड्रप) दिल्ली और वेदितम इंडिया फाडेशन, कलकता ने मिलकर केन नदी पदयात्रा का आयोजन किया। इससे पहले दोनों सस्ंथाए गंगा और यमुना नदी पर भी लंबी यात्राए कर चुकी हैं।

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The field which is believed to be origin of Ken River in Rithi block, Katni district.  (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

कठिन भोगौलिक क्षेत्र के चलते इस पदयात्रा को तीन चरणों (जून 2017, अक्तूबर 2017 एवं अपै्रल 2018) में पूरा किया गया। इस यादगार पदयात्रा को पूरा करने में 33 दिन लगे। लगभग 600 किलो मीटर पैदल सफर के दौरान बांदा, पन्ना जिलों में केन नदी के तटों पर स्थित 100 ये अधिक गावों से गुजरना हुआ और 60 से अधिक गाववालों से केन नदी के अतीत एवं वर्तमान स्थिति, नदी क्षेत्र में जल स्रोतों की स्थिति, भूजल स्तर, खेती-सिंचाई, वन-वनस्पति, पशु-पक्षी, केन-बेतवा नदी जोड़ योजना, नदी बाढ़ प्रकृति, केन नदी जैव विविधता आदि नदीतंत्र संबंधी अनेक विषयों पर बात ग्रामीणों, किसानों, मछुवारों, मल्लाहों, महिलाओं से विस्तृत चर्चा की गई।

इस यात्रा के दौरान पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के एक बड़ा भाग छोड़ना पड़ा फिर भी बोटिंग, सफारी के माध्यम से पार्क के बडे़ हिस्से में नदी का अवलोकन किया गया। नदी के वनाच्छादित भाग में अगम्य होने के कारण, कई स्थानों पर हमें नदी तटों पर सामांतर चलना पड़ा। 

2 समृद्ध रहा है केन नदी का इतिहास 

अपनी पदयात्रा में हमें संगम से उद्गम तक केन नदी के किनारे सैकड़ों छोटे बडे़ धार्मिक स्थल देखने को मिले। केन नदी के उद्गम पर प्राचीन मूर्तियों के अलावा एक मजार भी दिखी। नदी के कोने कोने पर पौराणिक एवं प्राचीनकालीन स्मारकों के अवशेष बिखरे पडे़ है जो पुरातत्व की दृष्टि से बहुत अहमियत रखते हैं। केन नदी पर बना भूरागढ़ किला बांदा को छोड़कर अन्य ऐतिहासिक स्मारक गिरवां किला बांदा, रनगढ़ किला (बांदा-छतरपुर सीमा), रामगढ़ किला (पन्ना) खंडहर में तब्दील हो गए हैं। इसके अलावा अजीतपुर (छतरपुर), बहिरासर (पवई, पन्ना)और मढ़ादेवरी (कटनी) और अनेक स्थानों पर नदी के किनारे प्राचीन स्मारकों के अवशेष पाए गए। गुमानगंज रप्टे पर मिली चैमुखी बाबा की मूर्ति देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वास्तव में प्राचीन संस्कृति, इतिहास और नदी का संबंध शोध का बड़ा विषय है।

Pics Clockwise 1 River at Rangarh Fort, Banda, 2 Shrine at Ken-Pante Sangam, Panna, 3. Ancients remnants at Madhadeori, Katni (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

3 बुन्देलखण्ड की जीवन रेखा है केन नदी

पदयात्रा से पता चला कि बुंदेलखण्ड में स्थित पन्ना, अजयगढ़, छतरपुर मध्यप्रदेश और बांदा जिला उत्तरप्रदेश में केन नदी पेयजल और सिचंई का मुख्य स्रोत हैं। साथ में केन नदी तटों पर बसे गावों में पशुपालन के जरिए होने वाली आजीविका का केन्द्रबिंदु है। इसके नदी से सटे अनेकों गावों पेयजल के लिए केन नदी पर निर्भर है। केन नदी तल और तटों पर होने वाली सब्जियों की खेती जिसे बारी एवं तरी कहते हैं, से सैकड़ो ग्रामीण रोजी रोटी कमा रहे हैं। बड़ी संख्या में मछुवारे भी केन नदी पर आश्रित है। इसके अतिरिक्त केन नदी से ग्रामीणों को बालू, पत्थर, चारा आदि भी मिलता है। साथ में वन्य जीव-जंतुओं (पन्ना राष्ट्रीय उद्यान, केन घड़ियाल प्राणी उद्यान समेत) एवं पक्षियों (सारस और गिद्ध सहित) की कई प्रजातिया भी केन नदी पर निर्भर है। परंतु अनेक मानवी कारणों जैसे जलागम क्षेत्र में बाधों, अवनीकरण, अनिंयत्रित मशीनी उत्खनन, शहरीकरण, बदलते भूउपयोग और खेती पद्धति, अवैज्ञानिक पुलों के निर्माण से नदी स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव हो रहे हैं। 

Pics clockwise: 1 Boat plying at Girwan Banda, 2 Cattle rearing at Nahera Chhatarpur, 3 Villager filling drinking water at Daidhar, Panna, 4 Farmer taking irrigation water at Ken Sonar Donav (Sangam), 5. River slope farming at Mainha village Panna  (Images taken during Ken River Yatra by SANDRP)

4 अविरल से बरसाती बन रही है केन नदी

दस्तावेजों के अनुसार केन नदी बारामासी है। परंतु 33 दिवसीय पदयात्रा के दौरान केन नदी में सतत जल प्रवाह का अभाव देखा गया। गैरमानसूनी महीनों में नदी अनेक स्थानो पर पूरी तरह सूखी दिखी। इस वर्ष अपै्रल 2018 में पंडवन पुल, अमानगंज के पास नदी में पानी पूरी तरह सूखा चुका है। पंडवन पुल से उपर नदी की लंबाई लगभग 150 किलोमीटर है जिसमें से नदी का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा सूखा देखने को मिला। सहायक नदियों के संगम पर जिसे दुनाव अथवा दोनाव बोलते हैं, पर नदी में ठहरे हुए पानी के तालाब समान बडे़ जलकुड़ पाए गए। केन-सोनार नदी दोनाव से नीचे और ऊपर नदी अमूमन सूखी मिली और पदयात्रा नदी के बीचोंबीच चलकर तय की। साथ में नदी तल अनेक स्थानों पर बहुत गहरा है जिसमें पानी भरा हुआ मिला। परंतु नदी अविरलता से निंरतर नहीं बह रही है जिसके लिए ग्रामीण बढ़ती सिचाॅई की माॅग, घटते जंगल और वर्षा अभाव को मानते हैं। गाॅववालों ने बताया कि एक दशक पहले नदी में जलप्रवाह की बेहतर स्थिति थी और उनेक अनुसार कुछ दशक पूर्व तो नदी पूरी तरह से सदानीरा थी।

Pics Clockwise: 1 Dry Ken Riverbed in April 2018 at 1 Pandvan, 2 Pawai, 3 Tighara, 4. Rithi (Katni) 5. Hardwar, 6 Pedaria Bridges in Panna district. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

5 खास है केन नदी की भूगोलिक संरचना और जल विज्ञान

केन नदी की भोगौलिक संरचना बहुत अनोखी है। केन घडियाल प्राणी उद्यान में स्थित प्रसिद्ध स्नेह झरना, अमेरिका के ग्रांड केनयन घाटी का प्रतिबिम्ब है। उसी तरह पंडवन झरना भी मनोहारी है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के अंदर स्थित गहरी घाटी झरना और खड़ी पहाडियाॅ भी अद्भुत है। इसके अलावा नदी के मध्यम भाग में ग्रेनाइट, डालोमाइट, क्वार्टजाइट, काग्लोमरेट पत्थरों से बनी चट्टाने और पत्थरों को टुकडे देखने का मिले। नदी के अंदर सहजर नामक कीमती पत्थर भी देखा गया।

Pics Clockwise: 1 Long deep water pools formed at 1 Ken-Sonar, 2 Ken-Patne, 3 Ken-Gudne Donav (Sangams); 4 Ken River at Pandvan 5. Raneh Falls. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

 

केन नदी तल में अनेक स्थानों पर गहरे, लंबे कुंड बने हैं। जिन्हें स्थानीय भाषा में डबरा, दहार, दौं आदि नामों से जाना जाता है। इन कुडों में सालभर पानी भरा रहता है जिससे ग्रामीणों के पीने, खेती, पशुपालन, नौकाचालन, मछली पकडने की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

इसके अलावा झीरना, झीना केन नदी का विशेष गुण है। भूजल के रिसरिसकर नदी तट अथवा तल पर आकर नदी में मिलने को ग्रामीण झीरना बोलते हैं। नदी के झीरने के गुण के कारण ही गहरे नदी तलों खासतौर पर दहार में वर्ष भर ताजा पानी देखने को मिलता है। गाॅववालों अनुसार बढते भूजल दोहन से जलागम क्षेत्र में केन नदी का झिरना कम होता जा रहा है जिससे नदी जल्दी सूख जाती है।

6 नदी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है भूजल दोहन

गाॅववालों के अनुसार पिछले दो तीन दशकों में नदी जलीगम क्षेत्र में खेती में बहुत बदलाव हुआ है। परंपरागत एवं कम पानी  फसलों जैसे झुण्डी, कुदवा, मक्का, चना, बरसाती धान की फसल ना के बराबर उगाई जा रही हैं। इसके स्थान पर अधिक सिंचाई वाली फसलों जैस गेहूॅ, सिंचाई वाले धान कि खेती का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। जिससे गैर मानसूनी समय में नदी से बहुत अधिक मात्रा में पानी लिया जा रहा है। साथ में नदी क्षेत्र में बोरवैल आधारित सिंचाई बढ़ गई है जिसे कारण नदी जलागम क्षेत्र में भूजल स्तर गिरता जा रहा है।

सबसे चैकानेवाली बात यह देखने को मिली कि अनेक स्थानों पर नदीजल अथवा बोरवैल से नदी किनारे यूकेलिप्टस (सफेदा) पेड़ की खेती हो रही है। सभी जानते है कि पेड़ो की यह विदेशी प्रजाति अत्यधिक भूजल क्षरण के लिए जानी जाती है और बुंदेलखण्ड जैसे क्षेत्र में इन्हें लगाया जाना गंभीर विषय है।

गाॅववालों से बातचीत में पता चला कि अत्यधिक भूजल दोहन से नदी के झीरने का गुण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। शाहनगर रीठी के बीच में केन लीपरी दोनाव के बाद केन नदी में बिल्कुल पानी नहीं है और अनेक स्थानों पर मवेशियों के लिए नदी को बोरवैल से भरा जा रहा है। अंधाधुंध भूजल दोहन से गाॅवों के जल स्रोत कुएॅ, तालाब, हैंडपम्प आदि भी बेकार हो गए हैं।

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Ken River being filled with borewell water in Rithi block. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

7 सूखते जा रहें है गावों के परंपरागत जलस्रोत

केन नदी के तटवर्ती 95 फीसदी गाॅवों में कुॅए सूख चुके हैं। गर्मियों के समय हैंडपम्प भी बेकार होते जा रहे हैं। साथ में अनेकों स्थानों पर कुओं, हैंन्डपंपों में समरसिबल लगाने का बढ़ता देखा गया। गाॅवों में तालाब भी उपेक्षा का शिकार हैं। गाॅववालों के अनुसार केन नदी में कालांतर में जलप्रवाह लगातार घटता जा रहा है। जिसकी वजह से गाॅव के जलस्रोतों कुएॅ, तालाबों, हैंडपंपों पर बहुत बुरा असर हुआ है। केन नदी में पानी की मात्रा कम होने से सैकड़ों मछवारों, मल्लाहों, नदी तट-तल पर बारी-तरी की खेती करने वाले किसानों पर बहुत बुरा असर हुआ है।

Defunct wells at many villages along Ken River in Panna district. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

8 नदी में बढ़ रहा है प्रदूषण

केन नदी का मध्यप्रदेश की स्वच्छ नदियों में गिना जाता है। अनेक स्थानों पर ग्रामीण नदी का पानी पीते हैं। जिसका बहुत बड़ा श्रेय गहरे दहार और झीरने के प्राकृतिक गुण को जाता है। परंतु नदी तट पर बसे बांदा शहर उत्तरप्रदेश, पन्ना शहर (किलकिला धारा के जरिए), अमानगंज तहसील (मिडहासन नदी के माध्यम से) और शाहनगर तहसील का गंदा पानी बिना उपचारित किए केन नदी मिल रहा है। इन शहरों से बायोमैडिकल वेस्ट और विषैले अपशिष्ठ केन नदी में बहाए जा रहे हैं जिससे नदीजल की गुणवत्ता के साथ साथ नदी जैवविविधता पर भी विपरीत असर हो रहा है। जिसपर संबंधित विभागों और सरकार का ध्यान नहीं गया है। इसके विपरीत बांदा, अमानगंज, और शाहनगर जैसे बढ़ते नगरों को पेयजल जलापूर्ति केन नदी से होती है।

Pics clockwise: Banda wastewater;, 2 Shahnagar waste water  entering Ken River, 2. Medical waste dumped and burnt underneath Rithi Bridge. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

9 संकट में है केन नदी जैवविविधता

जैवविविधता की दृष्टि से केन नदी समृद्ध है। नदी के तटों पर यात्रा के दौरान 50 से अधिक पेड़ों, 30 से अधिक वनस्पतियों, 30 से अधिक स्तनधारी, सरीसृप, कीट पतगों की प्रजातियाॅ देखी गई। नदी जल और तट पर 60 से अधिक प्रजाति के पक्षी देखने को मिले। साथ में 12 से अधिक प्रकार की मछलियों के नाम सुनने को मिले। इसके अलावा केन नदी में कई प्रकार और आकार की सीपियाॅ भी देखने को मिली। कई स्थानों पर बिलकुत्ता (नदी झीगुर), केकड़ा और जुगनू भी देखने को मिले।

पदयात्रा के दौरान नदी तटों पर अवांछित खतपतवार और पेड़ जैसे विलायती कीकर, लैन्टाना, गाजर घास आदि भी बहुत बडे भूभाग पर फैली हुई मिली। मछवारों के अनुसार नदी में महाशीर मछली की संख्या बहुत कम हो गई है। ग्रामीणों ने बताया कि केन नदी पर बनी बाॅधों, बैराजों की योजनाओं और अनियंत्रित शिकार से जलीय जीवों मछलियों, कछुओं, मगर, घडियाल की संख्या भी बहुत कम होती जा रही है।

Pics clockwise: Collections of 1 stones, 2 shells, 3 tree seeds & fruits, 5. Fish (Amangunj), 6 Vegetation seen in and around Ken River. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

10 निर्मित एवं निमार्णाधीन योजनाएॅ कर रही है केन नदी को प्रभावित 

केन नदी पारस्थितीय तंत्र पर बरियारपुर बैराज, गंगउ बाॅध के बनने से बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव हुए हैं। इन बांधो से नीचे नदी में पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। जिसके कारण नदी जैवविविधता और नदी पर आश्रित ग्रामीणों, आदिवासियों और किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है।

इसके बावजूद बिना उचित आंकलन के केन नदी पर पवई बहुउद्देशीय सिंचाई योजना बाॅध का कार्य किया जा रहा है। पवई बांध योजना से प्रभावित ग्रामीणों के अनुसार उन्हें बिना उचित राहत राशि और पुर्नवास दिए अप्रजातांत्रिक तरीके से योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस योजना से जलीय जीवों खासतौर पर मगर के आवास पर बहुत ज्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा है। गाॅववालों के अनुसार इस परियोजना से अब तक दो मगरों की मौत हो चुकी है। साथ में योजना के लिए 600 से अधिक पुराने पेड़ों को काटा जा चुका है। इसके अलावा बाॅध और नहर निर्माण के दौरान निकले मलबे को नियमों के विपरीत नदी के किनारों पर ही फेंका जा रहा है और बाॅध का डूब क्षेत्र बढ़ाने के लिए नदी तटों को काटकर समतल किया जा रहा है। अधिक जानकारी के लिए देखें : https://sandrp.in/2018/04/12/pawai-dam-project-displacing-people-without-rehabilitation-allege-pafs/

Pics clockwise: 1 Construction of new railway line work has block River flowing path in Rithi, 2 Pawai Dam being built on Ken River, 3 No water being released downstream Bariyarpur Barrage. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

केन नदी पर अब तक 2 रेल पुल, 21 रोड़ पुल और 5 रप्टा बने हुए हैं। इसके अलावा बांदा (राजघाट) पन्ना (गुमानगंज) जिले में एक एक रोड़ पुल और रीठी में एक रेल पुल निर्माणाधीन है। गाॅववालों का मानना है कि नदी पर हाल में बने पुलों, रप्टों के निर्माण में नदी बाढ़ प्रकृति को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है जिससे नदी तट कटान के साथ, गाॅवों में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। पैलानी पुल बांदा जिला तथा पंडवन, तिघरा, पड़रिया, सीमरा बहादुर पुल और महगाॅव तीलिया, सीमरी शाहनगर रप्टा पन्ना जिला में इसके उदाहरण हैं। गाॅववालों अनुसार वर्ष 1992 और 2005 केन नदी में भीषण बाढ़ आयी थी जिसमें जानमाल की काफी क्षति हुई थी। गाववालों का मानना है कि भविष्य में बड़ी बाढ़ की स्थिति में नदी पर अवैज्ञानिक तरीके से बने और बन रहे पुल, रप्टे, बाॅध बाढ़ की विभीषिका को कई गुणा बढ़ा देगें।

11 औचित्यहीन होती जा रही हैं सिंचाई परियोजनाएॅ

केन नदी पर लगभग 7 सरकारी लिफ्ट सिंचाई परियोजनाएॅ, अधिकतर बांदा जिला में, 17 चकडैम परियोजनाएॅ सभी पन्ना जिला में अमानगंज तहसील से आगे बनी हुई हैं। इसके अलावा पन्ना जिले में दो स्थानों पर नलकुप आधारित सिंचाई योजना देखी गई। नदी में जलप्रवाह की कमी से लगभग ये सभी सिंचाई योजनाएॅ खस्ताहाल है और औचित्यहीन हो गई है। महोड़, भैंसवाही, महगाॅव के समीप नदी पर बने चकडैमों पर नदी को पूरी तरह रोका गया है जिससे गैर मानसूनी समय में इनसे नीचे नदी सूख जाती है। बढतें जल दोहन से केन नदी पर नोकागमन की संस्कृति समाप्त होती जा रही है और पहाव नामक प्राचीन मछली पकडने की कला लगभग विलुप्त हो गई है।

Defunct Irrigation well at Ken Gudne Sangam, Pawai & Broken stop dam in Rithi block. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

12 उद्गम स्थल से ही मनावीय हस्तक्षेप झेल रही है केन नदी

केन नदी का उद्गम स्थल कटनी जिले के रीठी तहसील में है। यह अहीरगवा और ममार गाॅव के जगंलो के बीच बने खेत की एक मेढ़ से निकलती है। उदगम स्थल से 200 मीटर नीचे ही नदी पर स्टाॅप डैम बना है जिससे नदी की धारा परिवर्तन हो गई है। उद्गम क्षेत्र से लगभग 500 मीटर नीचे ही नई कटनी भोपाल रेल लाईन के काम के चलते नदी के बहाव क्षेत्र को पूरी तरह पाट दिया गया है। इसके अलावा नदी में जलागम क्षेत्र में वन क्षेत्र घट रहा है और मृदा क्षरण बढ़ रहा है।

13 खतरे में हैं केन की अधिकांश सहायक नदियाॅ

कुल मिलाकर केन नदी की 23 छोटी-बड़ी सहायक नदियाॅ है। इसमें अलौनी, गुरने, मिडहासन (बाएॅ तट), पत्ने, सोनार, सयामरी, बन्ने, खुडर, कुटने, उर्मिल, कैल आदि प्रमुख है। लगभग दो दर्जन के करीब बडे़ नाले और जलधाराएॅ इसमें मिलती है। केन की अधिकतर सहायक नदियाॅ पन्ना जिले में ही है और ज्यादातर बाॅए तट से नदी में जुडती है। पदयात्रा के दौरान लोगों से बातचीत में पता चला कि अधिकांश सहायक नदियाॅ मानवीय कारणों (बाॅध, स्टापडैम, रेत, पत्थर खनन) के कारण बरसाती बन गई हैै। ग्रामीणों के अनुसार वर्तमान में केवल सयामरी नदी ही बारामासी है। केन नदी को सदानीरा बनाए रखने के लिए सहायक नदियों को पुर्नजीवित किया जाना आवश्यक है।

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Board placed at Karnawati Interpretation Centre Madla showing Ken Rivers. Ken is also known as Kyan in local dialuct and Sukshamati, Karnawati river in some scriptures. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

14 अत्यधिक रेत उत्खनन की चपेट में केन नदी

केन नदी में मिलने वाली लाल रंग की मोटी रेत को मोरंग कहते हैं। अच्छी गुणवत्ता के लिए निर्माणकार्यो में केन नदी में पन्ना जिले और बांदा जिले में अत्यधिक रेत उत्खनन होता है। इसमें बड़ी मशीनों और ट्रको का प्रयोग किया जाता है। गाॅववालों के अनुसार असंवहनीय रेत खनन से नदी के जल धारण क्षमता कम हो, नदी तट कटान बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश की नई खनिज उत्खनन नीति के बारे में भी ग्रामीणों को जानकारी नहीं है। ज्यादातर खनन रात के समय हो रहा है। बाॅधों, पुलों और चकडैमों के निर्माण के लिए भी रेत केन नदी से लिया जा रहा है। अत्यधिक रेत उत्खनन से नदी पर आश्रित मछुवारों और नदी किनारे खेती करने वाले किसानों को बहुत ज्यादा समस्या हो रही है। साथ में नदी की जैवविविधता पर भी दुष्परिणाम हो रहे हैं।

15 प्रभावितों को नहीं दी गई है केन-बेतवा नदी जोड़ योजना की जानकारी

केन नदी पदयात्रा के दौरान पन्ना और बांदा जिले में नदी किनारे स्थित लगभग 30 गावों में 400 से अधिक ग्रामीणो ने बताया कि उन्हें केन बेतवा नदी जोड़ योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इन ग्रामीणों में नदी पर आश्रित किसान, मल्लाह, मछुवारे, पशुपालक आदि शामिल है। गाॅववालों का कहना है कि ना तो प्रशासन के द्वारा उनसे योजना संबंध में कोई चर्चा हुई है और ना ही उन्हें कोई दस्तावेज दिए गए है। योजना के बारे में भ्राॅंति है कि इससे केन का पानी बेतवा और बेतवा का पानी केन में डाला जाएगा जिससे बाढ़ नहीं आएगी। जबकि वास्तव में इस योजना से केवल केन नदी को पानी बेतवा नदी में डाला जाएगा नाकि बेतवा का पानी केन नदी में। जब लोगों को यह बताया गया तो वे बहुत हैरान हुए और योजना के बारे में आपत्तियाॅ जाहिर की। ग्रामीणों के अनुसार इस योजना की ना तो बांदा जिले में जनसुनवाई हुई है ना ही लोगों से रायशुमारी की गई है जबकि यहाॅ भी इसका बहुत ज्यादा असर होगा।

पदयात्रा के दौरान यह भी पता चला कि योजना को अमल में लाने के लिए बरियारपुर बैराज के नीचे नया बैराज बनाया जाएगा जिससे योजना के डूब क्षेत्र में आने वाले वन क्षेत्र और गाॅवों की संख्या बढ़ जाएगी। किंतु इस बात का योजना की पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन, जनसुनवाई और पर्यावरण आकलन रिपोर्ट में उल्लेख नही किया गया है।

Discussion about Ken Betwa Interlinking Project with villagers at various locations in Banda & Panna. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

योजना के लिए पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में 23 लाख से अधिक पेड़ो को काटा जाएगा, जिसे सुनकर ग्रामीण भौचक्के रह गए। योजना प्रभावित ग्रामवासियों ने बताया कि इस योजना का एक साल पहले भूतपूर्व जलसंसाधन मंत्री उमा भारती द्वारा उद्घाटन किया जा चुका है। जबकि अबतक योजना को अंतिम पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिली है, अतः योजना का उद्घाटन अपने आप में वन संरक्षण अधिनियम का खुलेआम उल्लंखन है। अतार्किक और अवैज्ञानिक पर्यावरण प्रभाव आकलन के चलते इस योजना की पर्यावरण मंजूरी को भी राष्ट्रीय हरित पंचाट में चुनौती दी गई है। साथ में योजना को मिली वन्यजीव स्वीकृति को भी माननीय उच्चतम न्यायालय में पुर्नविचार याचिका दाखिल की गई है। इसके अलावा, योजना के डीपीआर पर हस्ताक्षर करने के 13 सालों के बाद भी आज तक मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीच जलबॅटवारे को लेकर कोई करार नहीं हुआ है।

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Old trees along Ken River are being felled for Pawai dam project. (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

16 केन बेतवा नदी जोड़ (बाॅध), विस्थापन नहीं, सड़क और विकास चाहते हैं ग्रामीण

केन बेतवा नदी जोड़ योजना के प्रस्तावित बाॅध स्थल के पास दोधन, पलकोहा, मेनयारी, खरयारी समेत लगभग दस गाॅव है। ये सभी गाॅव पन्ना नेशनल टाइगर रिर्जव के अंदर है और योजना से पूरी तरह प्रभावित है। गाॅववालों के अनुसार पिछले कई सालों से उन्हें बाॅध विस्थापित बताया जा रहा है। जिसके कारण सभी गाॅवों को पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार एवं आवागमन की सुविधाओं से वचिंत रखा जा रहा है। इन गाॅवों को जोडने वाली एकमात्र सड़क कच्ची और पथरीली है। इस सड़क से आवागमन बहुत ही कठिन है।

पिछले लगभग 4 दशकों से ग्रामीण एक बेहतर सडक की माॅग कर रहे हैं। परंतु आजतक वनक्षेत्र की बात कहकर गाॅववालों की माॅग नहीं मानी जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि जब इतने सालों से सरकार पार्क के अंदर एक सड़क नहीं बना पा रही है तो इतना बड़ा बाॅध कैसे बना सकती है। पलकोहा ग्राम प्रधान गंगाप्रसाद ओमरे के अनुसार यदि उनके गाॅवों सड़क नहीं बनी तो सभी प्रभावित गाॅव आगामी राज्यसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करेगें और योजना के विरोध में आंदोलन करेगें।

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Proposed Dodhan Dam site downstream Palkoha village in Chhatarpur, MP (All pics taken during Ken River Yatra, SANDRP & Veditum)  

17 स्नेह झरना और केन घड़ियाल राष्ट्रीय प्राणी उद्यान होगा केन-बेतवा नदी जोड़ योजना से प्रभावित

केन घड़ियाल राष्ट्रीय प्राणी उद्यान संकटग्रस्त घड़ियाल प्रजाति का आश्रय स्थल है। यह अभ्यारण पन्ना जिले में बरियारपुर बैराज के नीचे स्थित है, जहाॅ तीन सहायक नदियाॅ खुड़र, कुटने और उर्मिल; केन नदी में मिलती है। यात्रा के दौरान हमने पाया कि इन तीनों सहायक नदियों पर बेनीसागर, कुटने और उर्मिल बाॅध बनने से केन नदी में गैरमानसुनी महीनों में कोई भी जलप्रवाह नहीं आता है। स्नेह झरने और इस अभ्यारण के सुरक्षित भविष्य के लिए आवश्यक है कि केन नदी में बरियारपुर बाॅध से निंरतर पानी छोड़ा जाए और बरियारपुर बैराज से उपर केन नदी अविरल और निर्मल हो। जिससे केन नदी बांदा जिले में भी यमुना नदी से संगम तक प्रवाहमान बनी रहेगी।

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इस संक्षिप्त रिपोर्ट में हमने केन नदी पदयात्रा के दौरान मिले यादगार पहलूओं को उजागर करने का प्रयास किया है। हम ताउम्र इस यात्रा अनुभव को याद रखेगें। हम इस पदयात्रा पर आगे भी रिपोर्ट, यात्रा संस्मरण और संभव हुआ तो एक पुस्तक लिखने का प्रयास करेगें। यात्रा के दौरान हमने हजारों छायाचित्र और सैकड़ो चलचित्र रिकोर्ड किए हैं जिनमें केन नदी और स्थानीय लोगों से संबंधित विविध विषय दर्ज है। हम आगामी समय में इन्हें रचनात्मक तौर पर अन्य लोगों के सामने रखेगें और फिर से केन की किसी सहायक नदी के यादगार सफर पर निकलेगें !

इस पदयात्रा के अलग अलग पड़ावों पर हमें बहुत हमसफर मिले। यात्रा के प्रथम दो चरणों में छायाकार श्रीधर सुधीर का विशेष सहयोग मिला। हमारे मित्र रवि शुक्ला, सीमा रवांदले ने कई दिनों तक साथ चलकर, हौंसला बढ़ाया। यात्रा के विचार से लेकर, प्रांरभ, संचालन और समापन तक अनेक साथियों का मार्गदर्शन और अनुभव मिलता रहा। अंत में हम केन नदी तटों पर बसे सैकड़ो गाॅववालों के आभारी है जिंहोने खुले दिल से भोजन और आश्रय के साथ अपना जीवन अनुभव हमें दिया और केन नदी पदयात्रा के विचार को संभव बनाया।

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अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:-

भीम सिंह रावत सैनड्रप 9717957517, bhim.sandrp@gmail.com , http://sandrp.in

सिद्धार्थ अग्रवाल, वेदितम 8100170707 asid@veditum.org , http://veditum.org/

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5 thoughts on “अनुपम केन नदी पदयात्रा का यादगार अनुभव

  1. एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़.
    संभाल कर रखें. यह अध्धयन दस्तावेज़, भविष्य को बताएगा कि नदी जोड़ परियोजना
    वाले वास्तव में क्या जोड़ने में लगे थे.

    *आपका अरुण *

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  2. बहुत ही संजीव व विस्तृत रपट है सैंड्रप टीम। आगे की जल यात्राओं में हम भी जुड़ना व बहुत कुछ सीखना चाहेगे।

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