2005 से 2008 के बीच पन्ना जिले की कलेक्टर ने अपने कार्यकाल के दौरान केन-बेतवा परियोजना के बारे में अपने शीर्ष अधिकारियों और विभागों को पत्रों की एक श्रृंखला लिखी थी। इन पत्रों में उन्होंने एक चौंकानेवाला निष्कर्ष दिया था कि यदि केन बेसिन के लोगों की पानी की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाए, तो केन नदी में कोई अतिरिक्त पानी ही नहीं बचेगा। उन्होंने यहाँ तक लिखा था कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लोगों के लिए एक त्रासदी होगी।
एसएएनडीआरपी (SANDRP) को मिले दस्तावेजों से यह पता चलता है कि 2005 से 2008 के बीच पन्ना कलेक्टर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने केन बेतवा परियोजना को रोकने के लिए कड़ा संघर्ष किया था। उन्होंने दिखाया था कि यदि मध्य प्रदेश 1983 के अपने जल संसाधन मास्टर प्लान को केन बेसिन में लागू करता, तो बेतवा बेसिन में भेजने के लिए कोई पानी ही नहीं बचता। इसे देखते हुए उन्होंने हताश होकर अंततः यह निष्कर्ष निकाला कि केन-बेतवा परियोजना “पन्ना जिले के निवासियों और केन नदी बेसिन के अन्य जिलों के लिए विनाशकारी दुष्परिणामों वाली होगी।”
उन्होंने इस मुद्दे से इतना जुड़ा हुआ महसूस किया कि पन्ना से तबादला होने के बाद भी इस पर काम करना जारी रखा। इसलिए सितंबर 2010 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष को एक पत्र में उन्होंने लिखा, “पन्ना जिले के निवासियों की ओर से मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि आप इस संलग्न पत्राचार को पढ़ें और इसपर निजी रूप से ध्यान दें।” दुर्भाग्य से आधिकारिक दस्तावेजों, तथ्यों और आंकड़ों पर आधारित उनके तर्कसंगत अपीलों पर मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। स्पष्ट है कि इस परियोजना को स्वीकृति देकर मध्य प्रदेश सरकार प्रदेश के केन बेसिन को स्थायी त्रासदी की ओर धकेल रही है।
वास्तव में एसएएनडीआरपी (SANDRP) ने बहुत पहले ही 2005 के अपने एक अध्ययन में यह दिखाया था कि केन में अतिरिक्त पानी दिखाने और बेतवा में पानी की कमी दिखाने की इस पूरी कवायद में तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया है। वास्तविकता यह है कि दोनों ही नदियों में पानी की स्थिति एक जैसी है। एक पत्र में जिलाधिकारी ने लिखा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि एनडब्ल्यूडीए (NWDA)vद्वारा तैयार की गई व्यवहार्यता रिपोर्ट की पहली पंक्ति ही दोषपूर्ण है कि केन-बेतवा परियोजना ‘अतिरिक्त जल वाले बेसिन’ से ‘कम जल वाले बेसिन’ में पानी ले जाने की परियोजना है।
उन्होंने लिखा कि “केन बेसिन को जल अधिशेष वाला इसलिए मान लिया गया है, क्योंकि अपस्ट्रीम यानी नदी के ऊपरी हिस्से और मुख्यधारा वाले क्षेत्र में पानी का बहुत कम उपयोग हो रहा है। इसमें बहुत छोटे-छोटे बांध हैं और मध्यम आकार के या बड़े बांध तो हैं ही नहीं। यदि ऐसे बांध यहां वास्तव में बनाए जाते, तो इसमें कोई अतिरिक्त पानी बचता ही नहीं। …राज्य के सिंचाई विभाग द्वारा तैयार किए गए केन बेसिन के मास्टर प्लान के मुताबिक केन नदी बेसिन में कुल खेती लायक भूमि 14381 वर्ग किलोमीटर है … वर्ष 1983 में बने इस मास्टर प्लान के हिसाब से यदि बड़े, छोटे और मध्यम आकार की परियोजनाएं यदि वास्तव में बनाई गई होतीं, तो बेसिन में वास्तव में जितना पानी उपलब्ध है, उससे कहीं अधिक पानी की जरूरत होती। स्पष्ट है कि न केवल केन नदी में ज्यादा पानी होने वाली बात गलत है, बल्कि वास्तव में इसमें पानी की कमी है! इस परियोजना से पन्ना जिले के लिए कुछ भी लाभ नहीं है।”
पन्ना जिले के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ने 6 अक्टूबर, 2007 को तत्कालीन मुख्य सचिव (जल संसाधन विभाग, मध्यप्रदेश सरकार) को अपने पत्र में लिखा, “ढाई वर्ष तक पन्ना के डीएम रहने के दौरान सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात मैंने यह महसूस किया है कि यहाँ के निवासियों को जिस हद तक उनके प्रचुर जल-संसाधनों का लाभ मिलना चाहिए था या मिल सकता था, उतना नहीं मिल पाया है। …पन्ना का सिंचित क्षेत्र जिले के कुल क्षेत्रफल का केवल 5% ही है (सरकारी स्रोतों के मुताबिक) … इसे देखते हुए यह विडंबना ही है कि राज्य सरकार फिर भी केन बेतवा परियोजना के क्रियान्वयन को आगे बढ़ा रही है, जो किसानों के हितों के विपरीत है।”
पन्ना कलेक्टर केन-बेतवा परियोजना पर पुनर्विचार के लिए कहते हुए केन-बेतवा परियोजना में अंतर्निहित एक बड़ी खामी की ओर ईशारा करती हैं: “स्वतंत्र भारत में तो सभी नागरिक समान हैं। फिर भी नदी के ठीक आस-पास के लोगों को पहले इसका फायदा दिए बिना पानी को दूसरे स्थान पर ले जाना एकदम अतार्किक है। … मुझे इसमें बड़ा खतरा नजर आता है कि जिस एनडब्ल्यूडीए (NWDA) से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी रिपोर्ट पूरी तरह से वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर तैयार करेगी, वह इस प्रस्तावित लिंक परियोजना में निहित खामियों को दर्शाने में विफल रही है।” ये सब एकदम बुनियादी बाते हैं जो एनडब्ल्यूडीए को उनके जल संतुलन, पर्यावरण प्रभाव आकलन और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) (MoEF) की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) (EAC) को ध्यान में रखना होता है। लेकिन एसएएनडीआरपी समेत बड़ी संख्या में विभिन्न लोगों और समूहों द्वारा ईएसी को बार-बार लिखे जाने के बावजूद ईएसी और एमओईएफ इस मामले में पूरी तरह से विफल रहे।
केन-बेतवा बेसिन के जल-वैज्ञानिक तथ्यों को कभी सार्वजनिक पटल पर नहीं रखा गया है, और न ही इसके बारे में कोई भी स्वतंत्र और विश्वसनीय समीक्षा की गई है। सभी उपलब्ध तथ्यों से यही पता चलता है कि दौधन बांध स्थल पर केन में बहुत पानी दिखने का कारण यह है कि मध्य प्रदेश के केन बेसिन ने स्थानीय जल-प्रणालियों के माध्यम से उपलब्ध पानी का इस्तेमाल नहीं किया है। यदि केन-बेतवा परियोजना को अनुमति दे दी जाती है, तो नदी के ऊपर हिस्से में आनेवाले क्षेत्र पानी के उपयोग के अपने अधिकार से हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगे। ऐसा भारत में अन्य कई परियोजनाओं में भी हुआ है।
यह अच्छा है कि राजमाता सहित पन्ना जिले के लोग अब केन-बेतवा लिंक परियोजना का विरोध करने के लिए कमर कस रहे हैं। पन्ना के पूर्व कलेक्टर ने आधिकारिक रूप से जो लिखा है उससे पता चलता है कि किस तरह पन्ना के जागरूक लोगों का विरोध जायज है। आशा है कि मध्य प्रदेश के पूरे केन बेसिन और उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के लोग इस विरोध को लगातार जारी रखेंगे। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के केन बेसिन के लोगों को इस वास्तविकता के प्रति जागृत होना होगा। यदि उन्हें सबूतों की जरूरत है, तो पन्ना के पूर्व कलेक्टर ने उन्हें इस बात के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध करा दिए हैं। इन ठोस तथ्यों के आधार पर वे मजबूती से कह सकते हैं कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को रोकने की जरूरत क्यों है?
This is based on SANDRP blog and has been translated in Hindi by Shashi Kumar Jha.
Link for original English blog of the same is here: https://sandrp.wordpress.com/2017/10/06/ken-betwa-project-is-disaster-for-ken-basin-people-there-is-no-surplus-water-in-ken-basin-panna-collector/
SANDRP (ht.sandrp@gmail.com)