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एसवाइएल विवाद:  जल संरक्षण में पिछडे़  पंजाब ओर हरियाणा

Guest Blog by Manoj Thakur 

सतलुज यमुना नहर (एसवाइएल ) पर हरियाणा के पक्ष में निर्णय आते ही पंजाब ओर हरियाणा में राजनीति तेज हो गई। पंजाब का कहना है वें अपनी जान दे देंगे लेकिन पानी नहीं देंगे। इधर हरियाणा का कहना है कि उन्हें पानी चाहिए क्यांकि यह पानी उनका हक है। अब सवाल यह उठ रहा है कि दोनों राज्यों में से कोई एक राज्य तो गलत बोल रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि एसवाइएल पर दोना ही राज्य झूठ बोल रहे हैं।

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पंजाब का यह तर्क गले से नीचे नहीं उतर रहा कि उनके पास पानी नहीं है। सवाल यह कि पंजाब में यदि पानी कम है तो फिर यहां हर साल धान का उत्पादन बढ़ कैसे रहा है मसलन इस बार पंजाब में धान का उत्पादन 165 लाख क्विंटल हुआ। पिछले साल यह 157 लाख क्विंटल था। वह भी तब जबकि इस बार पंजाब में बरसात औसतन से 22 फीसदी कम हुई। वर्तमान में पजांब में 30 लाख हैक्टेयर से ज्यादा भूमि पर धान उग या जा रहा है जो कि पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा है। साथ में राज्य के 143 में से 102 जोनों में भूजल डार्क जोन में चला गया है।

पंजाब में किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली मिलती है। पंजाब में साढ़े 15 लाख नलकूप पर बिजली कनेक्शन है। बिजली पर छह हजार करोड़ रूपए अनुदान दिया जाता है। किसान जितना चाहे पानी जमीन से निकाल सकते हैं। यदि पानी की कमी है तो वाटर मैनेजमेंट क्यों नहीं है इस सवाल पर पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल कहते हैं कि हमारे पास फालतू पानी नहीं है। हम हरियाणा को कैसे पानी दे सकते हैं।

पंजाब भले ही कम पानी की बात कहते हुए हरियाणा का हक न दे हकीकत यह है कि पानी का लेकर पंजाब में कहीं भी संजीदगी नजर नहीं आती। पानी के लिए काम कर रहे स्वयं सेवक बाबा गुरसेवक सिंह ने बताया कि पानी बचाने की दिशा में कुछ नहीं हो रहा है। पानी की बर्बादी करने में पंजाब पहले नंबर है। एेसी जानकारी भी नहीं है कि ड्रिप विधि िंसंचाई से पंजाब राज्य में पानी की बर्बादी रोकने में कोई उल्लेखनीय बदलाव आया हो। भूजल प्रदूषित हो गया नाइट्रेट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।

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एसवाइएल तो कब की खत्म हो चूकी है

पंजाब में एसवाइएल 121 किलोमीटर का क्षेत्रफल है। इसमें से 70 किलोमीटर नहर बंद कर दी गई है। इसी साल नहर का बंद करने का काम शुरू किया गया। स्थानीय किसान भी मान चुके हैं कि इस नहर से पानी नहीं आएगा। पंजाब सरकार ने क्योंकि जमीन को डीनोटिफाई कर दिया है। इसलिए उन्होंने नहर का बंद कर दिया है। अब नहर दोबारा की खुदाई नहीं होने देंगे । इसके लिए चाहे उन्हें अपनी जान की बाजी ही क्यों न लगानी पड़े। इधर हरियाणा में भी नहर के हालात कुछ ज्यादा अच्छे नहीं है। हरियाणा में जो एसवाइएल नहर के लिए स्टाफ नियुक्त किया था उसे सिंचाई विभाग में इधर उधर शिफ्ट कर दिया गया है। हरियाणा में नहर का 92 किलोमीटर का एरिया है। यह नहर भाखड़ा के साथ साथ चलती हुई मुनक तक आती है। यहां से नहर का पानी दक्षिण हरियाणा के जींदए भिवानीए सिरसाए महेंद्रगढ़ए रेवाड़ीए नारनौलए रोहतक व जींद तक आना था।

क्या हरियाण में वास्तव में पानी की कमी है 

यह बड़ा सवाल है । यदि हरियाणा में पानी की कमी है तो वाटर मैनेजमेंट के लिए क्या कदम उठाए। इसका जवाब इसी बात से मिल सकता है कि प्रदेश के सात जिलों में वाटर लेवल खतरनाक स्तर पर तक पहुंच चुका है। इसमें अंबाला करनाल कुरुक्षेत्रए पानीपत कैथल व सोनीपत शामिल है। यहां ग्राउंट वाटर कमिशन ने 22 करोड़ की लागत से रेनी वाटर हारर्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए प्रपोजल मांगे हैं। आधे से ज्यादा जिले से इसका जवाब ही नहीं आया है। इससे साफ है कि प्रदेश में पानी को लेकर कितनी जागरूकता है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि इन जिलों में धान की सबसे ज्यादा खेती हो रही है। पिछले चालीस सालों में राज्य में धान की जमीन बढ़कर दस लाख हैक्टेयर से उपर पहुॅच है।

यहां भी वाटर मैनेजमेंट को लेकर हो रहे कामों से कोई खास असर हुआ हो, इसकी जानकारी नहीं है। लेकर कुछ भी नहीं है। कृषि विभाग की ड्रिप व स्पि्रकलर योजना हैए लेकिन दक्षिण हरियाणा के कुछ जिलों को छोड़ दिया जाए तो बाकी जगह यह योजना कामयाब ही नहीं है। पानी के लिए काम कर रहे शुरुआत संस्था की अध्यक्ष रीता रंजन ने बताया कि पानी बचाने के लिए हरियाणा में कुछ नहीं हो रहा है। उनका कहना है कि यदि हरियाणा एसवाइएल नहर में ही बरसात का पानी रोक ले तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकता है। इससे ज्यादा पानी तो प्रदेश ड्रिप और स्पि्रिकलर के प्रयोग से बचा सकता है। लेकिन नहर जोड़ क्योंकि सियासी मुददा है। इसलिए हर कोई इसे का राग अलाप रहा है।

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इधर यमुनानगर में खटटर सरकार सरस्वती नदी को खोजने का दावा कर रही है। इस नदी को यमुना के पानी से जिंदा करने की कोशिश हो रही है। यह पानी दादुपुर से एक नहर के माध्यम से लेकर यमुनानगर जिले के उंचा चंदना तक लेकर आएंगे। यहां से पानी को सरस्वती नदी में डाल दिया जाएगा। सरकार की ऐसी ही योजना है। आगे इस पानी का क्या हेगा इस बारे में सरकार के पास कोई प्रपोजल ही नहीं है।

सतलुज यमुना नहर विवाद एक नजर में

1 संयुक्त पंजाब में हरियाणा क्षेत्र को पानी का हिस्सा देने के लिए दो समितियां गठित की गईं। 12ण्1ण्1965 को ष्पंजाब में भूमि और जल उपयोग पर खाद्य समितिष् और 2001-1965 को हरियाणा विकास कमेटी गठित की गई। इन दोनों कमेटियों ने संयुक्त पंजाब के हरियाणा क्षेत्र के लिए 4ण्56 मिलियन एकड़ फुट पानी देने की सिफारिश की।

2 हरियाणा का गठन 1 नवंबरए 1966 को हुआ। पंजाब रिऑर्गेनाईज़ेशन कानूनए 1966 की धारा 78 में उत्तराधिकारी राज्यों को नदियों के पानी का हिस्सा देने का विशेष प्रावधान है। सन 1966 के कानून की धारा 78 के तहत भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्रीए इंदिरा गांधी ने जल के आवंटन का निर्णय लेने की पहल की और 24ण्03ण्1976 को आदेशध् अधिसूचना जारी की गई और इसे ष्ष्इंदिरा गांधी अवार्डष्ष् कहा गया। हरियाणा को 3ण्5 मिलियन एकड़ फुट पानी का हिस्सा दिया गया।

3ण् हरियाणा ने एसवाईएल नहर के लिए पंजाब को 10ण्11ण्1976 को एक करोड़ रुण् और 31ण्03ण्1979 को एक करोड़ रुण् और दिए। उस समय अकाली दल सरकार के मुख्यमंत्रीए प्रकाश सिंह बादल थे।

4ण् इस निर्णय के बावजूद दोनों पक्ष अदालती लड़ाई में उलझे रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्रीए श्रीमती इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप से यह विवादास्पद मुद्दा दोबारा सुलझाया गया। दिनांक 31ण्12ण्1981 को हरियाणाए पंजाब और राजस्थान के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। इस त्रिपक्षीय समझौते के तहत रावी.ब्यास नदियों के कुल पानी में से हरियाणा को 3ण्5 मिलियन एकड़ फुट पानी मिला।

5ण् पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के निर्माण का कार्य 1982 के बाद शुरु हुआ और इसका 95 प्रतिशत कार्य जूनए 1987 तक पूरा हुआ।

6ण् इस बीच पंजाब उग्रवाद की आग से झुलसता रहा। अंत मेंए दिनांक 24ण्7ण्1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी और शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्षए संत हरचंद सिंह लौंगोवाल के बीच एक ऐतेहासिक समझौता हुआए जिसे ष्राजीव गांधी लौंगोवाल एकॉर्डष् के नाम से जाना जाता है। इस फैसले के तहत एसवाईएल के पानी के हिस्से के निर्णय हेतु नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट के कार्यरत न्यायाधीश जस्टिसए वीण् बीण् इराडी की अध्यक्षता में इराडी ट्राईब्यूनल का गठन हुआ।

दिनांक 30ण्1ण्1987 को इराडी ट्रिब्यूनल ने अपना ऐतेहासिक फैसला दिया और ष्राईपेरियन सिद्धांतष् के आधार पर राजस्थान व दिल्ली के अलावा हरियाणा को 3.83 मिलियन एकड़ फीट पानी का अधिकार दिया।

7ण् वर्ष 1991 में नहर को पूरा करवाने के लिए पंजाब को निर्देश देने के लिए एक मुकदमा दायर किया। दिनांक 15ण्1ण्2002 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार को एक वर्ष के अंदर.अंदर एसवाईएल नहर को पूरा करने के निर्देश देते हुए हरियाणा सरकार के मुकदमे को स्वीकार किया।

8ण् पंजाब ने भी सुप्रीम कोर्ट में 13ण्01ण्2003 को मुकदमा दायर कर एसवाईएल नहर बनाने की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने की अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने 04ण्06ण्2004 को पंजाब के मुकदमे को रद्द कर दिया तथा भारत सरकार को पंजाब से नहर का नियंत्रण लेने और इसका निर्माण करवाने के निर्देश दिए।

12ण्07ण्2004 को पंजाब विधानसभा ने ष्ष्पंजाब समझौता निरस्तीकरण कानूनए 2004ष्ष् पारित कियाए जिसके तहत पानी की साझेदारी के सभी आपसी निर्णयों व कोर्ट के आदेशों को खारिज कर दिया गया।

केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत इस कानून की वैधता की जांच का निर्णय सुप्रीम कोर्ट को सौंप दियाए जिस बारे 10 नवंबरए 2016 को फैसला आया है। 

Manoj Thakur   (newsman.manoj@gmail.com)

 

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