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जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे भारतीय किसान ; बेमौसमी बरसात का प्लेजियों को सबसे ज्यादा नुकसान

जलवायु परिवर्तन की मार से किस प्रकार भारतीय खेती और किसान प्रभावित हो रहे है, इसकी एक झलक हमको फरवरी अंत और मार्च 2015 के आंरभ में हुई। अप्रत्याशित हिमपात, बरसात एवं परिणामस्वरूप आई बाढ़ के रूप में देखने को मिली। 28 फरवरी से 03 मार्च 2015 चार दिन तक हुई इस बेमौसमी बरसात से लाखों भारतीय किसानों के प्रभावित होने की आशंका है। साथ-साथ जलवायु परिवर्तन जनित इन घटनाओं से भूमिहीन किसानों की बहुत अधिक दुर्दशा होती है और ऊपर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

खेती को अत्यधिक नुकसानः प्रारंभिक अधिकारिक अनुमानों के आधार पाॅच राज्यों में ही लगभग 50 लाख हैक्टेयर में खड़ी रबी की फसल इस बेमौसमी बरसात से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। केन्द्र सरकार इसे प्राकृतिक आपदा घोषित करें, इसके लिए कृषि मंत्रालय के द्वारा गृह मंत्रालय को पत्र लिखा गया है। कृषि मंत्री श्री राधा मोहन के लोकसभा में दिए के बयान के अनुसार पर्वतीय राज्यों जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड से लेकर मैदानी राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल तक के सैकड़ों क्षेत्रों में इस बरसात का खेती पर बहुत गहरा असर हुआ है। कई राज्यों से अभी तक नुकसान की कोई भी जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है।

राज्यवार फसल नुकसान का विवरण  

राज्य                                                                                 प्रभावित क्षेत्र ( हैक्टेयर में)
उत्तरप्रेदश                                                                          27 लाख
म्हाराष्ट्र                                                                            7.5 लाख
राजस्थान                                                                         14.5 लाख
पश्चिम बंगाल                                                                  50 हजार
प्ंजाब                                                                              06 हजार
(साभार दैनिक जागरण 05 मार्च 2015)

जलवायु परिवर्तन की भूमिकाः वैज्ञानिक ऐसी घटना के लिए जलवायु परिवर्तन को प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार ठहराते है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पूना के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ से हिमालय के मौसम पर दिसंबर से अप्रैल माह के बीच खास प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी विक्षोभ का जन्म भूमध्य सागर में होता है जो पश्चिमी हवाओं के साथ तूफ़ान और चक्रवात लेकर भारत के उत्तरी क्षेत्र से प्रवेश करता है और वहों से पश्चिम, दक्षिण और पूर्व की तरफ आगे बढ़ता है। संस्थान द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही तिब्बत के पठारी क्षेत्र में हाल के दशकों के दौरान गर्मी की तीव्रता और अवधि दोनों बढ़ रही है। साथ में बंसत के आरंभ में ही हिमालय में बरसातों और बर्फबारी की बढ़ती घटना ठंड के मौसम के विस्तार को दर्शाती हैं। जलवायु परिवर्तन के ये परिलक्षण पहले ही उजागर किए जा चुके हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक असाधारण मौसमी घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।

यमुना खादर में खेती करने वाले किसान सर्वाधिक प्रभावित यमुना नदी दिल्ली से ऊपर हरियाणा और उत्तरप्रदेश राज्यों की सीमा बनाती हुई बहती है। हथिनीकुंड़ बैराज हरियाणा से लेकर वजीराबाद बैराज दिल्ली तक यमुना नदी के दोनों ओर हरियाणा राज्य के यमुनानगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत और उत्तरप्रदेश राज्य के सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, बागपत जिले लगते हैं। दिल्ली से हथिनी कुंड़ बैराज की लंबाई लगभग 239 किलोमीटर है। लगभग इतने लंबे क्षेत्र में यमुना नदी के खादर में, जो कुल मिलाकर हजारों हैक्टेयर से अधिक है, हर साल मौसमी खेती होती है। जिसे स्थानीय भाषा में प्लेज की खेती के नाम से जानते हैं।

इस खेती में ग्रीष्मकालीन मानसून से पूर्व तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी आदि और शीतकाल में तौरी, घींया, टमाटर आदि सब्जियाॅ उगाई जाती है। यमुना नदी से सटे, केवल उत्तरप्रदेश के चार जिलों सहरानपुर, मुज्जफरनगर, शामली एवं बागपत के लगभग 50 हजार किसान परिवारों के लिए यमुना खादर की प्लेज की खेती ही जीविका का एकमात्र साधन है। ये किसान परिवार अधिकतर मल्लाह समुदाय एवं अन्य पिछड़ी जातियों से संबंध रखते हैं। इनके पास अपनी खेती की कोई जमीन नहीं है और ये लोग पट्टे या बॅटाई पर जमीन लेकर, यमुना खादर में प्लेज की खेती करते हैं। कृषि मंत्री द्वारा जारी बयान में प्लेज की खेती करने वाले किसानों को हुए नुकसान का कोई उल्लेख नहीं है।

’हाल-फिलहाल में सिंचाई की गई गेहूॅ की फसल में, बरसात का पानी आने से जलभराव हो गया, वो जमीन पर गिर गई, जिसमें अब कोई दाने नहीं होगें। खादर की खेती में वैसे भी ज्यादा पानी देने की जरूरत नहीं होती, यहाॅ थोड़ी खुश्की चाहिए होती है।’ शराफत अली, किसान यमुनानगर ने सैन्डर्प को बताया।

’पंजाब और हरियाणा में गेहूॅ की फसल को काफी नुकसान हुआ है। यमुना नगर में प्लेज की खेती पूरी तरह खत्म हो गई है। इससे प्लेजियों को बहुत नुकसान हुआ है।’ अनिल शर्मा, किसान यमुनानगर ने सैन्डर्प को बताया।

Yamuna River Bed Farming Yamuna Nagar March 2015यमुनानगर में यमुना की बाढ़ में प्लेज की फसल तबाह होने से हताश किसान दंपत्ति, फोटो अनिल शर्मा

चार दिनों से उत्तरी भारत में हो रही बारिश से यमुना नदी का गैरमानसूनी जलस्तर अविश्वसनीय मात्रा में बढ़ गया। 2 मार्च की रात और 3 मार्च की तड़के यमुना नदी में हथिनी कुड़ बैराज यमुनानगर से लगभग 6 घंटे के लिए 70000 क्यूसेक (घन फीट प्रति सैकेंड़) से अधिक का पानी छोड़ा गया। आमतौर पर मार्च के गैरमानसूनी माह में यमुना नदी में 160 क्यूसेक तक का जल प्रवाह रहता है। उस हिसाब से, 02-04 मार्च 2015 में, यमुना नदी का जलस्तर 100 गुणा से भी अधिक था।

’इतने पानी से तो हमारे खादर की सारी प्लेज बह जाएगी।’ इकबाल, किसान, शामली ने सैन्डर्प को बताया।

कई स्थानों पर प्रशासन से कोई पूर्व सूचना ना मिलने के कारण किसान बाढ़़ की चपेट में आ गए। जिन्हें हैलीकाप्टर की मदद के बाद ही बचाना संभव हो पाया।

farmers in yamuna flood march 15 djमार्च 2015 बागपत में यमुना नदी की बाढ़ में फसे किसान फोटो दैनिक जागरण

केवट-मल्लाह एकता सेवक समिति के अध्यक्ष मुस्तकीम मल्लाह के अनुसार प्लेज की खेती से अनुमानतः 200 करोड़ का व्यापार जुड़ा है। प्लेज की खेती करने वाले किसान भूमिहीन और गरीब हैं। वे बड़ी मेहनत और आर्थिक जोखिम उठाकर प्लेज लगाते हैं। बेमौसमी बरसात से उन्हें सबसे अधिक सामाजिक-आर्थिक क्षति होती है। जून 2013 में ही, प्लेजियों की लगभग तैयार फसल, बाढ़ में बह गई थी। जिससे उनके भूखों मरने की नौबत आ गई थी। इस बार फिर वही हालात होने जा रही है। 03-04 मार्च 2015 में, प्लेज की फसल शुरूआती चरण में ही बाढ़ के साथ बह गई।

Riverbed Farmking Ramraरामड़ा, शामली में यमुना नदी की बाढ़ प्लेज की फसल के ऊपर से गुजरती हुई फोटो मुश्तकीम मल्ला

सरकार भले ही इसे एक प्राकृतिक आपदा घोषित कर, किसानों को राहत देने की बात करें। जमीनी तौर पर यह राहत बडे़ एवं संपन्न किसानों को भले ही मिल जाए। परंतु यमुना खादर में, किराए की जमीन पर प्लेज उगाने वाले, हजारों भूमिहीन किसानों को इस तरह की बेमौसमी आपदाओं की मार से उभरने के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है जबकि यही लोग ऐसी घटनाओं की सबसे अधिक मार झेलते हैं।

सरकार को इन किसानों को जलवायु परिवर्तन का भुक्तभोगी मानना चाहिए और इनके लिए राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर न्याय की माॅग करनी चाहिए।

Bhim Singh Rawat, (we4earth@gmail.com) SANDRP, 05 March 2015

2 thoughts on “जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे भारतीय किसान ; बेमौसमी बरसात का प्लेजियों को सबसे ज्यादा नुकसान

  1. तथ्यपरक विश्लेषण.
    दोष मौसम का नहीं. वह बदल रहा है. हम भी बदलें.
    बेमौसम बारिश जो कहती है, उसे सुने और तदनुसार अपनी खेती और जीवन शैली को गुने.

    अरुण तिवारी

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  2. Good analysis. Long range climate forecasting is now possible and has to be mainstreamed to prevent such widespread losses. GOI must declare plaize workers as eligible for relief support.

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