क्या है हिमालयी नदियों का मिजाज़ ? (एन.डी.टी.वी.- इंडिया, 20 फरवरी 2014,
http://khabar.ndtv.com/video/show/documentary-ndtv-india/what-is-the-mood-of-himalayan-river-357478)
रिपोर्टर:- सुशील बहुगुणा, कैमरामैनः- सुदीश कुमार राम, एडिटरः- कुलदीप कुमार, एन.डी.टी.वी.- इंडिया
रिपोर्टरः- जून 2013, उत्तराखण्ड में, नदियों के साथ आई तबाही की ये तस्वीरें। तस्वीरें जो हमें मजबूर करती हैं, ये समझने को, कि आखिर ये नदियाॅ इतनी रौद्र, इतनी विकराल क्यों हो रही हैं ? ये नदियाॅ हमारे घर-आॅगन क्यों उजाड़ रही हैं ? कहीं हम ही, इन नदियों के अहाते में तो नहीं घुस गए ? कहीं हमने नदियों की लहरों में बेहिसाब बेडि़याॅ तो नहीं डाल दी ? क्या हम नदियों का मिजाज़ अब तक समझ भी पाए हैं ?
[एन.डी. टी. वी. इंडिया, की यह रिपोर्ट हम उनकी अनुमति के बाद आलेख के रूप में प्रकाशित कर रहें हैं, क्योंकि उत्तराखण्ड़ जून 2013 की बाढ़ की त्रासदी के बाद शायद पहली बार इस रिपोर्ट ने इस तरह से यह उजागर किया है कि किस तरह यह बाढ़ एक अप्रत्याशित त्रासदी बनी और इस घटना में मानव निर्मित कारणों का क्या योगदान था।]
यही सब जानने के लिए हमने सर्दियों का मौसम चुना, जब नदी सबसे शांत होती है। शांत नदी से शायद हमें कुछ गंभीर जवाब मिले। हमने अपनी इस नदी यात्रा कि शुरूआत की यहाॅ केदारनाथ से। केदारनाथ जो जून 2013 की तबाही का सबसे बड़ा गवाह है।
डाॅ. नवीन जूयाल, भूविज्ञानी:- बाॅयीं तरफ में अगर हम देखेगें तो वहाॅ से चोराबाड़ी झील से मंदाकनी नदी आती थी और जहाॅ पर हम खडें़ हैं और जहाॅ पर हम खडे हैं, यहाॅ पर पीछे केदारपुरी है, उसके बाॅयी ओर से निकलती थी।
रिपोर्टरः- 16 और 17 जून के रोज़, मूसलाधार बारिश और तेजी से पिघलती बर्फ के बीच, यहाॅ से कुछ ऊपर चोराबारी ताल के टूटने से, भयानक सैलाब, कुछ ही मिनटों के लिए सही, लेकिन बड़ी तेज़ी से नीचे उतरा।
डाॅ. नवीन जूयाल, भूविज्ञानी:- चोराबारी ताल के फटने के बाद में जो मलबा आया, आप देख रहे हैं क्यों, मलबा जो आया है वो किस तेजी से आया है, मलबा जब ऊॅचाई से ढ़लान की तरफ आता है तो बहुत सारी Fan Shape Body बनाती है। उस Fan Shape Body में जो बड़ी धाराएॅ होती हैं, वो अन्य छोटी धाराओं में बॅट जाती है। जिससे अनेकानेक धाराएॅ बन जाती हैं। लेकिन मैं इसमें एक बात और जोड़ना चाहूॅगा कि हम मंदाकनी और सरसुती के जलागम क्षेत्र को लेकर अपने आप को केवल इस स्थान तक सीमित ना करें, हमारे पास वैज्ञानिक तथ्य के आधार पर, इस तंग नदी घाटी की ढ़लानों पर जो मलबा बैठा हुआ था, वो काफी, मोटे तादाद में सक्रिय होता है।


रिपोर्टरः- नीचे की ओर तबाही मचाती मंदाकनी रामबाड़ा को नक्शे से उजाड़ने के बाद सबसे पहले पहुॅची, यहाॅ गौरी कुंड।
तीखे पहाड़ी ढ़लान से होते हुए मंदाकनी जब, नीचे तीसरे अहम पड़ाव गौरी कुंड़ पहुॅची तो उसमें इतनी अधिक ताकत थी कि अपेक्षाकृत कम तीखे ढ़लान होने के बावजूद, वो यहाॅ नहीं रूकी। उसने गौरी कुंड़ को तबाह किया और वो यहाॅ से अधिकतर मलबा आगे अपने साथ ले गई। यहाॅ काफी कम मलबा बचा है।

यहाॅ मंदाकनी नदी की ढ़ाल, पहले के मुकाबले कम हो गई थी, लेकिन नदी की रफ्तार इतनी तेज कि, ऊपर से आया मलबा, गाद, पत्थर, चट्टानें तेजी से आगे बढ़ रहे थे। जिसे कुछ हद तक सोनप्रयाग के इस चैड़े पाट ने रोका।
डाॅ. नवीन जूयाल, भूविज्ञानीः- इस चैडे़ पाट के होने के कारण, इस इलाके में जून 2013 की त्रासदी के दरम्यान, यहाॅ नदी का जो जलस्तर था, वो 30 मीटर ऊपर उठ गया था। जिसका अनुमान आप उस छोर पर पड़े हुए जमाव से लगा सकते हैं।
रिपोर्टरः- लेकिन मंदाकनी की ताकत फिर भी कम नहीं हुई। उसे थामा आगे, सीतापुर की अबतक की सबसे चैड़ी नदी घाटी ने। एक हरी-भरी घाटी जो इस ताकत को रोकने की कोशिश में जमीदौज़ हो गई।
डाॅ. नवीन जूयाल, भूविज्ञानीः- रूचिकर तौर पर, इस स्थान पर हम देखते हैं कि नदी प्रवेश स्थान एक संकरी घाटी के भाग पर है और उसका निकास मार्ग भी एक संकरी घाटी के भाग पर है। इस नदी की पुरानी तस्वीर अगर आप देखेगें तो नदी पहाड़ के नजदीक से बहती थी। अब हुआ ये है, कि जो मलबा बाहर-बाहर से सोनप्रयाग से जब इस इलाके में आता है, तो उसे एक अच्छा विराम स्थल और अच्छा दबाव मिलता है। और जो निर्माण क्षेत्र जहाॅ से नदी निकलने कि कोशिश कर रही हैं, वहाॅ पर कुछ निर्माण हुए थे, जल विद्युत योजनाओं के, जिनके खंबे वहाॅ पर खडे हुए थे। इसके कारण ये हुआ था, ये जो मलबा था जिसको बाहर के बाहर निकलना था। काफी हद तक जिसको बहकर निकलना था, वो ना हो पाया। और एक अच्छा-खासा बाॅध, बैराज वहाॅ पर बन गया जिसका हमारे पास वैज्ञानिक प्रमाण है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है, जो मलबा-गाद आदि ऊपर से यहाॅ आ रहे हैं, इस स्थान के बाद, मंदाकनी नदी में जो मलबा-गाद आदि नीचे जा रहा है, वो बहुत ही कम मात्रा में हैं।

रिपोर्टरः- लहरें अपने बोझ का बड़ा हिस्सा यहीं छोड़ आगे बढ़ जाती है। अब सवाल ये है, कि अगर इतना मलबा यहीं छूट गया तो आगे मलबा आया कहाॅ से ? इसी की पड़ताल करने, नदी के साथ-साथ आगे हम पहुॅचे कुंड।

डाॅ एस पी सती, भूविज्ञानीः- उस बाॅध के बैराज ने पानी को रोका, मलबा पानी को रोका, मंदाकनी में पानी मलबा आ रहा था उसे रोका। कुछ समय तक तो वो रूका और उसने पीछे की तरफ झील बना दी, मतलब उसने वहाॅ पर एक कृत्रिम जलाशय बना दिया। लेकिन जल्दी ही, वो बाॅध की जो दीवार थी, वो उसको रोक नहीं पायी और दबाव इतना ज्यादा था कि वो टूट गया।
रिपोर्टरः- यहाॅ संकरी नदी पर, मानव निर्मित एक अध-बना बैराज खड़ा था। मंदाकनी की लहरों ने उसे भी नहीं बख्शा।

(स्थानीय) नदी के व्यवहार में जब बदलाव आया तो एक तो उसकी मारक क्षमता बढ़ गई, उसमें मानव संरचना जो बनाए गए जो हो रहे थे, उनका जो मलबा बेतरतीब इधर-उधर पड़ा हुआ था, वो भी नदी के साथ जुड़ गया। जिससे उसका घनत्व बढ़ गया, जिससे उसकी मारक क्षमता बढ़ गई। मारक क्षमता बढ़ने से नदी अपनी लंबाई में तटों के साथ जो बस्तियाॅ बसी है, मार्ग में लोगों ने जो, बाढ़ क्षेत्र में भी बस्तियाॅ बसाई है। और जो दोनों तरफ तटों पर बस्तियाॅ बसाई थी, उनको भी तोडती हुई आगे बढ़ गई। तो नदी में कुंड़ के बाद यकायक, मानव जनित जो मलबा है उसकी मात्रा भी जुड़ गई।

रिपोर्टरः- यहाॅ से आगे, नदी का पाट काफी चैड़ा था और ढ़ाल काफी कम फिर भी नदी आस-पास के इलाके को उजाडते आगे बढ़ रही थी। भूवैज्ञानिक मानते हैं कि कुंड से आगे मानव निर्मित अवरोधों का मलबा नदी की विंध्वसकारी ताकत को बढ़ा रहा था और इसकी तस्दीक करती हैं उससे आगे इलाकों चंद्रापुरी, अगस्तमुनि, सिल्ली, तिलबाड़ा की तबाही की ये तस्वीरें । मंदाकनी आगे रूद्रप्रयाग में जब ध्वंस मचाती जब सबसे चैड़ी घाटी श्रीनगर पहुॅची तो वहाॅ और भी ज्यादा तबाही मचायी।
भूवैज्ञानिकों का कहना है कि इस तबाही में नदी का कम और मानव निर्मित अवरोधों का हाथ ज्यादा रहा।
प्रो. वाई पी सुंदरियालः- वो मलबा जो है, हम लागों ने जब उसकी उसकी भूरसायन जाॅच की करी और भूरसायन जाॅच करने के लिए हमने जो विश्लेषण नमूने लिए वो ठीक केदारनाथ के नीचे से लेना शुरू कर दिया था। हमने वहाॅ से मंदाकनी नदी के श्रीनगर तक के सारे नमूने लिए। नमूने लेने का हमारा मुख्य ये उद्देश्य था कि केदारनाथ वाला तलछठ वो सीतापुर और उससे थोड़ा आगे फॅस गया था। उसके बाद जो भी तलछठ हमको मिली है, वो तलछठ, मंदाकनी नदी और अल्कनंदा में परियोजनाओं को बनाते समय जो मलबा नदी के किनारे डाला गया है, उनका है। यहाॅ पर जो भी तबाही हुई उसमें मानव निर्मित अवरोधों, जलाशय बनाते समय, नदी किनारे डाले गए मलब कुछ मलबा निकाला गया और उसको नदी के किनारे डाला गया, उसकी बड़ी भूमिका थी। तो हम लोगों ने भूरसायन जाॅच के आधार पर ये सार निकाला है, निष्कर्ष निकाला है कि जो मानव निर्मित अवरोध थे, जो मानव निर्मित अवरोध थे, उन्होने इस तबाही को कई गुणा बढ़ाया है।

रिपोर्टरः- तबाही को बड़ा बनाने में मानव निर्मित अवरोधों की भूमिका को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति की जाॅच में भी सही पाया गया है। और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अपने हलफनामे में यह बात सर्वोच्च न्यायालय को सौंप भी चुका है और इस पर सुनवाई चल भी रही है।
नदी की इस यात्रा पर हम आगे बढ़ेगें और चलेगें अल्कनंदा नदी के साथ-साथ कुछ और जगहों पर। लेकिन उससे पहले इस हिमालयी इलाके के अंदर की एक धड़कन आप को सुना दें।
साधारण शब्दों में कहे तो भारतीय प्लेट जहाॅ यूरेशियाई प्लेट से टकराती है। वहाॅ हिमालय बना है, दोनों प्लेटों के बीच दबाव से पैदा सिलवटों से । ये दबाव भारतीय प्लेट में हिमालय को भी नीचे से तोड़ रहा है और कई दरारें बना रहा है। ऐसी ही एक भं्रश, एक दरार है, Main Central Thrust (MCT)उत्तराखण्ड में कुंड, भटवाडी, हेलंग और मंडल जैसे जगहों के नीचे से गुजरती है। यहाॅ जमीन अंदर अस्थिर है दबाव से बनी दरार ऊपर तक नजर आती है। ऐसी जगहों के आस-पास इस तरह गर्म पानी के कुदरती स्रोत हैं, जो धरती के अंदर के उबाल सतह पर दिखाते हैं।
रिपोर्टरः- हिमालय कमजोर लेकिन बड़ा ही उर्जावान पहाड़, एक पर्वत श्रृंखला है। और पानी के साथ मिलकर इसकी उर्जा ओर भी ज्यादा नए आयाम ले लेती है। ये गर्मी कहीं ना कहीं हमें चेतावनी भी देती है कि हिमालय के साथ जरूरत से ज्यादा खिलवाड़ हमारे लिए ठीक नहीं होगा।
रिपोर्टरः- वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग Main Central Thrust (MCT) के उत्तर यानी ऊपर की ओर, बडे़ मानव निर्मित अवरोधों या या साफ कहे तो बड़े बाॅधों का निर्माण ना करने की चेतावनी दे रहा है। आगे अल्कनंदा घाटी में देखेगें, ऐसी चेतावनी की क्या है वजह ?
इस नदी यात्रा में अब हम बढ़ रहे हैं, अल्कनंदा नदी के साथ-साथ कुछ खास जगहों पर। यह दिखाने के लिए कि कुदरत ने तबाही का कितना सामान, हिमालय की गोद में जुटा रखा है और हमारी लापरवाही उसे एक बार फिर हमारे ऊपर लाद सकती है।
हम पहुॅचे है यहाॅ बद्रीनाथ से कुछ किलोमीटर पहले चमोली के हीनाखौली गाॅव में। यहाॅ खीरौंगंगा पर, ये है खीरौ गाॅव एक घाटी जा भारी मलबे से पटी हुई है। जून 2013 की तबाही से पहले यहाॅ ऐसी सुरम्य हरी-भरी घाटी थी जो उसी दिन में तहस-नहस हो गई।
हम इस वक्त अल्कनंदा नदी के ऊपरी जलागम क्षेत्र में हैं, ऊपरी जलागम इलाके में है, वो इलाका जून 2013 में ऊपर से घाटी में सबसे ज्यादा मलबा आया। जिसने नीचे के इलाके में तबाही बरपाने में बड़ी भूमिका निभायी ।
डाॅ. नवीन जूयाल, भूवैज्ञानिकः- जो अतिवृष्टि हुई 16-17 जून 2013 में, हमने ये देखा की जो तीन घाटियाॅ हम दिख रही हैं। लेकिन इन तीन घाटियों में से बाॅयी तरफ की घाटियाॅ हैं, यही घाटियाॅ सक्रिय होती हैं लेकिन जब इसको हमने जानने की कोशिश की तो हमने पाया ऊपर में सब ग्लेशियर बैठे हुए है। सब ग्लेशियर का मतलब ये हुआ कि जो ग्लेशियर पीछे की तरफ जाता है, वो ऊपर की तरफ अटक जाता है। उसका मलबा वहाॅ पड़ा हुआ था। गुरूत्व यहाॅ आसानी से मौजूद है। जिससे वो मलबा नीचे घाटी में पहुॅच जाता है। हमारी भाषा में हम इसको Debris of Fan बोलते हैं। जैसे Debris of Fan अल्कनंदा के पास, जो बह रही है यहाॅ पर। इस फैन, अल्कनंदा नदी में क्या किया, अपने वेग से इस मलबे को नीचे की तरफ ले जाना शुरू किया। जब ये मलबा नीचे की तरफ जाता है तो भूस्खलन की घटना इसे ज्यादा बढ़ाती है। आगे जाकर के जब कोई अवरोध इसको मिलता है, तो ये मलबा वहाॅ अटक जाता है। अटकने के कारण से इसके पीछे एक ताल बनाता है। और जब उस ताल में पानी भरता है तो ताल अपने आप में एक Minimum Resistance Power (न्यूनतम उर्जा प्रतिरोध) खोजने की कोशिश करती है। इस नदी के दाॅयी तरफ जो चट्टाने हैं, उनका पट् बहुत ठोस हैं। जिसको ये पानी काट नहीं पाया। बाॅयी तरफ हमारे पास ढलान पर पुराने मलबे के ढे़र पड़े हुए हैं। ये पानी अपने वेग से, उस मलबे को भारी मात्रा में बहाकर नीचे ले जाता है। पांडुकेसर को तबाह करता है। गोविंद घाट को तबाह करता है और नीचे की तरफ इस मलबे को लेकर धौली गंगा में इसको समाहित कर देता है। और एक बात ये है, कि नदी की एक प्रवृति होती है। नदी को अपने तलस्तर जाना होता है जिसको हम River Equilibrium Profile कहते हैं। जब तक मलबा नदी के रास्ते में है, नदी अपने तल स्तर पर नहीं पहुॅच पाएगी और ये मलबा लगातार बहकर नदी में जाता रहेगा और एक शाश्वत समस्या के रूप में बना रहेगा।

रिपोर्टरः- वैज्ञानिकों की चिंता है कि अगर संवेदनशीलता से काम नहीं लिया गया तो बरसात के दिनों में ऐसा होने की पूरी आश्ंाका बनी हुई है।
डाॅ. नवीन जूयाल, भूवैज्ञानिकः- हमको ये अपने दिमाग में रखना पडे़गा कि यहाॅ कि नदियाॅ सिर्फ पानी नहीं लेकर चलती है। नदियों के साथ बहुत बड़ी मात्रा में तलछठ बहता है। हमें इसको ध्यान में रखना होगा। यदि हम इसको ध्यान में नहीं रखते हैं हम कितने भी बडे़ बैराज और गेट बना लीजिए। आप पानी का अनुमान लगा लिजिए की इतने क्यूमेक पानी या डिस्चार्ज को हम संभाल लेगें। हमारे पास कोई अनुमान नहीं होता कि हमारे पास कितने बंडी चट्टानें बहकर आएंगी। हमारा जो डिजाईन होगा, उसमें यह महत्वपूर्ण घटक बन जाता है कि पैरा ग्लेशियर जोन में अगर अवरोध होगें तो हमें चाहिए था हम इसका संवर्धन करें पर संवर्धन किस स्तर पर करें। संवर्धन करने का तरीका कैसे होगा। इस घटना ने हमको वास्तव में यही सबक सिखाया है कि हमें कैसे देश की तरक्की और विकास में इस विशेष क्षेत्र की संभावनाओं का संवर्धन करना है।

रिपोर्टरः- अल्कनंदा की एक दूसरी सहायक नदी का मिजाज जानने हम अब चलें जोशीमठ से नीतिघाटी की ओर। यहाॅ ये है धौलीगंगा नदी, जिसका मिजाज़ आज तक समझ नहीं आया। पूर्वी कामेत ग्लेशियर से निकलने वाली ये नदी लहरों पर तबाही लाने के लिए कुख्यात है। यहाॅ हम पहुॅचे नीतिघाटी के फ़ाख्ती गाॅव के पास जहाॅ पहाडियों पर पूर्व में हुई, तबाही के निशान साफ दिखते हैं।

डाॅ. नवीन जूयाल, भूवैज्ञानिकः- ये नदी अपने आप में एक शांत नदी नहीं जो आपको सर्दियों में दिख रही है। इसका अपना एक दूसरा स्वरूप भी है वो स्वरूप ये कि यदा-कदा इस नदी में झील बने हैं और झीलों के फटने से निचले इलाकों में बाढ़ों का सिलसिला आया हैं।
रिपोर्टरः- बरसात में किसी छोटी नदी में कितनी ताकत हो सकती है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि ये एक छोटी सी नदी जो धौली गंगा की सहायक नदी है किसी जमाने में अपने साथ इतना ज्यादा मलबा लेकर आई कि इसने धौली गंगा मुख्य नदी को रोक दिया और उसकी वजह से वहाॅ पीछे एक बड़ी झील अतीत में बनी है।
साफ है, नदियाॅ पानी ही नहीं लाती, अपने साथ Glacier Moraine यानी ग्लेशियरों के पीछे हटते वक्त, ग्लेशियरों के द्वारा के दौरान छोड़ा गया भारी मलबा भी लाती है। और ये मलबा बड़ा ही खतरनाक साबित होता है। फिर भी बड़ी परियोजनाओं का जाल यहाॅ एक बाद एक चल रहा है। नंदा देवी जीवमंडल के सुरक्षा क्षेत्र में भी। एक तस्वीर बस आपकी जानकारी के लिए जो मोटे तौर पर अल्कानंदा नदी घाटी में इन परियोजनाओं की मौजूदा स्थिति दिखाती है। अल्कानंदा नदी घाटी में कुल 37 परियोजनाएॅ हैं। इनमें से 6 परियोजनाएॅ चालू हालत में है, 7 परियोजनाओं का निर्माण कार्य चल रहा है और 24 परियोजनाएॅ प्रस्तावित हैं। कई जगहों पर तो एक परियोजना की झील खत्म होगी, तो कुछ ही दुरी पर दूसरी परियोजना की झील शुरू हो जाएगी। परियोजनाओं के लिए पहाडि़यों के अंदर, सैकड़ो किलोमीटर सुरंगों का जाल बिछ चुका है। ये सभी परियोजनाएॅ, हमारी जिम्मेदार सरकारों की निगाह में है। उम्मीद है सरकारें, तुरंत-फुरंत मुनाफे से ज्यादा हिमालय की संवेदनशीलता पर ध्यान देंगी। और अब जाते-जाते, सवा सौ साल पहले, अंग्रेजों के दौर की संवेदनशीलता की एक मिसाल। जब जुलाई 1893 में अल्कनंदा की एक सहायक नदी, विरही गंगा का रास्ता एक भूस्खलन से रूक गया था।

आज से करीब सवा सौ साल पहले, ठीक मेरे पीछे 9000 फीट की ऊॅचाई से एक भयानक भूस्खलन हुआ था। इस भूस्खलन ने नीचे बह रही विरही गंगा का रास्ता पूरी तरह रोक दिया था। जिससे मलबे के उस पार एक बड़ी झील बन गई। भूस्खलन से गिरे मलबे ने 300 मीटर ऊॅची एक दीवार इस घाटी में बना दी। जिसमें विरही गंगा का रास्ता रोक दिया और उसके बाद विरही गंगा का पानी इसमें भरता रहा और करीब 3 किलोमीटर लंबी एक विशालकाय झील यहाॅ बन गई। ब्रिटिश सरकार ने समय रहते, झील के फटने का स्टीक पूर्वाकलन किया। लोगों को खतरे के बारे में आगाह कराया। नतीजन इस विध्ंवसकारी घटना में किसी भी व्यक्ति की जान नहीं गई।
(Compiled by: Bhim Singh Rawat, SANDRP)
धन्यवाद.
रिपोर्ट को आलेख के रूप में प्रस्तुत कर आपने सुन्दर काम किया है.
इससे नदी को समझने में हम सभी को मदद मिलेगी.
NDTV और संदर्प.. दोनों का आभार
अरुण तिवारी
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We the creatures of Nature try to train a River that offers nectar to all forms of life forgetting its recoil potential. What we did and intend to do only hasten the journey from the cradle of civilization, that is the River basin, to grave yard. Are not solutions known? Why can’t the specialists occupying decision making bodies have a dialogue with specialists like the ones in NDTV programme and SANDRP for arriving at safe solutions ! SANDRP like bodies should organize workshops for politicians, specialists within Governments and Administrators.
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Great work by NDTV team and thanks to SANDRP to publish. Can it be forwarded to other persons who may be interested.
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